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मर्दानगी पर पुनर्विचार – प्रभुत्व से नहीं, साझेदारी से बनता है मर्द

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समाज में मर्दानगी को शक्ति, आक्रामकता और प्रभुत्व से जोड़ा जाता है, जिससे न केवल पुरुषों पर बल्कि सभी जेंडर के लोगों की यौनिकता पर गहरा असर पड़ता है। पितृसत्ता ने मर्दानगी को विषमलैंगिकता और यौनिक वर्चस्व से जोड़ा है, जिससे पुरुषों पर ‘सच्चा मर्द’ बनने का दबाव बढ़ता है। यह न केवल समलैंगिक और द्विलैंगिक पुरुषों को हाशिए पर डालता है, बल्कि विषमलैंगिक पुरुषों के लिए भी यौनिक अभिव्यक्ति को सीमित करता है। मर्दानगी का यह सख्त ढांचा यौनिकता को नियंत्रण और प्रदर्शन का साधन बना देता है, जिससे असहमति और संवेदनशीलता को कमज़ोरी माना जाता है। ज़रूरी है कि मर्दानगी को व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए, जहां यौनिकता अभिव्यक्ति और सहमति पर आधारित हो, न कि शक्ति और दबाव पर।

वहीं बात की जाए मर्दानगी (Masculinity) की तो, मर्दानगी का मतलब है पुरुषों से जुड़ी वे गुण, व्यवहार और भूमिका, जिन्हें समाज पुरुषों से अपेक्षित मानता है। यह एक सामाजिक निर्माण (Social Construct) है, यानी समाज के बनाए हुए विचारों और मान्यताओं का परिणाम। मर्दानगी के कई रूप होते हैं। कुछ ऐसे हैं जो सकारात्मक, पोषक और सहयोगी होते हैं, जबकि कुछ को विषाक्त (Toxic) माना जाता है, जो समाज में हिंसा, दबाव और असमानता को बढ़ावा देते हैं।

मर्दानगी के कुछ प्रकार

1. पारंपरिक मर्दानगी (Traditional Masculinity)

यह वह सोच है जिसमें पुरुषों को ताकतवर, भावना-विहीन, और संघर्षशील माना जाता है। समाज उनसे अपेक्षा करता है कि वे कमज़ोरी न दिखाएं, इसके साथ साथ मज़बूत और सार्थक निर्णय लें और परिवार का पालन-पोषण करें। मुहं दबा कर हंसना, आंख में आंसू लाना इत्यादि – ये सब भी समाज इसी मर्दानगी के तहत मना करता आया है।

2. विषाक्त मर्दानगी (Toxic Masculinity)

पारंपरिक मर्दानगी से विषाक्त मर्दानगी बनने की प्रक्रिया समाज ने मर्दानगी को कुछ तय पैमानों में बांध दिया है—जैसे कि मर्द को हमेशा मज़बूत, आत्मनिर्भर और ताकतवर होना चाहिए। जब ये बातें हद से ज़्यादा बढ़ जाती हैं या दूसरों पर थोपी जाती हैं, तो यह विषाक्त मर्दानगी बन जाती है।

इसमें पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सख्त, आक्रामक, और भावनाओं को दबाकर रखें। यह सोच पुरुषों को ख़ुद के साथ-साथ दूसरों के लिए भी हानिकारक बनाती है। इसके साथ, विषाक्त मर्दानगी वह सोच भी है जो पुरुषों को शक्ति-प्रधान बनने के लिए मजबूर करती है। यह सोच पुरुषों से यह अपेक्षा करती है कि वे कभी रोएं नहीं, कमज़ोरी न दिखाएं और हर समस्या से अकेले लड़ें।

विषाक्त मर्दानगी के लक्षण

  • शक्ति और दूसरों पर नियंत्रण रखने की इच्छा।
    विषाक्त मर्दानगी में पुरुषों से शक्ति, प्रभुत्व और नियंत्रण बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। भावनात्मक संवेदनशीलता को कमज़ोरी माना जाता है, जिससे पुरुष आक्रामक और कठोर बनने का प्रयास करते हैं। यह प्रवृत्ति दूसरों पर हावी होने और निर्णय थोपने की प्रवृत्ति को जन्म देती है।
  • यौनिक भूमिकाओं पर ज़ोर
    विषाक्त मर्दानगी में पुरुषों से पारंपरिक भूमिकाओं का पालन करने की अपेक्षा की जाती है, जैसे आर्थिक रूप से सक्षम होना या परिवार का मुखिया बनना। इस सोच से महिलाओं के प्रति असमानता और भेदभाव बढ़ता है, जिससे जेंडर समानता को चोट पहुंचती है।
  • हिंसा को सामान्य बनाना
    आक्रामकता और हिंसा को मर्दानगी का हिस्सा मान लिया जाता है। पुरुषों को संघर्ष में ताकत दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह सोच घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और अन्य अपराधों को बढ़ावा देती है, जो समाज में असुरक्षा का माहौल पैदा करती है।
  • दूसरे जेंडर या यौनिक पहचान के प्रति असहिष्णुता
    विषाक्त मर्दानगी के कारण LGBTQ+ समुदाय के प्रति नकारात्मक सोच और भेदभाव बढ़ता है। “मर्द” होने के नाम पर अलग-अलग यौनिक पहचानों का अपमान किया जाता है।

3 . सकारात्मक/ पोषक मर्दानगी (Positive Masculinity)

इस प्रकार की मर्दानगी में पुरुषों को भावनाओं को व्यक्त करने, दूसरों का सम्मान करने और सहयोगी बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। यह सोच समानता और संवेदनशीलता पर आधारित होती है। पोषक मर्दानगी ऐसी सोच और व्यवहार भी है जो पुरुषों को अपने व्यक्तित्व के हर पहलू को स्वस्थ और संतुलित रूप से अपनाने के लिए प्रेरित करती है। यह मर्दानगी का ऐसा रूप है जो सम्मान, करुणा, और ज़िम्मेदारी को महत्व देता है, और समाज में सकारात्मक प्रभाव डालता है।

पोषक मर्दानगी के गुण

  • सम्मान और समानता – पोषक मर्दानगी का सबसे महत्वपूर्ण गुण है दूसरों के प्रति सम्मान और समानता का व्यवहार करना। इसका मतलब है कि पुरुष महिलाओं, इसके अलावा अलग जेंडर के लोगों, बच्चों, बुज़ुर्गो और समाज के हर किसी के साथ बराबरी का बर्ताव करना। किसी को कमज़ोर या छोटा नहीं समझना। महिलाओं और अलग जेंडर के लोगों के साथ बराबरी का व्यवहार, उनके अधिकारों का समर्थन और उनकी भावनाओं की कद्र करना भी सकारात्मक मर्दानगी का हिस्सा है।
  • ज़िम्मेदारी निभाना – पोषक मर्दानगी में ज़िम्मेदारी का भाव बहुत ज़रूरी है। इसका मतलब है कि पुरुष अपने परिवार, दोस्तों, और समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हैं और निभाते हैं जैसे घर की देखभाल, बच्चों की परवरिश, रिश्तों में समान भागीदारी और किसी भी काम में जेंडर के आधार पर बंटवारा न करना।
  • भावनाओं को स्वीकार करना – पोषक मर्दानगी का एक ज़रूरी गुण है अपनी भावनाओं को समझना और उन्हें व्यक्त करना। समाज में अक्सर पुरुषों से यह उम्मीद की जाती है कि वे मजबूत बने रहें और अपनी भावनाओं को न दिखाएं, लेकिन यह सोच गलत है।

4 . क्वीयर मर्दानगी

क्वीयर मर्दानगी पारंपरिक सोच को तोड़ती है और उन सभी को अपनाती है जो मर्दानगी को अपने तरीके से जीना चाहते हैं। पारंपरिक रूप से स्थापित पितृसत्तात्मक मर्दानगी की धारणाओं को चुनौती देती है और यह दिखाती है कि मर्दानगी केवल एक ही रूप में नहीं होती, बल्कि यह विविधता से भरी होती है। यह उन लोगों के अनुभवों और पहचानों को समाहित करती है जो LGBTQIA+ समुदाय का हिस्सा हैं और जो पारंपरिक पुरुषत्व की संकीर्ण परिभाषाओं में फिट नहीं होते। यह एक ऐसा विचार है जो पारंपरिक मर्दानगी की सख्त सीमाओं को तोड़ता है और जेंडर व यौनिकता की विविधताओं को स्वीकार करता है।

यह शक्ति,आक्रामकता और नियंत्रण पर आधारित विषमलैंगिकतावादी (heteronormative) पितृसत्तात्मक मर्दानगी से अलग, संवेदनशीलता, देखभाल और आत्म-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्व देती है। क्वीयर मर्दानगी में एक व्यक्ति अपनी पहचान को किसी तयशुदा ढांचे में बांधने के बजाय उसे अपने तरीके से परिभाषित कर सकता है। यह ट्रांस पुरुषों, नॉन-बाइनरी और सिसजेंडर क्वीयर पुरुषों सहित उन सभी के लिए एक स्पेस बनाती है जो पारंपरिक मर्दानगी की रूढ़ियों में फिट नहीं बैठते। यह मर्दानगी को अधिक लचीला, समावेशी और विविधता-स्वीकार्य बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है।

क्वीयर मर्दानगी के पहलू

क्वीयर मर्दानगी पारंपरिक “टॉक्सिक मर्दानगी” से अलग होती है, जो आक्रामकता, प्रभुत्व और भावनाओं के दमन को बढ़ावा देती है। यह पुरुषों को संवेदनशील, देखभाल करने वाले और अपनी पहचान के प्रति सहज होने की स्वतंत्रता देती है।

  • जेंडर बाइनरी से परे
    यह विचार जेंडर बाइनरी/ द्विचर (पुरुष बनाम महिला) से परे जाता है और मानता है कि पुरुषत्व के कई रूप हो सकते हैं। इसमें ट्रांस पुरुष, नॉन-बाइनरी, जेंडरक्वीर और अन्य पहचानें शामिल हो सकती हैं।
  • यौनिकता का विस्तार
    क्वीयर मर्दानगी विषमलैंगिकता तक सीमित नहीं है। यह समलैंगिक, द्विलैंगिक, पैनसेक्शुअल, और अन्य विविध यौन पहचानों को शामिल करती है, जो पारंपरिक रूप से “सच्चे मर्द” की परिभाषा से बाहर माने जाते रहे हैं।
  • सामाजिक भूमिकाओं में बदलाव
    क्वीयर पुरुषत्व उन सामाजिक अपेक्षाओं को चुनौती देती है जो पुरुषों को ताकतवर, कमाऊ, और ‘रक्षक’ के रूप में देखती हैं। इसमें पुरुषों का घर के काम करना, देखभाल की भूमिकाएं निभाना और सौंदर्य व फैशन के प्रति खुला रवैया रखना भी शामिल है।
  • संवेदनशीलता और देखभाल को अपनाना
    क्वीयर मर्दानगी उन मूल्यों को गले लगाती है जो पितृसत्तात्मक मर्दानगी में कमज़ोरी माने जाते हैं, जैसे कि सहानुभूति, भावनात्मक अभिव्यक्ति, और दूसरों की देखभाल करना।

मर्दानगी का नया दृष्टिकोण

  • मर्दानगी की पारंपरिक सोच
    परंपरागत रूप से मर्दानगी का मतलब कठोर, मज़बूत, और भावनाएं न दिखाने वाले व्यवहार से जोड़ा गया है। पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे सिर्फ आर्थिक ज़िम्मेदारी निभाएं और भावनात्मक मुद्दों से दूर रहें। इस सोच ने पुरुषों पर मानसिक और सामाजिक दबाव बढ़ाया है।
  • बदलती सोच की आवश्यकता
    समाज में बदलाव के साथ अब मर्दानगी की परिभाषा भी बदल रही है। पुरुषों को भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने, कमज़ोरियों को स्वीकारने, और दूसरों से मदद लेने का हक है।
  • समानता और सम्मान का महत्व
    नए दृष्टिकोण में मर्दानगी का मतलब है महिलाओं, बच्चों, और समाज के हर किसी के प्रति सम्मान और समानता का व्यवहार। महिलाओं के अधिकारों का समर्थन, उनके साथ बराबरी का रिश्ता और निर्णयों में भागीदारी देना सच्ची मर्दानगी का संकेत है।
  • सकारात्मक बदलाव की दिशा में कदम
    सकारात्मक मर्दानगी अपनाकर पुरुष बेहतर इंसान बन सकते हैं। ज़िम्मेदार, सहानुभूतिपूर्ण, और संवेदनशील बनकर वे समाज में स्वस्थ रिश्तों और मजबूत समुदाय का निर्माण कर सकते हैं। यह बदलाव न केवल पुरुषों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए फायदेमंद है।

मर्दानगी में संतुलन कैसे लाएं?

  • भावनाओं को स्वीकार करें
    मर्दानगी में संतुलन लाने के लिए सबसे ज़रूरी है कि पुरुष अपनी सभी भावनाओं जिसमें नकरात्मक सोच भी शामिल को भी स्वीकार करें और उन्हें व्यक्त करने में झिझक महसूस न करें। दु:ख, गुस्सा, डर या खुशी जैसी भावनाओं को दबाना नहीं, बल्कि सही तरीके से साझा करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी ज़रूरी है।
  • समानता का सम्मान करें
    समानता का सम्मान संतुलित मर्दानगी का महत्वपूर्ण गुण है। महिलाओं, अन्य जेंडर के लोग, बच्चों और समाज के हर वर्ग के साथ समान व्यवहार करें। निर्णयों में उनकी भागीदारी को महत्व दें और सभी को बराबरी का दर्जा दें। इससे रिश्ते मजबूत होते हैं और सामाजिक संतुलन बना रहता है।
  • रूढ़िवादी विचारधारा (stereotypes) को तोड़ें
    पुराने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना ज़रूरी है, जैसे “मर्द रोते नहीं” या “मर्द कमज़ोर नहीं होते।” इन गलत धारणाओं को छोड़कर, अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करना और ज़रूरत पड़ने पर मदद मांगना संतुलित मर्दानगी की पहचान है।

मर्दानगी की कोई एक जैसी परिभाषा नहीं है। समय और समाज के साथ इसका अर्थ बदलता रहता है। सकारात्मक और पोषक मर्दानगी को अपनाकर हम न केवल अपने जीवन को, बल्कि समाज को भी बेहतर बना सकते हैं। वहीं, विषाक्त मर्दानगी से दूरी बनाकर हम एक समावेशी, समान और संवेदनशील समाज का निर्माण कर सकते हैं। अगर हम एक बेहतर समाज का निर्माण करना चाहते हैं, तो हमें मर्दानगी की रूढ़ियों को तोड़ना होगा और इसे एक नए रूप में देखना होगा। मर्दानगी का मतलब केवल शक्ति नहीं, बल्कि करुणा, संवेदनशीलता और सहयोग भी है। हमें लड़कों को यह सिखाने की जरूरत है कि वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं, वे रो सकते हैं, वे संवेदनशील हो सकते हैं।

हमें अपने बच्चों को बचपन से ही सिखाना होगा कि वे अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करें। उन्हें यह बताना होगा कि रोना, डरना या दु:खी होना कमज़ोरी नहीं, बल्कि इंसान होने की निशानी है। साथ ही, उन्हें यह भी सिखाना होगा कि महिलाओं, बुजुर्गों, बच्चों, और समाज के हर वर्ग का सम्मान करना एक सच्चे इंसान की पहचान है।

जब बच्चे देखेंगे कि उनके पिता, भाई या अन्य पुरुष सदस्य भावनाओं को समझते हैं, घर के कामों में समान भागीदारी निभाते हैं, और हर तरह के जेंडर के लोगों का सम्मान करते हैं, तो वे भी यही सीखेंगे। विषाक्त मर्दानगी को समाप्त करने के लिए संवाद का रास्ता अपनाना सबसे ज़रूरी है। पुरुषों को उनके मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूक किया जाए, ताकि वे अपनी परेशानियों को साझा कर सकें और सही समय पर मदद प्राप्त कर सकें।

समानता का माहौल बनाने के लिए ज़रूरी है कि हर कोई, चाहे वह पुरुष हो, महिला हो या अन्य जेंडर समुदाय से हो, सभी को बराबरी का अधिकार मिले।, तब ही समाज में हिंसा, भेदभाव और असमानता का स्तर कम होगा।

सच्ची मर्दानगी न तो हिंसा में है, न कठोरता में, बल्कि संवेदनशीलता, सहयोग, और करुणा में है।

आइए, हम सब मिलकर इस सकारात्मक सोच को अपनाएं और एक बेहतर समाज के निर्माण में योगदान दें।

Cover image by Sigmund on Unsplash