Scroll Top

महामारी, आत्म-देखभाल, और सामूहिक देखभाल – ‘तारशी’ के अनुभव

An artwork that depicts humanoid figures in various postures connected to each other on a black background with twinkling stars.

मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी की वजह से देशभर में लागू किये गए लॉकडाउन ने हम सबकी ज़िंदगियां बदल डाली थीं। कई संस्थानों को ‘वर्क फ़्रॉम होम’ शुरु करना पड़ा जिसका असर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत भारी साबित हुआ। फ़िक्र की कई सारी वजहें थीं जैसे सेहत, आर्थिक तंगी, घरवालों की सेहत और सुरक्षा, नौकरी की सुरक्षा, अकेलापन, क़रीबी लोगों से दूर होना, दूसरों के मुश्किल हालातों के बारे में सुनना, पढ़ना, या उन्हें अपनी आंखों से देखना, घर की ज़िम्मेदारियां बढ़ जाना, पढ़ाई में नुक़सान, और सिर्फ़ स्क्रीन के ज़रिए लोगों से जुड़ पाना (और उन लोगों से न जुड़ पाना जिनके पास इंटरनेट नहीं है)।

ये मानसिक स्वास्थ्य संकट भयावह साबित होता रहा और शायद पहली बार सरकार और ग़ैर-सरकारी संगठनों की तरफ़ से हेल्पलाइनों और काउंसलिंग के ज़रिए लोगों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने की कोशिश की गई। स्वास्थ्य कर्मचारियों, एनजीओ में काम करने वालों, थेरपिस्टों, शिक्षकों जैसे ‘पीपल वर्क’ (‘people work’) करने वालों की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया जाने लगा।

लेकिन एक ऐसे देश में, जहां मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात नहीं की जाति और मदद मांगने को आज भी शर्म के नज़रिये से देखा जाता है, ये कोशिशें काफ़ी नहीं हैं। अक्सर इस बात को ध्यान में नहीं रखा जाता कि हमारा मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ हमारी इकलौती ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि उन संस्थाओं और व्यवस्थाओं की भी ज़िम्मेदारी है जिनका हम हिस्सा हैं। इसलिए हमारी सेहत और ख़ुशहाली बनाए रखने के लिए इनका योगदान ज़रूरी है।

1996 में जब तारशी की स्थापना हुई थी, हम एक हेल्पलाइन चलाया करते थे जहां यौनिकता के मुद्दों पर काउंसलिंग और जानकारी दी जाती थी। इसी समय से तनाव नियंत्रण और बर्नाउट से बचाव हमारे काम का एक अहम हिस्सा रहा है। हम ये जानते थे (और जानते हैं) कि जिस समाज में आज भी अधिकतर लोगों को उनके यौनिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं, वहां आनंद को प्राथमिकता देने के नज़रिये से यौनिकता के मुद्दों पर काम करना अक्सर तनाव और बर्नाउट की वजह बन जाती है। इसलिए हमने कई तकनीकें आज़माई हैं अपने कार्यस्थल में एक ऐसा माहौल बनाने के लिए जहां बर्नाउट से बचाव और आत्म-देखभाल को प्राथमिकता दी जा सके। पिछले कई सालों में हमने ‘पीपल वर्क’ करने वालों के साथ आत्म-देखभाल, तनाव नियंत्रण, और बर्नाउट से बचाव पर जानकारी साझा करने में अपने काम को आगे बढ़ाया है। 2020 में हम इससे जुड़ी कई गतिविधियों में शामिल हुए और साथ ही अपना ख़्याल भी रखा। आइए बताते हैं कि हमने क्या-क्या किया और क्या सीखा।

तारशी और अन्य संगठनों में टीम सामूहिक देखभाल

शुरुआत से ही टीम सामूहिक देखभाल (टीम के सभी सदस्यों का आत्म-देखभाल पर ध्यान दे पाना) को हम अहमियत दे आए हैं और महामारी के दौरान (यानी 2020-2021 में) भी ये बदला नहीं। हम हर हफ़्ते अपने ख़्याल एक-दूसरे से साझा करने के लिए ऑनलाइन जुड़ते थे ताकि हम बेहतर महसूस कर सकें और इसका सकारात्मक असर हमारे काम पर हो। कई हफ़्तों के लिए हमने गाइडेड मेडिटेशन, एनर्जी मेडिसिन, जर्नलिंग, कलात्मक गतिविधियों जैसे कई तरीक़े आज़माकर देखा। इन्हें आज़माते वक़्त हमने हर बार कुछ नया सीखाーइनके बारे में और ख़ुद के बारे में। हम किसी एक पल में कैसा महसूस कर रहे हैं ये हम कैसे पता करते हैं (ये जानना मुश्किल हो सकता है लेकिन हम SUE स्केल की मदद ले सकते हैं)? हम कैसे पता कर सकते हैं कि हमें कब किस चीज़ की ज़रूरत है? हर हफ़्ते मिलकर टीम सामूहिक देखभाल के लिए ये तरीक़े आज़माना और जहां तक हो सके एक-दूसरे से अपनी भावनाएं साझा करना ऐसे में हमारे लिए फ़ायदेमंद साबित हुआ है। 2020 में हमने सोशल मीडिया पर इन तरीक़ों के साथ टीम सदस्यों का अनुभव भी साझा किया था।

इस सोशल मीडिया कैंपेन पर प्रतिक्रिया ने हमें ये सोचने पर मजबूर किया कि बाक़ी संगठन टीम सामूहिक देखभाल या आत्म-देखभाल के लिए क्या करते हैं? क्या वे यक़ीन करते हैं कि ख़ुशहाली की स्थिति बनाए रखने में हर सदस्य का बराबर योगदान हो सकता है? हमने ये सवाल अंतर्राष्ट्रीय आत्म-देखभाल दिवस (जुलाई 24) के आस-पास किया था और हमें ये जवाब मिले। हम जानते हैं कि वर्क फ़्रॉम होम जैसी परिस्थितियों के चलते महामारी के दौरान सामूहिक देखभाल पर ध्यान देना काफ़ी मुश्किल था, फिर भी ये जानकर अच्छा लगा कि इस क्षेत्र में काम करने वाले बहुत लोग अपनी टीमों में एक सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।


‘पीपल वर्क’ करनेवालों के लिए आत्म-देखभाल संसाधनों की वेबसाईट

हमने तनाव नियंत्रण और बर्नाउट से बचाव पर एक वर्कशॉप में हिस्सा लेने वाले लोगों के लिए आत्म-देखभाल की एक टूलकिट बनाई थी लेकिन महामारी की वजह से हम ये वर्कशॉप नहीं कर पाए। वर्क फ़्रॉम होम और मानसिक स्वास्थ्य पर ऑनलाइन चर्चा होने के दौरान हमने सोचा कि क्यों न इस टूलकिट का एक ऑनलाइन संस्करण बनाया जाए?

सेल्फ़-केयर एसेंशियल्स की शुरुआत यहीं से हुई।

सबसे पहले हमने इस वेबसाईट पर वो सारे वर्कशीट डाले जिनका इस्तेमाल हम तनाव नियंत्रण और बर्नाउट से बचाव पर वर्कशॉप्स में करते हैं और साथ ही कुछ नए वर्कशीट भी बनाए। हर वर्कशीट की जांच टीम के साथ की गई ये तय करने के लिए कि इस अभ्यास करने के लिए कितना दिल और दिमाग़ लगाने की ज़रूरत है, इसे कितनी गंभीरता से करना है वग़ैरह ताकि हम ये जानकारी वर्कशीट में शामिल कर सकें जिससे करने वाले को पता चल सके कि वो इसे कर सकते हैं या नहीं।

साइट के लिए संसाधन एकत्रित करना भी अपने आप में एक बहुत बड़ा काम था। हमें कई सारे लेख पढ़ने पड़े ये देखने के लिए कि आत्म-देखभाल पर इनका दृष्टिकोण हमसे मिलता-जुलता है या नहीं, क्योंकि हम मानते हैं कि ख़ुद की देखभाल और ख़ुशहाली एक अधिकार है और हमारी वेबसाईट के अन्य लेख भी इसी बात पर जोर डालते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान हमने ख़ूब मज़े भी किये (आप टाइमपास पर नज़र डाल सकते हैं)। हम साइट पर जितना काम करते गए, हमें ख़ुद को उसमें और भी चीज़ें जोड़ते रहने से रोकना पड़ा क्योंकि शामिल करने के लिए इतना कुछ था लेकिन सब कुछ शामिल करना नामुमकिन था!

वेबसाईट बनाने का काम करने वालों के लिए वर्डप्रेस सीखना एक चुनौती था। तस्वीरें, टेक्स्ट, वीडियो अपलोड करना सीखना एक लंबी प्रक्रिया थी। हमारी टीम रोज़ सवालों, उनके जवाबों, और काम कितना आगे बढ़ा है इस पर बात करने के लिए ऑनलाइन इकट्ठा होती थी। महामारी के दौरान ऐसा करना चुनौतीपूर्ण था मगर ये हमें ताक़त भी देता था। इस दौरान हम एक-दूसरे का हालचाल भी पूछते थे और कोई अगर ज़्यादा तनाव में हो तो उसके काम की ज़िम्मेदारियां कम भी कर देते थे।

जब हमने गहरी आंतरिक और बाहरी समीक्षा के बाद दिसंबर 2020 में सेल्फ़-केयर एसेंशियल्स को लॉन्च किया, हम शुक्रगुज़ार थे कि हम एक ऐसा ऑनलाइन मंच बना पाए हैं जहां आत्म-देखभाल और सामूहिक देखभाल पर कई सारे संसाधन एक ही जगह उपलब्ध थे। ये वेबसाईट बनाते हुए हमने बहुत कुछ सीखा और हमें बहुत मज़ा आया और हमें उम्मीद है कि आपका भी अनुभव ऐसा हो। आप इसे https://www.tarshi.net/selfcare/selfcare-resources-hindi/ पर देख सकते हैं।

तनाव नियंत्रण और बर्नाउट से बचाव पर एक ऑनलाइन कोर्स

महामारी की वजह से तनाव नियंत्रण और बर्नाउट से बचाव पर आयोजित हमारे वर्कशॉप रद्द हो गए थे इसलिए कुछ दिन हमने ये वर्कशॉप वेबिनार के रूप में करने की कोशिश की और आख़िरकार ऑनलाइन कोर्सेस पर अपने बरसों के तजुर्बे को काम पर लगाने का फ़ैसला किया (हम 2011 से ऑनलाइन कोर्स बनाते आए हैं) और इस मुद्दे पर एक छोटा-सा कोर्स बनाने का सोचा।

हम चाहते थे कि ये कोर्स सेल्फ़-केयर एसेंशियल्स पर हमारे काम को आगे बढ़ाए और इसे करने वालों को सिर्फ़ तनाव और बर्नाउट पर जानकारी ही न मिले बल्कि वे अपनी ज़िंदगी पर इन चीज़ों का असर भी समझ पाएं। हम चाहते थे कि वे अपने तनाव की ख़ास वजहों को समझें, जानें कि उनकी यौनिकता और पहचान के दूसरे पहलू किस तरह तनाव का कारण बन सकते हैं, और इस जानकारी की मदद से अपना तनाव नियंत्रण में ला सकें। हम ये भी चाहते थे कि तनाव और बर्नाउट से जूझने को सिर्फ़ किसी की इकलौती ज़िम्मेदारी के तौर पर न देखा जाए और कोर्स लोगों को तनाव के विभिन्न स्रोतों (निजी, संस्थागत, व्यवस्थागत) के बारे में सिखा सके जिसके चलते सामूहिक देखभाल को अहमियत दी जा सके।

हमने इस कोर्स का नाम रखा ‘रिफ़्लेक्ट, रीअलाइन, रिन्यू: मैनेज स्ट्रेस ऐंड कीप बर्नाउट अवे’। हम फ़िलहाल इस अंग्रेज़ी कोर्स के हिंदी संस्करण पर काम कर रहे हैं।

कोर्स के कुछ हिस्से जल्दी ख़त्म हो गए लेकिन आख़िरी हिस्सा काफ़ी चुनौतीपूर्ण था। इसमें तनाव और बर्नाउट से बचने के लिए ज़रूरी आदतों का ‘मेन्यू’ बनाने की बात की गई है, जिस पर काम हम ऑफ़लाइन वर्कशॉप में बेहतर तरीक़े से कर सकते थे। हमने कई उपकरण साझा किये होते और हिस्सेदारों को उनके अनुभवों के बारे में पूछ सकते जो हम सबके लिए फ़ायदेमंद होता। हम जानते थे कि एक ऑनलाइन कोर्स में लोग तनाव नियंत्रण पर कुछ ठोस सुझावों और जानकारी की उम्मीद करने वाले हैं, जैसे अपनी भावनाओं को बारीक़ी से समझना, ‘सुरक्षित स्थान’ क्या होता है ये जानना, सामूहिक देखभाल कैसे होती है ये सीखना वग़ैरह। हमने कई सुझावों को परखकर देखा और उनमें से कुछ चीज़ें चुनीं जिन्हें एक छोटे कोर्स में शामिल करना मुमकिन था। हमें ये ध्यान में रखना था कि बहुत ज़्यादा जानकारी देने से कोर्स को करने वाले पर दबाव बन सकता है।

कॉन्टेन्ट बनाते दौरान टीम सदस्यों में काफ़ी गहरी बातचीत हुई। हमने कई मुद्दों पर अपने विचार बेहतर तरीक़े से बयां करना सीखा और इन पर अपने पूर्वाग्रहों का सामना भी किया। हमने कई सवाल किये जैसे, “हम ये कैसे समझाएं कि ‘कभी-कभी तनाव अच्छा हो सकता है’ ऐसा सोचना ग़लत है?” “तनाव के कारणों पर बात करते हुए हम जेंडर, यौनिक पहचान, शिक्षा, विकलांगता, वैवाहिक अवस्था, वर्ग, धर्म, पेशा, रहने का स्थान, जाति जैसे कारकों पर कैसे बात करें?” क़दम-क़दम पर हमने नई चीज़ें सीखीं, पुरानी बातों को अपने मन से निकाला, और ख़ुद को चुनौती दी। महामारी के दौरान ये काम करने का मतलब था कोर्स में बताई गईं चीज़ों के बारे में ख़ुद को याद दिलाते रहना और इसी तरह काम के ज़रिए अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते रहना। हम ये बातें ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से कर रहे थे इस बात की हमें बहुत ख़ुशी भी थी।

ये तारशी का पहला वीडियो-आधारित कोर्स था और ये सारे वीडियो बनाना हमारे लिए एक बिलकुल नई चुनौती थी। हमने कोर्स सामग्री को आकर्षक बनाने के लिए कई सारे विज़ुअल तत्वों का इस्तेमाल किया और ये ध्यान में रखा कि ये तस्वीरें किसी एक जेंडर पहचान, जाति, रंग, शारीरिक आकृति, या शारीरिक अवस्था को चित्रित करने तक सीमित न रह जाए। कोर्स तनाव और बर्नाउट नियंत्रण के बारे में है इसलिए ये भी ज़रूरी था कि इसका डिज़ाइन और इसके सभी वीडियो, इंफ़ोग्राफ़िक, और तस्वीरें आंखों और मन को सुकून देने वाले हों। इस कोर्स में कुछ अभ्यास भी हैं जिन्हें करने के बाद मन ‘भारी’ हो सकता है इसलिए पूरे कोर्स में कई ‘एनर्जाइज़र’ बताए गए हैं ताकि लोग ‘ब्रेक’ लेते रहें।

हमें इस कोर्स का हिंदी संस्करण आप तक पहुंचाने का बेसब्र इंतज़ार है। इस पर जानकारी के लिए हमसे जुड़े रहिएगा!

इस महामारी ने हमें बहुत कुछ सोचने और सीखने के लिए मजबूर किया है और हमें अपना ख़याल रखने की ज़रूरत की याद दिलाई है। तारशी के सदस्य बहुत ख़ुशक़िस्मत है कि हम ऐसा कर पाए हैं और हमने जो कुछ भी सीखा वो आपसे साझा कर पाए हैं।


तारशी की ओर से नलिनी शर्मा, निधि चौधरी, प्रभा नागराजा और राम्या आनंद को उनके सुझाव के लिए धन्यवाद!


ईशा द्वारा अनुवादित।
To read this article in English, click here.

Cover Image: Artwork by Ana Filipa dos Santos Lopes for The Greats.