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नीलम और एक अकारण सा हंगामा

“मेरी बेटी के सेक्स को कम करने के लिए कुछ कीजिए न डाक्टर बाबू” यह एक पिता की दरख्वास्त थी मुझसे। वह दिन भी दूसरे दिनों की तरह ही ओपीडी में एक व्यस्त दिन था और क्लीनिक में लोगों की भीड़ थी। वह व्यक्ति कहना चाहते थे कि मैं उनकी बेटी की सेक्स की इच्छा को किसी तरह से कम करने में मदद करूँ।

इस अनुनय के पीछे भी एक कहानी है। नीलम, जिसे मैं पिछले कुछ वर्षों से जानता हूँ, 17 वर्ष की एक लड़की थी। उसने स्कूल में खाने कि छुट्टी के समय यौनांगों का चित्र बनाया था जिसके साथ ही उसने दिल बना कर अपने एक सहपाठी का नाम उसमे लिखा था। स्कूल में एक टीचर ने यह चित्र देखा और जैसी की उम्मीद कि जा सकती है, वे इसे देख कर बहुत नाराज़ हुईं। नीलम समझ नहीं पायी कि हो हल्ला किस बात का हो रहा था? “मैंने बस एक चित्र ही तो बनाया था, मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि इतना हंगामा क्यों हो रहा है?” लेकिन यह तो वो छोटी सी, पुरानी वाली नीलम थी जिसे मैं कई सालों से जानता था और पसंद भी करता था। वह एक अजीब सामाजिक कौशल वाली लड़की है, जो अपने संचार में बहुत अधिक निपुण है और बातचीत में पुरातन अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करना पसंद करती है। उसे दूसरे विश्व युद्ध के बारे में और पेंगुइन पर किताबें पढ़ना पसंद है। उसे एस्पर्जर सिन्ड्रोम है जो आटिज्म से मिलता-जुलता है जिसके चलते वो लोगों के मन को समझ पाने में थोड़ा कमजोर थी और दूसरों के साथ मेलमिलाप में अपनी बात पूरी दृढ़ता से रखती थी। चित्र बनाने की इस घटना के बाद मचा वो हड़कंप जिसने नीलम को इतना परेशान कर दिया था, दरअसल उसका संबंध हमारे मन के अनेक पूर्वाग्रहों और मान्यताओं से है।

स्कूल में दूसरे बच्चे नीलम को परेशान करते थे क्योंकि वो सबसे अलग थी। यही वजह थी कि नीलम स्कूल में ब्रेक के दौरान सबसे अलग होकर लाइब्रेरी में बैठ जाती। उसके साथ कभी किसी ने सेक्स या यौन इच्छाओं के बारे में कोई बात नहीं की थी और न ही उसे निजता, गोपनियता और सार्वजनिक व्यवहार के बारे में कुछ पता था। उसे यह किसी ने नहीं बताया था कि दूसरों के सामने किए जाने वाले व्यवहार कौन से होते हैं और क्या ऐसी बातें हैं जो गोपनीय रखी जानी चाहिए। विकास की प्रक्रिया के दौरान या बड़े हो रहे बच्चे, ऐसी बातों को या सामाजिक व्यवहार की कुशलता दूसरों को देख कर सीखते हैं। नीलम जैसे बच्चों को, उनकी स्थिति के चलते, इस व्यवहार को सीख पाने में कठिनाई आती है। उनको सामाजिक बर्ताव के अनेक बातें बहुत समझा बुझा कर और खुलकर बतानी पड़ती हैं। जिस स्कूल में नीलम पढ़ रही थी, वह आजकल के किसी भी दूसरे स्कूल की तरह ही था, जहाँ बिना ज़्यादा मन लगाए, रट कर याद करने पर ज़ोर दिया जाता था। करीब दो साल पहले, नीलम ने अपनी बायोलॉजी टीचर से क्लास में सवाल कर लिया था कि क्या उसे जन्म देने के लिए उसके माता-पिता ने भी सेक्स किया होगा? अपनी ओर से तो नीलम ने एक बहुत ही सामान्य सा सवाल पूछा था। नीलम और उस जैसे औटिज्म (Autism) से प्रभावित अन्य लोगों में एक तरह की दिखाई न देने वाली विकलांगता होती है। वे यह नहीं समझ पाते कि कुछ बातों या कामों पर आगे चर्चा नहीं की जानी चाहिए।   

किसी भी तरह की विकलांगता होने का एक नतीजा यह होता है कि दूसरे लोग यह मान लेते हैं कि विकलांगता के साथ रह व्यक्ति तुलना में ‘कम सक्षम’ हैं। हम खुद से ही, यह अंदाज़ा लगा लेते हैं कि चूंकि कोई व्यक्ति औटिज्म जैसी विकलांगता के साथ रह रहे हैं, इसलिए वे खुद अपने फैसले ले पाने के काबिल नहीं हैं। 

बड़ी उम्र के लोग जो नीलम से भली-भांति परिचित थे, वे यह जानते थे कि नीलम औटिज्म के साथ रह रही हैं इसलिए वे उसके साथ सेक्स, डेटिंग, प्रेम करने जैसे विषयों पर चर्चा नहीं करते थे। वे शायद ऐसा इसलिए करते थे क्योंकि उन्हें भी यही लगता था कि दूसरे लोगों की तरह नीलम ज़्यादा ‘सक्षम नहीं है। इस कमी के चलते उसके साथ सेक्स, सम्बन्धों, डेटिंग आदि के बारे में बात करने पर पता नहीं वह उस बात को कहाँ से कहाँ ले जाए। हमें लगता है कि नीलम जैसे लोग प्राप्त जानकारी का ‘उचित उपयोग’ करना नहीं जानते। नीलम उस जैसे उन हजारों लोगों में से केवल एक उदाहरण है जो इस विकलांगता के साथ रह रहे हैं जिसे हम डाक्टरों का समुदाय “विकास संबंधी विकार” मानता है। इस एक परिभाषा में अनेक तरह की विकलांगताएँ जैसे औटिज्म, बौद्धिक विकलांगता (Intellectual Disability), ADHD (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) और ऐसी ही दूसरी अवस्थाएँ शामिल हैं।

समाज में हमेशा से ही विकलांगता के साथ रह रहे लोगों के अधिकारों को अनदेखा किया जाता रहा है और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखा जाता रहा है। पूर्व में इनके साथ किए गए अनेक अन्यायों को आज ठीक करने की कोशिश हो रही है और कुछ हद तक इन्हे सुधारा भी गया है। इन लोगों को जिन अधिकारों से आज तक वंचित रखा जाता रहा है, उनमें यौन अधिकारों का हनन सबसे जटिल और पेचीदा विषय है जिस पर कभी चर्चा नहीं की जाती। विकास संबंधी विकलांगता के साथ रह रहे बच्चों और युवाओं से साथ काम करने वाले चिकित्सक के नाते आज मैं इस समूह को यौनिकता के बारे में शिक्षा और जानकारी से वंचित रखने में खुद अपने दायित्व और समाज की कमियों के बारे में अधिक सचेत और जानकार हूँ। 

उन युवाओं के लिए, जिनमें विकास ‘सामान्य’ रूप से होता है, रजोसन्धि (puberty) की अवस्था से गुजरने और सेक्स, यौनिकता, जेंडर और जीवन कौशलों पर जानकारी देने के बारे में समाज में बहुत जागरूकता है। लेकिन सामान्य से कुछ अलग तरह की कुशलताएँ रखने वाले या विकासात्मक विकलांगता के साथ रहने वाले युवाओं को इन्हीं सब विषयों और बातों पर जानकारी देने के लिए जागरूकता का पूरी तरह से अभाव है। ऐसा क्यों?

अधिकारों का हनन करने और आवश्यक जानकारी से वंचित रखे जाने के अलावा विकास संबंधी विकलांगता के साथ रह रहे युवाओं को यौनिकता के बारे में शिक्षित न किए जाने से जुड़ा एक दूसरा पहलू भी है। विकलांगता के साथ रह रहे बच्चों और युवाओं के विरुद्ध यौन शोषण सहित हर तरह के शोषण और उत्पीड़न के मामले सबसे ज़्यादा देखने को मिलते हैं। ऐसे में, जिम्मेदार व्यस्कों के रूप में यह हमारा दायित्व बन जाता है कि हम इन बच्चों और युवाओं को, इस तरह के शोषण से सुरक्षित रहने में मदद करें। हम चाहते हुए भी इस लक्ष्य को नहीं पा सकते क्योंकि हम उनको यौनिकता के विषय पर शिक्षित ही नहीं कर रहे?      

अपने निजी अनुभवों के आधार पर मुझे अब यह आभास हो चला है कि हममें से अधिकांश लोगों में विकास संबंधी विकलांगता से बाधित बच्चों और युवाओं के साथ यौनिकता, जेंडर और जीवन कौशलों के विषय पर बातचीत कर पाने की कुशलता और आत्मविश्वास नहीं है। हो सकता है कि हम ऐसा करना चाहते हों, लेकिन एक तो हमारे अंदर इसके लिए ज़रूरी विश्वास की कमी है और दूसरे हमें यह नहीं मालूम है कि इस बातचीत और चर्चा को किस तरह से किया जाए। 

इसके अलावा लोगों के मन में यह डर और भ्रांति भी रहती है कि विकासात्मक विकलांगता के साथ रह रहे बच्चों और युवाओं के साथ अगर सेक्स के बारे में बातचीत शुरू की जाए तो जाने इसके क्या परिणाम निकलेंगे। फील्ड में समुदाय के लोगों के साथ चर्चा करने पर विकलांगता के साथ रह रहे युवाओं को जानकारी से वंचित रखे जाने के बारे में लोगों ने हमारी टीम को मुख्य रूप से दो कारण बताए – एक तो यह कि इन युवाओं को इस तरह की जानकारी की ज़रूरत ही नहीं है; और दूसरा यह कि इनके साथ सेक्स पर चर्चा करने के बाद संभव है कि अपने मन की इच्छाओं को दबा कर न रख सकें। पहले भी ऐसा ही होता रहा है। अभी कुछ समय पहले तक हमारे समाज में यूजेनिक्स (Eugenics) या सृजन विज्ञान प्रचलन में था जिसके तहत मानव जाति में गुणवत्ता सुधार के लिए केवल चुने हुए समूहों को ही वंश वृद्धि करने का मौका मिलता था। इसके चलते कमजोर दिमाग वाले, विक्षिप्त, विकलांगता के साथ रह रहे अधिकांश लोगों को प्रेम और यौन अभिव्यक्ति का मौका नहीं दिया जाता था। अपनी बहुचर्चित और उपयोगी पुस्तक, द जीन – ऐन इंटिमेट हिस्ट्री (The Gene : An Intimate History), में सिद्धार्थ मुखर्जी हमें उस समय के डॉक्टरों और चिकित्सा जगत के घिनौने कुकर्मों के बारे में ब्योरा देते हैं कि कैसे चिकित्सा जगत के लोगों ने निरंकुश शासकों के साथ मिलकर लोगों की यौन अभिव्यक्ति और अभिरुचियों को दबाकर रखने का काम किया। हमने समाज के नाम पर लगे इस धब्बे को तो अब दूर कर दिया गया है लेकिन विकलांगता के साथ रह रहे लोगों के जीवन के अनेक पहलुओं में उन्हें अधिकार और न्याय की समानता दिला पाने में हम अभी बहुत पीछे हैं।    

नीलम जैसे लोगों के जीवन में उनके संपर्क में आने वाले अविभावक, माता-पिता और दूसरे लोग आयु अनुरूप उचित यौन व्यवहारों को “समस्याओं और विकारों” के रूप में देखने में ही सिद्धस्त हो चुके हैं। मुझ जैसे डाक्टरों या विशेषज्ञों के संपर्क में ये लोग आमतौर पर केवल नीलम जैसे लोगों में उन विकारों को कम करने के लिए ही आते हैं जो वास्तव में कुदरत की ही देन है और बहुत ही बहुत ही खुशनुमा एहसास है।   

अगर देखा जाए तो इस पूरे प्रकरण में नीलम ने क्या गलती की थी? उसने वही कुछ तो किया ( यह जानते हुए भी कि ऐसा कहने पर मेरी निंदा हो सकती है, मैं यह कहने का साहस कर रहा हूँ) जो अपनी किशोर उम्र में हममें से बहुत से लोग अक्सर किया करते थे। बस नीलम में किसी तरह का छलकपट न होने के कारण उसने यह सब इस तरह किया कि लोगों को पता चल गया।

तो ऐसे में बदलाव लाने के लिए मैं क्या चाहता हूँ?

  1. मैं चाहता हूँ कि यौनिकता और विकलांगता से जुड़े मिथकों और मकड़जालों को हम अपने दिमाग से हटा दें – इस बारे में ज़रूरत से ज़्यादा हंगामा मचाने से कोई लाभ नहीं! 
  2. हमें यह समझ और जान लेना चाहिए कि ‘दिखाई न देने वाली विकलांगता‘ से के साथ रह रहे बच्चे और युवा हर तरह के शोषण और उत्पीड़न, यहाँ तक कि यौन शोषण के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम उनके साथ सुरक्षा व्यवहार अपनाने के बारे मे ज़्यादा-से-ज़्यादा बातचीत करें। 
  3. यौन अभिव्यक्ति, प्रेम का इज़हार और अनुभव करना तथा शारीरिक नज़दीकियाँ प्रत्येक जीवित प्राणी के जीवन का अभिन्न अंग होते हैं। हम किन्ही विशेष लोगों को इस सच्चाई से परे रख कर उनके जीवन को अधूरा या अपूर्ण नहीं रहते दे सकते। बल्कि, इसकी बजाए हम इस वास्तविकता को स्वीकार करें और उन्हें सशक्त करने में मदद करें जिससे कि वे भी भरापूरा जीवन जी सकें। 
  4. और अंत में, कभी भी नीलम और उसके जैसे दूसरे लोगों के बारे में कोई राय कायम न करते हुए उन्हें समझने की कोशिश करें।                                       

सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित 

To read this article in English, please click here.                                                                                                                                                                                                                                     Cover Image: Pixabay

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