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अब और बंद दरवाज़े नहीं!

NLG in Saini Village

लद्दाख अपने शानदार पहाड़ों, भव्य बौद्ध मठों, और अनोखी संस्कृति के लिए मशहूर है। हर साल गर्मी के मौसम में यहां हज़ारों टूरिस्ट आते हैं और मैं अक्सर सोचती हूं कि क्या उन्हें कभी यहां के स्थानीय लोगों की ज़िंदगी के बारे में जानने का मन नहीं करता? क्या वे कभी सोचते हैं कि यहां किसी लड़के या लड़की के बड़े होने का अनुभव कैसा होता होगा? अपनी खिड़की से मुझे अक्सर 5-10 बाइकर नज़र आते हैं जो अपने हेलमेट पर गो-प्रो के कैमरे लगाए घूमते रहते हैं। हमें अक्सर किसी जगह की क़ुदरती ख़ूबसूरती इतनी भा जाती है कि हम वहां के सामाजिक परंपराओं और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की बारीक़ियों के बारे में सोचते ही नहीं। मेरे मन में अक्सर ये सवाल आता है कि क्या इन बाइकर्स ने कभी इस बात पर ग़ौर किया है कि लद्दाख की लड़कियों और औरतों को कैसी-कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?

जब मैं बड़ी हो रही थी तब ‘पीरियड’ शब्द सुनने को ही नहीं मिलता था। लद्दाख में जानकारी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है जिससे इस क्षेत्र की आर्थिक तंगी के बारे में पता चलता है। कई बार लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं की सहायता लेने के लिए लद्दाख से बाहर जाना पड़ता है। जब मैं 11 साल की थी और बाहर के कमरे में बैठकर पढ़ रही थी, मैंने अपनी 20 साल की बहनों को ये कहते हुए सुना कि, “हम लड़कियां कितनी बदक़िस्मत हैं!” (शायद वे कर्मफल के बारे में तिब्बती बौद्ध दृष्टिकोण से बात कर रहीं थीं)। मुझे याद है कि मैं ये सुनकर चौंक गई थी और मुझे बुरा भी लगा था। मैं सोचने लगी कि मैं तो पढ़ाई में अच्छा कर रही हूं और एक अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ती हूं जहां पढ़ाई-लिखाई में लड़कियां लड़कों से आगे हैं, फिर मैं बदक़िस्मत कैसे हुई? मैं तब एक नादान बच्ची थी और मुझे पता नहीं था कि वे हर महीने पीरियड के आने की बात कर रहीं हैं। मुझे लगता था कि ये दुनिया लड़कियों के लिए बहुत अच्छी है सिर्फ़ इसलिए क्योंकि हमें पढ़ने का हक़ है और मुझे पढ़ना बहुत अच्छा भी लगता था। मैं नहीं जानती थी कि अब कुछ ही देर में मेरे शरीर में कैसे-कैसे बदलाव शुरु होने वाले थे, मेरे मन में ऐसे कितने सवाल आने वाले थे जिनका जवाब ढूंढना मुश्किल होता, और अपने ही शरीर के बारे में कितनी शंकाएं मेरे मन में आने वाली थीं।

आठ साल बाद जब मैं अमेरिका में पढ़ाई कर रही थी, मैं गर्मी की छुट्टियों में ‘न्यू लद्दाखी गर्ल्स’ (NLG) की तरफ़ से एक वर्कशॉप प्रस्तुत करने घर वापस आई। गर्मी की छुट्टियों के लिए ये मेरा प्रॉजेक्ट था। वर्कशॉप लद्दाख के चांगथंग क्षेत्र के किसी गांव में हुआ था और मुद्दा था ‘सस्टेनेबल मेंस्ट्रुएशन’, यानी माहवारी में रक्तस्राव रोकने के लिए ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करना जिनसे पर्यावरण को नुक़सान न पहुंचे। हम यहां तीसरी बार गर्मी के दौरान वर्कशॉप करने आए थे और इस बार हमने मर्दों को भी शामिल करने का फ़ैसला किया। मुझे याद है वर्कशॉप के बाद एक औरत ने मुझसे कहा था, “मेरी उम्र पचास साल से ऊपर है और आज ज़िंदगी में पहली बार मैंने अपने शरीर में सहज महसूस किया है। मैंने आज पहली बार किसी को एक मर्द के बग़ल में बैठे हुए हमारे शरीर के बारे में इस तरह खुलकर बात करते हुए देखा है।” उस औरत के चेहरे पे रौनक थी और आंखों में उम्मीद। NLG के काम में डूबे रहने की वजह से मैं इतने तनाव में थी कि मैं आसानी से भूल गई थी कि आख़िर मैं ये काम कर क्यों रही थी। उस औरत की बात ने मुझे याद दिलाया कि न जाने कितनी पीढ़ियों से औरतों को अपने ही शरीर के बारे में जानकारी से वंचित किया जाता रहा है।

आज मैं एक 24 साल की औरत हूं जिसने एक महिला कॉलेज, स्मिथ, में पढ़ा है। इसके बदौलत आज मुझे औरतों के शरीर के बारे में काफ़ी जानकारी प्राप्त हुई है और मैंने ये भी सीखा है कि ख़ुद का ख़्याल कैसे रखा जाता है और हम औरतों के शरीर कितने अनोखे और कितने क़ाबिल हैं। हज़ारों ऐसी लड़कियां हैं जिन्हें घर पर ये सीख नहीं दी गई है। मैं ये नहीं कह रही हूं कि मेरी मां या मेरी दादी और नानी ने अपनी ज़िंदगी से जो सबक लिए हैं वे कोई मायने नहीं रखते, क्योंकि लद्दाख की औरतों पर एक अध्ययन से ये पता चला है कि मांओं और बेटियों के बीच के गहरे रिश्ते का सकारात्मक असर मातृ स्वास्थ्य पर पड़ता है। देखा गया है कि 21 या उससे कम उम्र की किसी औरत की मां की अचानक मौत हो जाए तो उसके बच्चों के जन्म के बाद जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है। वहीं उस औरत की मां अगर उसके साथ रहे तो पैदा होने के बाद बच्चों के ज़िंदा रहने की संभावना बढ़ जाती है। (चिन एवं साथी, 2014)। लेकिन ये भी सच है कि ये अध्ययन सिर्फ़ पारंपरिक रिश्तों की ही बात करता है जिनमें एक शादीशुदा औरत को ही बच्चे होते हैं और गर्भावस्था से प्रसव तक उसकी मां उसका पूरा साथ देती है। किशोरावस्था से गुज़र रहे उन लोगों का क्या जो अपने पहले अंतरंग रिश्ते में हैं या हाल ही में जिनके पीरियड शुरु हुए हैं, जिसकी वजह से वे कई भावनात्मक, मानसिक, और शारीरिक बदलावों से गुज़र रहे हैं? क्या वे इन चीज़ों के बारे में अपनी मां या दादी-नानी से खुलकर बात कर पा रहे हैं? अफ़सोस, इसका जवाब है नहीं। गांव-देहात में स्वास्थ्य सेवाएं और जानकारी के लिए सिर्फ़ कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) हैं और चांगथंग के बंजारा समुदायों की 82.86% औरतें और उनके बच्चे ज़ुकाम, बुख़ार, या उच्च रक्तदाब जैसी बीमारियों के इलाज के लिए ही वहां जाया करते हैं (डोलकर एवं साथी, 2021)। लड़कियों और औरतों की अन्य शारीरिक समस्याओं का क्या? गायनेकॉलोजिस्ट तो सिर्फ़ लेह और कारगिल के शहरी हिस्सों में मिलते हैं। हमारे गांवों में सिर्फ़ सहायक नर्स दाई (ऑक्सिलियरी नर्स मिडवाइफ़ या ANM) ही हैं जो मां और बच्चे की सेहत की देखभाल या परिवार नियोजन में मदद कर सकतीं हैं। लेकिन कई ANM सेविकाओं का ये कहना है कि वे आपातकालीन स्थितियों को संभालने के लिए अभी भी तैयार नहीं हैं और ऐसे हालातों में वे अक्सर मरीज़ को नज़दीकी अस्पताल में जाने की सलाह देतीं हैं, जो आमतौर पर 50 या 100 किलोमीटर दूर होता है (एंग्स्ट, 2011)।

2015 की गर्मी थी जब मैं और मेरे दोस्त, NLG के सह-संस्थापक, स्मिथ में महिला स्वास्थ्य पर एक क्लास में बैठे थे। जब हमसे पूछा गया कि हम में से कितने लोगों ने HPV का टीका लगवाया है, सिर्फ़ दो लोगों ने अपना हाथ ऊपर किया। उस क्लास के दो हफ़्तों में मुझे ऐसा लगने लगा कि लद्दाख की संस्कृति और वहां ली गई मेरी शिक्षा ने मेरे साथ नाइंसाफ़ी की है, क्योंकि वहां किशोरावस्था से गुज़र रहीं लड़कियों को अपनी सेहत के बारे में ज़रूरी जानकारी दी ही नहीं जाती, जो कि एक बच्चे का मौलिक अधिकार है। आठवीं क्लास में मेरे साइंस के टीचर ने बहुत हिचकिचाहट के साथ हमें पीरियड्स के बारे में बताया था और बताने से पहले उन्होंने क्लास के सारे लड़कों को लाइब्रेरी में भेज दिया था। लद्दाख और पूरे भारत के ज़्यादातर स्कूलों की यही कहानी है। हमारे यहां बच्चों को व्यापक यौनिकता शिक्षा नहीं दी जाती। ये एक संवेदनशील मुद्दा है जिसे लोग अनदेखा कर देना ही आसान समझते हैं, चाहे इसकी वजह से किशोरावस्था से गुज़र रहे लोग अपने शरीर के बारे में उपयुक्त जानकारी के न रहते हुए ग़लत फ़ैसले क्यों न ले लें।

स्मिथ के समर प्रोग्राम से जब हम घर वापस आए तब मैं और मेरे दोस्त 16 साल के थे। महिला स्वास्थ्य के बारे में हमने जो सीखा था वो लोगों से साझा करने के लिए हम बेताब थे। हमने जो कुछ भी सीखा था उसे एक पावरपॉइंट प्रेज़ेंटेशन में डाला और इसमें माहवारी, किशोरावस्था, और गर्भनिरोध पर जानकारी भी शामिल थी। NLG पर काम हमने स्थानीय औरतों के साथ एक बैठक से शुरु किया, जहां हमने डॉक्टरों, शिक्षकों, सलाहकारों, और पत्रकारों को भी आमंत्रित किया ताकि ये बैठक दूसरे गांवों और स्कूलों में करने से पहले हम उनकी राय ले सकें। उन्होंने सबसे पहले हमें प्रेज़ेंटेशन से गर्भनिरोध वाला स्लाईड हटा देने की सलाह दी ये कहते हुए कि ये हमारी संस्कृति में नहीं है। वे हमसे यही कहना चाहते हैं कि शादी से पहले सेक्स करना हमारी संस्कृति में नहीं है। जिस दृढ़ विश्वास से उन्होंने हमसे ये कहा, वो हमें डरावना लगा क्योंकि उनके ये बात कहने के पीछे ये डर था कि हम गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करने लगे तो किसी धार्मिक समुदाय विशेष की जनसंख्या हमसे ज़्यादा हो जाएगी। धर्मगुरु अक्सर गांव-गांव जाकर ये डर फैलाते हुए लोगों को बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं (एंग्स्ट, 2011)। ये सच है कि कई स्थानीय प्रजनन स्वास्थ्य कर्मचारी औरतों को गर्भनिरोधक और व्यापक स्वास्थ्य शिक्षा दिलाने का समर्थन करते हैं, मगर उनको लगता है कि वे जिस सामाजिक पृष्ठभूमि में ये काम करते हैं वो उनके ख़िलाफ़ है (एंग्स्ट, 2008)।

लद्दाख के 2025 के विज़न डॉक्युमेंट में स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए कई सुझाव बताए गए हैं लेकिन उसमें कहीं भी महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का ज़िक्र नहीं है (एंग्स्ट, 2011)। इसके बावजूद कई स्थानीय ग़ैर-सरकारी संगठन हैं जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर लद्दाख में महिलाओं को स्वास्थ्य पर शिक्षा दिलाते हैं। NLG इन्हीं में से एक है। मुझे वाक़ई NLG के कार्यक्रमों पर काम करना बहुत पसंद है मगर फिर भी मुझे इस बात की परेशानी होती है कि हम जो कर रहे हैं वो काफ़ी नहीं है। 2015 से 2019 तक हर साल गर्मी में और 2021 की सर्दी में मैं और मेरे दोस्त अलग-अलग गांवों और स्कूलों में जाते जहां हम महिला स्वास्थ्य की बात करते और ‘बूंद’ के मेन्स्ट्रुअल कप और ‘ईकोफ़ेम’ के कपड़े से बने पैड का वितरण भी करते। हम हर गांव में कुछ घंटे रुकते और कई लड़कियों और मांओं के साथ महिलाओं के शरीर और स्वास्थ्य पर खुली चर्चा करते। कभी-कभी किसी से सिर्फ़ एक बार बात करने से भी फ़ायदा होता है। मुझे याद है एक बार हमारे स्कूल की एक टीचर ने सातवीं से लेकर दसवीं क्लास तक की सारी लड़कियों को इकट्ठा किया था। मैं पहली क़तार में बैठी थी और हम सबसे छोटी क्लास में पढ़ने वाले थे। जब टीचर बताने लगी कि किशोरावस्था के दौरान लड़कों और लड़कियों के शरीर में क्या-क्या बदलाव आते हैं, हम सब खिलखिलाकर हंसने लगे। टीचर ने हमारी ओर इशारा किया और कहा, “इन्हें अभी क्या पता कि आगे इनके साथ क्या होने वाला है?”। उन्होंने ये भी कहा कि इस उम्र में हम गर्भवती हो सकते हैं इसलिए लड़कों के साथ घुलने-मिलने में हमें सावधानी बरतनी चाहिए। किशोरावस्था की जगह बात नैतिकता और हमारे चरित्र की ओर चली गई। टीचर ने जो कहा उससे मुझे घबराहट होने लगी। मैं ख़ुद को छोटा महसूस करने लगी और मुझे भेद्यता का एहसास होने लगा। मेरे दिल को गहरी चोट पहुंची और जब मैंने स्मिथ में अपने शरीर के बारे में सीखना शुरु किया, तभी उस चोट का घाव भरने लगा और मैंने अपने शरीर को एक बोझ समझना और उससे डरना भी बंद कर दिया। स्मिथ ने मुझे अपने शरीर की हिफ़ाज़त के लिए सही जानकारी और उपकरण दिए और अब मुझे ऐसा नहीं लगता कि मेरी कोई शारीरिक आज़ादी नहीं है और जो चाहे, जब चाहे मुझे गर्भवती कर सकता है।

हाल ही में मैंने पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय शैक्षणिक विकास पर अपने मास्टर्स की डिग्री हासिल की है और मेरा संगठन जिस तरह से काम करता है उसके बारे में मेरी कई आलोचनाएं हैं। मुझे लगता है जानकारी देने के लिए सिर्फ़ एक या दो सेशन काफ़ी नहीं हैं। हमें एक दीर्घकालिक परियोजना की ज़रूरत है जिसके रहते औरतें और लड़कियां जब चाहे कोई भी जानकारी हासिल कर सकती हैं, क्योंकि हम सबके शरीर अलग-अलग तरह से काम करते हैं और हम कई बदलावों से गुज़रते हैं जिनके लिए हम मानसिक तौर पर तैयार नहीं होते। मुझे याद है एक औरत ने मुझसे कहा था कि, “हमें तो इन बाहरवालों की आदत पड़ गई है जो हर दूसरे दिन हमारी ‘मदद’ करने के लिए अपनी योजनाएं और अपने भाषण लेकर चले आते हैं।” मुझे लगता है NLG का काम भी कुछ ऐसा ही हो गया है, ख़ासकर इसलिए क्योंकि कोविड महामारी ने हमारा सारा काम लंबे समय तक चौपट कर दिया था और हम सब अपने-अपने भविष्य के सपने पूरे करने में भी मशगूल हो गए थे। हमसे जो हो सका वो हमने किया, लेकिन हमें अपने क़ायदे और मज़बूत करने की ज़रूरत है। हमें स्थानीय संसाधनों को सुधारने और उन्हें हर किसी तक पहुंचाने की ज़रूरत है ताकि वे सिर्फ़ हमारे आने पर निर्भर न रहें। ऊपर से ये दिक़्क़त भी है कि हमारे नेता ही यौनिकता शिक्षा की अहमियत नहीं समझते और सरकारी मदद के बग़ैर ये रास्ता और भी पेचीदा हो जाता है।

मैं ख़ुद को याद दिलाती रहती हूं कि बदलाव धीरे-धीरे ही आता है। शायद मैं बेचैन हो रही हूं, मगर ये सच है कि हम लड़कियों और औरतों को एक ख़ुशहाल ज़िंदगी दिलाने के लिए ज़िंदगीभर इंतज़ार नहीं कर सकते। आज औरतों की यौनिकता और सेहत पर खुली चर्चा करना बेहद ज़रूरी है क्योंकि वक़्त बदल गया है और आज की युवा पीढ़ी के पास दुनिया के बारे में जानने के कई तरीक़े हैं। हमें ज़रूरत है पारंपरिक ख़्यालों को आधुनिकता से मिलाने की, क्योंकि यौनिकता शिक्षा को हम सिर्फ़ इसलिए अनदेखा नहीं कर सकते क्योंकि ये “हमारी संस्कृति के ख़िलाफ़ है”।

संदर्भ

एंग्स्ट, जे. (2011) रिप्रोडक्टिव पॉलिटिक्स ऐट द बॉर्डर – प्रोनेटलिस्म, इंटरमैरिज, एंड मोरल मूवमेंट्स इन लद्दाख, इंडिया, प्रोक्वेस्ट। इधर उपलब्ध – https://www.proquest.com/

एंग्स्ट, जे. (2008) रिप्रजेंटेशन एंड परसेप्शन – वाई रिप्रोडक्शन मैटर्स इन लद्दाख, WordPress.org। इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर लद्दाख स्टडीज़। https://ladakhstudies553872937.files.wordpress.com/2018/03/ls23.pdf (Accessed: January 24, 2023)

चिन, एन. पी.; डाई, टी. और ली, आर. (2008) वीमेनस नैरेटिव लाइफ़ हिस्ट्रीज़ – इम्प्लिकेशन्स फॉर मटेरियल एंड चाइल्ड हेल्थ इन लद्दाख, ब्रिल। इधर उपलब्ध – https://brill.com/display/book/edcoll/9789047443346/Bej.9789004167131.i-313_013.xml?language=en (Accessed: January 24, 2023)

डोलकर, टी. और साथी (2021) वीमेन एंड चिल्ड्रेन हेल्थ स्टेटस ऑफ़ नोमैडिक पीपल ऑफ़ चांगथंग लद्दाख, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ करंट माइक्रोबायोलॉजी एंड एप्लाइड साइंसेज़। इधर उपलब्ध –
https://ijcmas.com/10-4-2021/Tashi%20Dolkar,%20et%20al.pdf

त्सेवांग चुस्किट लद्दाख से हैं। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ एजुकेशन में अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक विकास कार्यक्रम के दिसंबर 2022 स्नातक, त्सेवांग को लद्दाख में और उसके बाहर यौन स्वास्थ्य शिक्षा में काम करने का अनुभव है। 2015 में, उन्होंने महिला स्वास्थ्य परियोजना, न्यू लद्दाखी गर्ल्स की सह-स्थापना की, जिसने लगभग 1500 लड़कियों और महिलाओं को उनके शरीर के बारे में सिखाया है।

ईशा द्वारा अनुवादित।
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