A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
एक मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से बॉलीवुड की फ़िल्मों में वर्ग और जेंडर के मुद्दों के चित्रण पर ग़ौर करना केथ्रीजी जैसी फ़िल्मों पर नई आलोचनाओं को बढ़ावा देता है।
In this month’s issue of Play and Sexuality, Wesley D’Souza recounts the time his school put up a production of The Pied Piper of Hamelin, his preparations for its audition, and how the process was intertwined with an exploration and acceptance of his sexuality.
हम कैसी भाषा का प्रयोग करते हैं, अपने ख़्याल कैसे बयां करते हैं, यहां तक कि बात करते दौरान कैसी आवाज़ का इस्तेमाल करते हैं ये सब हमारी सामाजिक परवरिश पर निर्भर करता है।
व्यापक यौनिकता शिक्षा एक संवेदनशील मुद्दा है जिसे लोग अनदेखा कर देना ही आसान समझते हैं, चाहे इसकी वजह से किशोरावस्था से गुज़र रहे लोग अपने शरीर के बारे में उपयुक्त जानकारी के न रहते हुए ग़लत फ़ैसले क्यों न ले लें।
ये बड़ी विडंबना की बात है कि आज भी किशोरावस्था से गुज़र रहे लोगों से उनकी ‘हिफ़ाज़त’ के लिए ज़रूरी जानकारी छिपाई जाती है। ग़लत जानकारी और मिथकों का प्रचार बिना किसी रोकथाम के होता रहता है।
बाल यौन शोषण रोकथाम पर शिक्षा को असरदार बनाने के लिए इसके साथ-साथ व्यापक यौनिकता शिक्षा ज़रूरी है। यौनिकता शिक्षा सिर्फ़ ‘सेक्स कैसे करते हैं?’ तक सीमित नहीं है। इसमें सम्मान के आधार पर बने रिश्तों, रज़ामंदी, यौनिक स्वास्थ्य, सुरक्षित संबंध बनाने के सुझावों, गर्भनिरोध, यौनिक रुझान, जेंडर मानदंडों, शारीरिक छवि, यौन हिंसा वग़ैरह पर जानकारी भी होती है।
भारत जैसे देश में सेक्स जैसी चीज़ों के ज़रिए शारीरिक सुख का आनंद उठाने को लालच और कमज़ोरी के रूप में देखा जाता है। हमें आमतौर पर ये सिखाया जाता है कि सुख की तलाश महज़ फ़िज़ूल की ऐयाशी है जो हमें आत्मबोध तक पहुंचने से रोकती है, जिसकी वजह से हमें लुभावों से दूर रहना चाहिए।