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क्या अंडरवेयर का ब्रैंड वाक़ई कोई मायने रखता है?

Imagie of an underwear with the word 'grindr' written all over it

डेटिंग ऐप ‘ग्राइंडर’ पर मैं चेहरों और शरीरों की छोटी-छोटी तस्वीरें और बिना तस्वीर के प्रोफ़ाइल देखते हुए स्क्रोल करता हूं। एक साथी की तलाश करते-करते अचानक मुझे एहसास होता है कि किस तरह हमारी अंतरंग चाहतों को भी हमारा वर्ग और सामाजिक स्थान निर्धारित करता है। मेरे मन में ये सवाल आता है कि मेरे निजी अनुभव मेरे उच्च-मध्यवर्गीय स्थान द्वारा किस हद तक प्रभावित हैं? मैंने सोचकर देखा कि कोई तस्वीर किस तरह के कैमरे से ली गई है और उससे तस्वीर लेने वाले के सौंदर्यबोध के बारे में क्या पता चलता है इस पर मेरा आकर्षण काफ़ी हद तक निर्भर करता है। मुझे याद है बहुत साल पहले मेरी बात एक आदमी से हुई थी जिसने कहा था कि अंतरंग पलों के दौरान जब उसने देखा कि उसके साथी का अंडरवेयर सस्ते ब्रैंड का है तो उसका सख़्त लिंग तुरंत मुलायम हो गया और उसकी यौनिक इच्छा चली गई। उसका ऐसा कहना मेरे मन में एक अजीब कड़वाहट पैदा करके चला गया, लेकिन तभी मुझे उन उम्मीदों की लंबी अनकही लिस्ट याद आई जो मैं ख़ुद अपने होने वाले साथी से रखता हूं। ये उम्मीदें उसकी महक, उसकी स्वच्छता की आदतें, उसके पेशे से लेकर वो किस तरह से बात करता है इस पर जाकर ख़त्म होती हैं।

जब अंडरवेयर उतर जाता है तब क्या वाक़ई उसके ब्रैंड से कोई फ़र्क़ पड़ता है? अंडरवेयर अलग-अलग लोगों के लिए अलग मायने रख सकता है। ये आपकी इच्छाओं को जगा सकता है या आपको ज़्यादा क़रीब आने से रोक सकता है। आप अपने मुंह से इसे अपने माशूक़ के बदन से उतार सकते हैं या जोश में आकर इसे फाड़ डाल सकते हैं या फिर शायद ये आपका सौंदर्यबोध जगाता है। ये सत्ता की ख़्वाहिशें भी पूरी करता है या आकर्षण को ख़त्म भी कर सकता है। लेकिन क्या किसी की पहचान को उसके अंडरवेयर के ब्रैंड तक ही सीमित कर देना सही है? क्या हमारा आकर्षण सिर्फ़ सौंदर्यात्मक तत्वों पर निर्भर करता है या आर्थिक और भावनात्मक तत्वों पर भी? या शायद तीनों या इनमें से दो के मिश्रण पर?

दो जिस्म नग्नता की स्थिति में एक-दूसरे को किस नज़रिये से देखते हैं? सेक्स के दौरान, जब दोनों के बीच कपड़े नहीं रहते, आपस में सत्ता की एक लेन-देन शुरु हो जाती है। इस लेन-देन के खेल में शामिल होता है बल, स्पर्श का एहसास, और वे असंबंधित ख़्याल जो हमारे मन में उस वक़्त भी रहते हैं जब हम एक दुसरे के क़रीब होते हैं। अंतरंगता के चरम पर उन पलों के दौरान भी हमारे विचार और बर्ताव समाज में उस स्थान से उत्पन्न होते हैं जिससे हम ताल्लुक रखते हैं। हम कैसी भाषा का प्रयोग करते हैं, अपने ख़्याल कैसे बयां करते हैं, यहां तक कि बात करते दौरान कैसी आवाज़ का इस्तेमाल करते हैं ये सब हमारी सामाजिक परवरिश पर निर्भर करता है। जिन सुविधाओं और विशेषाधिकारों के साथ हम बड़े होते हैं वो हमारे शरीरों पर नज़र आते हैं। वे उसकी बनावट, हमारी त्वचा की ख़ुशबू, एहसास, और रंगत को प्रभावित करते हैं। कुछ शरीरों के लिए पौष्टिक खाना, स्वास्थ्य सेवाएं, और शारीरिक और मानसिक तंदुरुस्ती के साधन आसानी से उपलब्ध होते हैं तो कुछ शरीरों के लिए नहीं।

हमारे भावनात्मक, भौतिक, और व्यक्तिगत अनुभव हमारी वर्ग स्थिति द्वारा रचे जाते हैं। शायद हमारे ऑर्गैज़मों की तीव्रता भी इस पर निर्भर करती है। सेक्स के ज़रिए जब हमें किसी के शरीर का ‘भक्षण’ करते हुए उस पर जीत हासिल करने का एहसास होता है तो वो यौनिक संबंध एक लेन-देन के रिश्ते में बदल जाता है जिससे हम अपना फ़ायदा निकालने की कोशिश कर रहे होते हैं। अंतरंगता की उस चरम सीमा तक पहुंचने से पहले हम एक-दूसरे के साथ तहज़ीब का जो ढोंग करते हैं वो भी सामाजिक रिश्तों की आर्थिक तौर पर वर्गीकृत व्यवस्था में जन्म लेता है।

एक-दूसरे के चेहरे से चेहरा, त्वचा से त्वचा, और बदन से बदन मिलाने और सुख का वो चरम एहसास पाने के लिए हमें कई सारी परतें उतारनी पड़तीं हैं चाहे वो ब्रैंडेड या सस्ते ब्रैंड वाला अंडरवेयर हो या एक-दूसरे से हमारी उम्मीदें और चाहतें। दो (या उससे ज़्यादा) जिस्म, थोड़ी ताक़त का खेल, थोड़े अपनेपन का एहसास, और क़रीब होने का मज़ा। बस और क्या चाहिए? इसी तरह सेक्स कुछ हद तक वर्ग की सीमाओं को लांघते हुए हमें एक-दूसरे के साथ का आनंद महसूस करने का मौक़ा देता है।

क्रूज़िंग (साथी की तलाश में सार्वजनिक स्थानों में घूमना-फिरना) के तरीक़ों में बदलाव ने हमारे यौनिक साथियों की ओर हमारा नज़रिया बदल दिया है। ऑनलाइन क्रूज़िंग हमें सिर्फ़ अलग-अलग शरीरों की तस्वीरों के बीच चुनने का मौक़ा देता है जहां हक़ीक़त के क्रूज़िंग स्थलों में हम इन जीते-जागते शरीरों को अपने सामने पाते हैं। ऑनलाइन स्थान ठुकराए जाने के एहसास हमारी हिफ़ाज़त करते हैं जबकि हक़ीक़त में शारीरिक और भावनात्मक तौर पर इसकी संभावनाएं बढ़ा देती है। ख़तरा दोनों जगह है, फिर भी ऑनलाइन दुनिया में हमें हिफ़ाज़त और नियंत्रण का एहसास होता है, भले ही वो एक वहम क्यों न हो। ऑनलाइन माहौलों में किसी के दिल जीतने की प्रक्रिया जितना चाहे उतना वक़्त ले सकती है लेकिन हक़ीक़त में इसकी एक समय-सीमा रहती है। दोनों हालातों में हम किसी का मन जीतने के लिए जो तरीक़े अपनाते हैं वे अलग होते हैं। ऑनलाइन क्रूज़िंग में हम पर अपनी ओर किसी की दिलचस्पी बनाए रखने का दबाव तो रहता ही है, और हक़ीक़त में जब आमने-सामने बात करते हुए ये दिलचस्पी बरक़रार रखनी होती है तब ये दबाव बढ़ जाता है। संभावित साथियों से जुड़ने के ये दोनों तरीक़े अलग हैं, लेकिन ऑनलाइन माध्यम हमें ये एहसास दिलाते हैं कि हमारे पास कई सारे विकल्प हैं, क्योंकि ये हज़ारों चेहरे, शरीर, और प्रोफ़ाइल सूचिबद्ध तरीक़े से हमारी स्क्रीन पर लाते हैं।

ऑनलाइन या ऑफ़लाइन क्रूज़िंग स्थल से किसी के साथ एक अंतरंग स्थिति में आ पहुंचना अलग-अलग लोगों के लिए अलग अनुभव हो सकता है। कुछ लोगों को चरम सुख की तलाश होती है तो कुछ और लोगों को एक कहानी की, जो वे सुना और सहेज सकें। क्या सुख के ये सभी पल उस चरम सीमा तक जा पहुंचते हैं? उस पल के बाद जब बिछड़ने का वक़्त आता है तो अलविदा कैसे कहा जाता है? क्या उनके इन पलों की कहानी एक और बड़ी कहानी की शुरुआत होती है? हम इन पलों का जो अर्थ निकालते हैं,‌उसका योगदान हमारे व्यक्तित्व के गठन में होता है। लोगों से मिलने का मक़सद हमारे लिए अक्सर अलग-अलग होता है। वासना, आदर, डर, उम्मीद, हिचकिचाहट, अनिश्चितता, या बोरियत की भावनाओं के कारण हम लोगों के संस्पर्श में आते हैं और हमारी भावनात्मक स्थितियों के मुताबिक़ ये भावनाएं बदलतीं भी रहतीं हैं।

हम लोगों से रिश्ते कैसे जोड़ते हैं, क्या कहते हैं और क्या अनकहा छोड़ देते हैं इसका एक ‘पैटर्न’ रहता है। ये अनदेखे पैटर्न हमारे रिश्तों को निर्धारित करते हैं और अक्सर ये हमारे सामाजिक स्थान से उत्पन्न होते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि किसी और के शरीर पर उनका हक़ है और वे चाहे तो उनसे कुछ भी करवा सकते हैं। कुछ लोग ख़ुद के और सामनेवाले के बीच सत्ता का एक अंतर‌ बनाए रखते हैं और उनसे उसी तरह का बर्ताव करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो ऑनलाइन मिले साथियों से हक़ीक़त की ज़िंदगी के साथियों की तुलना में अलग बर्ताव करते हैं। हम किसी के साथ कैसे पेश आते हैं ये हमारी सोच और यौन संबंधों से जुड़ी जिस सामाजिक संस्कृति से हम ताल-मेल रखते हैं उसका प्रतीक है।

शायद अंडरवेयर से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। ख़ासकर अगर हमारे साथी कोई ऐसे हों जो हमारी उम्मीदों से भी बढ़कर हैं, और जिनके बारे में ठीक से न जानते हुए भी हम उन पर भरोसा कर सकें। अनिश्चितता और भेद्यता के बावजूद जिनके साथ हम सुरक्षित महसूस करें और जो हमें ये एहसास दिलाएं कि जो होना है, बहुत अच्छा होने वाला है।

ऐंडी स्टीफ़ेन सिल्वेरा गोवा में रहते हैं और वे पेशे से व्यावसायिक संचार (बिज़नेस कम्युनिकेशन) के ऐसिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। उन्हें कथाकारी, वक्रपटुता, और यौनिकता पर अध्ययन करने में रुचि है। उन्हें व्यायाम करना बहुत पसंद है, चाहे वो तैराकी, नृत्य, या पेड़ों पर चढ़ने के ज़रिए हो।

ईशा द्वारा अनुवादित।
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