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मेनोपॉज़ और सेक्स

A series of abstract drawings in pink and green, with the cutout of a dancing girl towards the left

लेखिका – साश्वती बैनेर्जी

आप मेरा यकीन माने, जब मैं यह कहती हूँ की उम्र की अधेड़ावस्था या जीवन काल के मध्य में पहुँचना बिलकुल दोधारी तलवार पर चलने जैसा है, तो यह बिलकुल सही है। 50 वर्ष की उम्र से ज़्यादा होते हुए, जीवन में अकेले और सफल होने के अपने ही कुछ लाभ होते हैं। लेकिन साथ-साथ ही इससे जुड़ी समस्याओं का मुक़ाबला भी आप ही को करना होता है। अब इस उम्र में मुझे अपने कॉलेस्ट्रोल के स्तर, हड्डियों की सेहत, खान-पान, शराब के सेवन, पूरी रात पार्टी करने आदि बातों पर विशेष ध्यान देना पड़ता था – आज तक जिन बातों से मैं बिलकुल बेपरवाह रहती थी, अब वे मेरे लिए एक समस्या पैदा करने का कारण बन सकती हैं। लेकिन मैं फिर भी सोचती हूँ कि हालात उतने भी बुरे नहीं हैं। आजकल तो वैसे भी यही कहा जाता है कि 50 वर्ष का होना अब तो 30 के पड़ाव पर पहुँचने जैसा है। लेकिन क्या वाकई ऐसा है? ऐसा सोच कर मैं न जाने किसे बेवक़ूफ़ बनाने की कोशिश कर रही हूँ? खासकर तब जब 50 वर्ष की उम्र का संबंध मेनोपॉज़ या रजोनिवृत्ति से है (एक तो यह समझ नहीं आता की आखिर इसे मेनोपॉज़ क्यों कहते हैं? पॉज़ का मतलब तो यह होता है कि किसी चीज़ का कुछ समय के लिए रुकना और आप के चाहने पर दोबारा शुरू हो जाना। मेरे विचार से तो इसे मेनोस्टॉप कहा जाना चाहिए!)

तो कुल मिलाकर मेरे जीवन की यही वास्तविकता है। मैं शहर में अकेली हूँ और सफल भी। आम तौर पर मेरा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। अब भी मैं लगभग तीन महीने में एक बार रात भर पार्टी कर लेती हूँ। उम्र के साथ-साथ मेरी यौनिकता और इच्छाओं में एक प्रकार की परिपक्वता आ गयी है। अपनी निगाह में तो मुझे मैं मिसेज़ रॉबिनसन लगती हूँ लेकिन क्लब में बैठीं हसीना न जाने मुझे क्यों मिस हैवीशैम समझती है। जैसा कि जोन सी. कैलाहैन अपनी किताब मेनोपॉज़: अ मिड-लाइफ पैसेज में लिखती हैं, “मैं अब पुरुषों को मेमैंटो मोरी की आकृति जैसी लगने लगी हूँ जिसका अस्त होना निश्चित है और जो मृत्यु का बोध कराती है”।

यह सही है कि मेनोपॉज़ या रजोनिवृत्ति की स्थिति अब मेरे जीवन को परिभाषित करती है। अब मुझे शरीर से गर्मी निकलती महसूस होती है, मेरी मनोदशा में अचानक फेरबदल होते हैं, योनि में सूखापन महसूस होता है, और शायद अगर मुझे कोई ऐसा पुरुष मिले जिसे मुझे देखकर मेमैंटो मोरी याद न आये तो शायद मुझे दर्दनाक संभोग का भी अनुभव होगा। लेकिन फिर भी मुझे प्रसूतिशास्री (गयनेकोलॉजिस्ट) रॉबर्ट ए विलसन द्वारा फेमिनिन फॉरेवर में किए गए इस कथन से घोर आपत्ति है कि “कोई भी महिला निश्चित तौर पर यह नहीं सोच सकती कि वो इस जीवंत क्षय की भयावता से अछूती रह पाएगी”। जीवंत क्षय? सच में? मुझे पूरा यकीन है कि बार के पीछे बैठी उस हसीना ने तो ज़रूर यह किताब पढ़ी होगी (वो तब अगर वो बाला सच में पढ़ने की शौकीन होगी या फिर अगर उसे यह पता हो कि मिस हैवीशैम आखिर कौन है तो मैं एक हफ्ते तक हर रोज़ कार्ब वाला भोजन करने के लिए भी तैयार हूँ) ।

ऐसा कब से हो गया कि रजोनिवृत्ति सेहत से जुड़ा एक विषय न रहकर सामाजिक स्थिति का मुद्दा बन गया? ऐसा कब और कैसे हुआ कि रजोनिवृत्ति  की इस स्थिति से निबटने की कोशिश को, जो दुनिया भर में लाखों महिलाओं को मानसिक और शारीरिक तौर पर अनेक चुनौतियाँ सामने लाकर रख देती है, एक मज़ाक का विषय बना दिया गया और इस पर चुटकुले बनने लगे? ऐसा क्यों है कि प्रचलित मीडिया में एक खास उम्र की और किसी विशेष परिस्थिति के साथ जी रहीं महिलाओं को हमेशा ही नीरस, सेक्स-विहीन, और डिप्रेस्सड जैसे उपनामो के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है? यह सही है कि कभी कभी ऐसी कुछ फिल्में और नाटक (जैसे द हॉट फ्लैशेज़, मेनोपॉज़ म्यूज़ीकल, आई गॉट लाइफ) भी देखने को मिल जाते हैं जो इसके विपरीत वास्तविकता का वर्णन करते हुए एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, लेकिन ऐसी फिल्में अथवा नाटक बहुत कम और कभी-कभी ही देखने को मिलते हैं। फिल्मों के बड़े पर्दे पर और टेलीविज़न में अब भी मेनोपॉज़ को या तो स्त्रियों के प्रति द्वेष के दृष्टिकोण से दिखाया जाता है या फिर इसे निषिद्ध मानकर इस पर कोई चर्चा ही नहीं की जाती।

खैर, मेरे विचार से, अब समय आ चुका है जब हमें रजोनिवृत्ति को लेकर भी एक मी टू आंदोलन की शुरुआत कर देनी चाहिए। अब समय आ गया है कि हम चुप्पी तोड़कर, अपनी यौनिकता, अपनी इच्छाओं, अपनी उम्र का उत्सव बिना किसी ग्लानि या शर्म के मनाना शुरू कर दें। जी बिलकुल, अभी ही वह समय है जब हमें चाहिए कि हम अपने घरों की छतों पर जा चढ़ें और चिल्ला-चिल्ला कर लोगों के सामने ये घोषणा करें, “मूर्खों, मेरा मेनोपॉज़ शुरू हो चुका है लेकिन सेक्स तो मैं अब भी करना चाहती हूँ।”

नोट – लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं।

साश्वती बैनेर्जी भारत में सैसमी वर्कशॉप (Sesame Workshop) की प्रबंध निर्देशिका हैं। इस संस्था की प्रमुख के रूप में साश्वती बैनर्जी मीडिया द्वारा लोगों को शिक्षित कर पाने की क्षमता में वृद्धि के लिए नवोदय और सारगर्भित सामग्री तैयार करने के मिशन की अगुवाई करती हैं जिससे कि पढ़ने वाले बच्चे अधिक चतुर, सक्षम और दयालु बन पाएँ। भारत में सैसमी वर्कशॉप में आने से पहले साश्वती बैनेर्जी ए.बी.टी. असोसियेट्स में कार्यक्रम निर्देशिका और संवाद प्रबन्धक के पद पर कार्यरत थीं। यहाँ रहते हुए उन्होने भारत में महिलाओं के लिए प्रजनन विकल्प उपलब्ध करवाने के प्रयासों के तहत अनेक संचार परियोजनाओं को तैयार कर संचालित किया। वे मुंबई की पॉइंट औफ व्यू (Point of View) नामक एनजीओ के प्रबंधन बोर्ड की सदस्या हैं। यह संस्था अभिव्यक्ति की आज़ादी का मार्ग प्रशस्त करने और महिलाओं की आवाज़ों को आगे बढ़ाने के कार्य में संलग्न है।साश्वती बैनेर्जी क्रिया (CREA) नामक नारीवादी मानवाधिकार संस्था के प्रबंधन बोर्ड की भी सदस्या है।

 

सोमेंद्र कुमार द्वारा अनुवादित

 

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