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शायद ये मेरा ख़ुद को यह समझाने और भरोसा दिलाने का प्रयास था कि हो न हो, मैं क़्वीयर लोगों के इस समाज का अभिन्न अंग हूँ और अगर मैंने परेड में लगने वाले सभी नारे याद कर लिए, उनकी बोलचाल के शब्द रट लिए, तो अगले साल की परेड मेरे लिए बहुत अलग होगी और मैं इसमें बढ़-चढ़ कर भाग ले पाऊँगी।
इन प्लेनस्पिक के इस काम व यौनिकता के मुद्दे को सुनने के बाद पहला विचार मन में आया कि मैं कार्यस्थल पर होने वाली यौन हिंसा के बारे में लिखूंगी। फिर ऑफिस में रोमांटिक रिश्तों व लव स्टोरी के बारे में याद आया जो हम सब अपने काम के आसपास देखते या सुनते आये हैं और यह बॉलीवुड फिल्मों का भी पसंदीदा मुद्दा रहा है। मुझे ये बड़ा ही रोमांचक लगा, और जब मैंने लिखना शुरू किया तो एक सवाल मेरे दिमाग में आया – क्या कार्यस्थल पर इस मुद्दे से सम्बंधित कोई नीति है?
किसी शास्त्रीय नृत्य को देखने वाले एक आम दर्शक के रूप में मुझे लगा कि यह सब किस तरह से मुझसे और मेरे जीवन से सम्बद्ध है। इन नृत्य प्रदर्शनों में दिखाए जाने वाले कथानक अक्सर वे कहानियाँ होती है जिन्हें मैंने बचपन से सुना है फिर भी मुझे इसमें कोई विशेष रूचि नहीं लगती। लेकिन सुश्री रत्नम के दृष्टिकोण के आधार पर, पुराने कथानकों को आधुनिक रूप देने के उनके प्रयासों और किसी पुरानी परंपरा के लुप्त हो जाने पर दुःख प्रकट करने के स्थान पर नृत्य को एक नया रूप देने का के प्रयास को देखते हुए भरतनाट्यम और अन्य शास्त्रीय नृत्य अब और अधिक प्रसांगिक हो जाते हैं जिनसे आप आसानी से जुड जाते हैं।
“मेरी बेटी के सेक्स को कम करने के लिए कुछ कीजिए न डाक्टर बाबू” यह एक पिता की दरख्वास्त थी…
भारत के मुंबई शहर में रहने वाली निधि गोयल जेंडर और विकलांगता से जुड़े अधिकारों की पैरवीकार हैं। अनिषा दत्त…
नहलाए जाने और नए कपड़े मिलने पर बुला बहुत खुश नहीं होती थीं। खाना वह ख़ुशी-ख़ुशी ले लेती थीं –…
एपिसोड ४, अप्रैल २०१३ अनुवाद: योगेंद्र दत्त चयनिका शाह एवं विवेक वेलंकी के बीच यह संवाद इन प्लेनस्पीक के मार्च…
इस बात के अनेकों कारण हो सकते हैं कि महिलाएँ बच्चे क्यों नहीं चाहती हैं, ठीक वैसे ही जैसे इस बात के अनेकों कारण है कि वे बच्चे क्यों चाहती हैं। बच्चे होने के कारणों को सामान्य करार दिया जाना जबकि बच्चे ना होने की इच्छा को ‘सामान्य से अलग’ माना जाना, शर्मिंदा किया जाना और संदिग्ध की तरह करार दिया जाना, सभी के लिए नारीत्व का ‘एक ही अर्थ’ बनाने वाले है।
अपनी एम. फिल. की थीसिस के लिए मैंने “सेल्फ़ी लेने और सोशल मीडिया की ओर युवा महिलाओं के आकर्षण” के…
आज के समय में जब विश्व में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की घटनाएँ बढ़ी हैं और सामाजिक मान्यताओं में भी बदलाव आया है, ऐसे में केवल विवाह ही, महिलाओं के एक जगह से दूसरी जगह प्रवास करने का एकमात्र कारण नहीं रह गया है।
कुछ साल पहले ही मुझे एहसास हुआ कि जब भी मैं भविष्य के बारे में सोचती हूँ, तो मेरे मन में हमेशा अपनी सबसे करीबी महिला मित्रों की तस्वीर उभरती है। मेरे हर फ़ैसले पर सबसे ज़्यादा असर उन्हीं का पड़ता है…
दीप्ति नवल द्वारा निर्देशित फिल्म, दो पैसे की धूप, चार आने की बारिश, (वर्ष 2009, नेटफ्लिक्स पर 2019 में रीलीज़)…
दो कविताएं – हवेली आधुनिकता के आवरण में क्षयग्रस्त पारंपरिक पुरुषत्व को दर्शाती है, जबकि चारपाई कठोर और लचीली अभिव्यक्तियों के बीच विरोधाभास प्रस्तुत करती है, जहां जो जिस चारपाई पर बैठते हैं, उसके गुणों को अपनाते हैं, जो भिन्न-भिन्न पुरुषवादी पहचानों का प्रतीक है।
पहले जिन स्त्रीसुलभ व्यवहारों के कारण मुझमें वो मेएलीपन दिखाई देता था, अब वो मेरे जीवन का हिस्सा बन चुका है। वह अब उन सब कपड़ों में जो मैं पहनती हूँ, जिस अंदाज़ में मैं चलती, सोचती और बात करती हूँ या लोक चर्चाओं में भाग लेती हूँ, परिलक्षित होता है।