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इंटरनेट पर बने क्वीयर औरतों के इस समुदाय की बुनियाद एक साझा हक़ीक़त है जो ये सभी औरतें जीतीं हैं। बंद दरवाज़ों के पीछे से एक-दूसरे के सामने अपना दिल खोलकर उन्होंने ये आपसी रिश्ते बनाए हैं।
मेरा लिपस्टिक और लिपस्टिक के रंगों के साथ हमेशा से एक यौनिक रिश्ता रहा है। लिपस्टिक से मेरी पहचान निशानों और धब्बों के रूप में ही हुई थी।
पहले जिन स्त्रीसुलभ व्यवहारों के कारण मुझमें वो मेएलीपन दिखाई देता था, अब वो मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका है। वह अब उन सब कपड़ों में जो मैं पहनती हूँ, जिस अंदाज़ में मैं चलती, सोचती और बात करती हूँ या लोक चर्चाओं में भाग लेती हूँ, परिलक्षित होता है।
क्वीयरनेस एक स्वतंत्र पहचान है जो छोटे बच्चों सहित किसी को भी स्वीकार करती है, जो निर्धारित बाइनरी के पथ से अलग चलते हैं।
आख़िरकार, व्यापक यौनिकता शिक्षा का मतलब सिर्फ़ ज्ञान देना ही नहीं है। हम ऐसे सक्षम शिक्षक चाहते हैं जो हमारे यौन अनुभवों को संबोधित करने के लिए कला, नृत्य, संगीत, रंगमंच जैसे कई तरीक़ों को शामिल करते हैं और हमें आगे जाकर ऐसे अनुभवों के लिए तैयार करते हैं।
चूँकि दुनिया हाशिये में जीने वाले लोगों के प्रति इतनी प्रतिकूल रही है, इसलिए वे लोग हमेशा से, हर जगह ‘सुरक्षित स्थान’ बनाने की कोशिश करते आ रहे हैं।
अपनी परिभाषा, अर्थ और लांछन के आस-पास की अस्पष्टता के कारण यौनिकता एक अछूता, अनदेखा, और मनाही का क्षेत्र बना हुआ है।
मैं उन विभिन्न जिमों के बाथरूम में बिताए अपने अनुभवों को याद कर सकता हूँ। पुरुषों का बाथरूम एक अद्भुत जगह होता है यह देखने के लिए कि कैसे यौनिकता अपने अलग-अलग पहलुओं में ज़ाहिर होती है।
अपने बच्चों को बाहरी दुनिया की बुराइयों से बचाने की अपने यक़ीन के कारण भारतीय परिवार इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि बच्चों को भी दुनिया को समझने के लिए तैयारी की ज़रुरत होती है।
हमें नहीं बनना महान
हमें इंसान ही रहने दो।
मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरे पिता ने मुझे हस्तमैथुन करते हुए देखा लिया था।
मेरे जेंडर के बारे में उनकी प्रतिकारिता हमारी बातचीत में हर जगह होती है, लेकिन वह मुझे यह भरोसा देने में भी देर नहीं लगातीं कि मेरी ग़ैर-विषमलैंगिकतावादी यौनिकता ने उन्हें कभी परेशान नहीं किया।
ज जब मैं अपनी माँ और चेची के अनुभवों के बारे में एक इंटरसेक्शनल यानी अंतर्विभागीय नारीवादी नज़रिए से लिख रही हूँ, तो मैं यह सोचती रह जाती हूँ कि उनके शारीरिक और भावनात्मक श्रम का भुगतान कौन करेगा।
काम और यौनिकता? इस तरह से देखें तो यह आपकी पूरी ज़िंदगी है।
Growing up, for me, has been about accepting that the loneliness and sadness woven into the fabric of my being do not go away with entering conventional arrangements like monogamous relationships or marriage.