A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
हमें इस तरह से ढाला गया है कि तथाकथित ‘विकल्प’ जो हमारे संबंधों को परिभाषित करते हैं, वे भी हमारे लिए हुए विकल्प नहीं बल्कि समाज द्वारा सृजित हैं। हालाँकि, जैसा कि हमने देखा है, इन सभी चुनौतियों के बावजूद, महिलाएँ, जब वे खुद को व्यक्तियों के रूप में महत्वपूर्ण मानने लगती हैं, तो वे अपने परिवेश और परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करने की रणनीति तैयार करती हैं।
लिहाफ़ कहानी न केवल उस समय की अनकही सच्चाई का वर्णन है बल्कि इस कहानी ने महिला यौनिकता के निषेध समझे जाने वाले विषय और विषमलैंगिक विवाह सम्बन्धों के सन्दर्भ में भी महिलाओं की यौनिक इच्छा के विषय को लोगों के सामने उजागर कर दिया।
उर्दू शायरी की एक पूरी शैली है, ‘रेख़्ती’, जो औरतों के नज़रिये से लिखी गई है और जिसमें औरतों की ज़िंदगी और भावनाओं की बात होती है। ये ‘रेख़्ता’ का उल्टा है, जो कि मर्द के नज़रिये से लिखा गया साहित्य है।
कुछ अधिकार ऐसे होते हैं, जिन्हें जब तक छीन न लिया जाए, उनके होने का एहसास ही नहीं होता। तुम्हारे लिए किसी लड़की को पसंद करना, प्यार में पड़ना, उनके बारे में अपने दोस्तों से और परिवार वालों से बात करना बिलकुल स्वाभाविक है। तुम जैसा सोचते हो, जैसा महसूस करते हो वह आसानी से कह सकते हो।
ख्वाबों को बुनान और उसके साथ खेलना – एक अलग ही अहसास है। तुम राजा, तुम रंक। तुम लेखक तुम निर्देशक। तुम्हारा बस चलता है। हम सब के अंदर अलग ख्वाब भरे हुए हैं।
अनीता जो महाराष्ट्र में एक देवदासी हैं, के इस आत्म कथ्य से पता चलता है कि सहमति और हिंसा के मुद्दे हमेशा स्पष्ट और सीधे रूप में सामने नहीं आते। अनीता का कथ्य बताता है कि जीवन की कई परिस्थितियों में वो अपना रास्ता खुद मर्ज़ी अनुसार चुन पाई हैं ।
एक तो यह समझ नहीं आता की आखिर इसे मेनोपॉज़ क्यों कहते हैं? पॉज़ का मतलब तो यह होता है कि किसी चीज़ का कुछ समय के लिए रुकना और आप के चाहने पर दोबारा शुरू हो जाना। मेरे विचार से तो इसे मेनोस्टॉप कहा जाना चाहिए!
यूँ तो विवाह और उससे जुड़े महिलाओं के ‘स्थान परिवर्तन’ को ‘प्रवसन’ का दर्ज़ा दिया ही नहीं जाता है, इसको एक अपरिहार्य व्यवस्था की तरह देखा जाता है जिसमें पत्नी का स्थान पति के साथ ही है, चाहे वो जहाँ भी जाए। पूर्वी एशियाई देशों में, १९८० के दशक के बाद से एक बड़ी संख्या में महिलाओं के विवाह पश्चात् प्रवसन का चलन देखा गया है जिन्हें ‘फॉरेन ब्राइड’ या विदेशी वधु के नाम से जाना जाता है।
अलग-अलग शौचालय बनाने के अपने लाभ हैं, विशेषकर जब कि एक जेंडर को दूसरे जेंडर से खतरा महसूस होता हो। लेकिन इस पूरे कृत्य को सामान्य बना देने और इसे जेंडर भेद से दूर करने से संभव है कि महिलाओं को, जहाँ कहीं भी वे हों, प्रयोग के लिए आसानी से शौचालय उपलब्ध हो सकें।
हमारा मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ हमारी इकलौती ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि उन संस्थाओं और व्यवस्थाओं की भी ज़िम्मेदारी है जिनका हम हिस्सा हैं। इसलिए हमारी सेहत और ख़ुशहाली बनाए रखने के लिए इनका योगदान ज़रूरी है।
मर्दानगी के निर्माण में शर्मिंदगी की भूमिका, और नायक के खुद के विकास के लिए आत्मविश्वास और क्षमता पर इसका प्रभाव, विशेष रूप से उनके प्रारंभिक वर्षों में, खूबसूरती से सामने लाया गया है।