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शहरी पुणे के एक नगरपालिका स्कूल की आठवीं कक्षा – एक सह-शिक्षा कक्षा जिसमें 18 लड़के और 12 लड़कियाँ हैं – के कुछ अनुभव
यह बात 2013 की सर्दियों के समय की है। एक शाम मैं और मेरे पिता, घर की बैठक में सोफ़े…
अपने यौन रुझानो के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव के डर के बिना, अपनी यौनिकता को उन्मुक्त और स्वतंत्र रूप से प्रकट कर पाने को, यौनिक अधिकारों की श्रेणी में शामिल किया गया है।
यूँ तो विवाह और उससे जुड़े महिलाओं के ‘स्थान परिवर्तन’ को ‘प्रवसन’ का दर्ज़ा दिया ही नहीं जाता है, इसको एक अपरिहार्य व्यवस्था की तरह देखा जाता है जिसमें पत्नी का स्थान पति के साथ ही है, चाहे वो जहाँ भी जाए। पूर्वी एशियाई देशों में, १९८० के दशक के बाद से एक बड़ी संख्या में महिलाओं के विवाह पश्चात् प्रवसन का चलन देखा गया है जिन्हें ‘फॉरेन ब्राइड’ या विदेशी वधु के नाम से जाना जाता है। इन देशों की लिस्ट में भारत के साथ जापान, चीन, ताइवान, सिंगापुर, कोरिया, नेपाल जैसे कई देशों के नाम हैं। यदि विवाह से जुड़े प्रवसन को कुल प्रवसन के आकड़ों के साथ जोड़ा जाए तो शायद ये महिलाओं का सबसे बड़ा प्रवसन होगा।
यूँ तो विवाह और उससे जुड़े महिलाओं के ‘स्थान परिवर्तन’ को ‘प्रवसन’ का दर्ज़ा दिया ही नहीं जाता है, इसको एक अपरिहार्य व्यवस्था की तरह देखा जाता है जिसमें पत्नी का स्थान पति के साथ ही है, चाहे वो जहाँ भी जाए। पूर्वी एशियाई देशों में, १९८० के दशक के बाद से एक बड़ी संख्या में महिलाओं के विवाह पश्चात् प्रवसन का चलन देखा गया है जिन्हें ‘फॉरेन ब्राइड’ या विदेशी वधु के नाम से जाना जाता है।
हालांकि यह शो किसी भी तरह से अचूक या सर्वोत्तम नहीं है, लेकिन यह सही तरीके से यौनिकता, कल्पना और यौन अभिव्यक्ति के तत्वों के अंतर्संबंधों को मुख्य कथानक बिंदुओं के रूप में जोड़ता है।
अलग-अलग शौचालय बनाने के अपने लाभ हैं, विशेषकर जब कि एक जेंडर को दूसरे जेंडर से खतरा महसूस होता हो। लेकिन इस पूरे कृत्य को सामान्य बना देने और इसे जेंडर भेद से दूर करने से संभव है कि महिलाओं को, जहाँ कहीं भी वे हों, प्रयोग के लिए आसानी से शौचालय उपलब्ध हो सकें।
वेरोनिका विडाल व् सुज़न टोलमे द्वारा संपादकीय नोट – इन प्लेनस्पीक के इस अंक में हम ‘समुदाय एवं यौनिकता’ के…
व्यक्तिगत रूप से मुझे, एक युवा अविवाहित लड़की से अब प्रगतिशील और सकारात्मक प्रभाव और संतोषजनक सम्बन्ध रख चुकी उम्रदराज़ विवाहित महिला बनने के इस सफर से अपने निजी जीवन में अपनी प्राथमिकताएँ निर्धारित करने में बहुत मदद मिली है।
हमारा मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ हमारी इकलौती ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि उन संस्थाओं और व्यवस्थाओं की भी ज़िम्मेदारी है जिनका हम हिस्सा हैं। इसलिए हमारी सेहत और ख़ुशहाली बनाए रखने के लिए इनका योगदान ज़रूरी है।
पितृसत्ता ने मर्दानगी को विषमलैंगिकता और यौनिक वर्चस्व से जोड़ा है, जिससे पुरुषों पर ‘सच्चा मर्द’ बनने का दबाव बढ़ता है। यह न केवल समलैंगिक और द्विलैंगिक पुरुषों को हाशिए पर डालता है, बल्कि विषमलैंगिक पुरुषों के लिए भी यौनिक अभिव्यक्ति को सीमित करता है।
किशोरावस्था के दौरान जब हम अपनी यौनिकता से रूबरू हो रहे होते हैं, तब सामाजिक तौर पर हमे बताया गया जेंडर ही निर्धारित करता है कि हम अपनी पहचान कैसे बना रहे हैं जो ज़्यादातर मामलों में हमारी पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है।
मर्दानगी के निर्माण में शर्मिंदगी की भूमिका, और नायक के खुद के विकास के लिए आत्मविश्वास और क्षमता पर इसका प्रभाव, विशेष रूप से उनके प्रारंभिक वर्षों में, खूबसूरती से सामने लाया गया है।
2013 के अक्टूबर के पहले हफ्ते का ख़त्म हो रहा था जब मैं और मेरे मामा प्रदीप के घर गए…
इनोसेंते नामक 40 वर्षीय नेत्रहीन पुरुष ने ज़ाम्बिया में ‘ह्यूमन राइट्स वाच’ संगठन के अनुसंधानकर्ता को बताया, ‘“लोग कहते हैं…