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लोगों से मिली जानकारी के आंकड़ों के आधार पर अपने शहरों को कैसे सुरक्षित बनाया जा सकता है

एक महिला के मुँह को ढक रहे एक लाल रंग के हाथ का भित्ति चित्र। चित्र के साथ पीले रंग में सन्देश है: 'चुप्पी तोड़ों', उसके नीचे बड़े अक्षरों में लिखा है: 'यौन उत्पीड़न एक अपराध है' और उसके ऊपर: 'कानून के ख़िलाफ़'।

सम्पादक का नोट – हालांकि यह लेख 2017 में लिखा गया था पर इसमें 2021 के आंकड़े भी लेखक की द्वारा जोड़े गए है |

लगभग दो सप्ताह पहले घटी इस घटना में, हरियाणा के रोहतक जिले में काम पर जा रही एक युवा महिला युवती के साथ उनके (अस्वीकृत) पूर्व-प्रेमी और दोस्तों नें क्रूरतापूर्वक सामूहिक बलात्कार किया। इस घटना से दिल्ली में वर्ष 2012 की ऐसी ही हिंसक घटना की याद हो आती है जिसमें सिनेमा देख कर घर लौटते हुए, ज्योति सिंह का सामूहिक बलात्कार हुआ था। दोनों ही घटनाओं में दोनों  महिलाओं को गंभीर शारीरिक चोटें आयीं और मानसिक अवसाद और सदमे का सामना करना पड़ा। दुख की बात यह रही कि कुछ समय बाद, घटना के दौरान लगी चोटों के कारण दोनों ही महिलाओं की मृत्यु हो गई थी।      

इन दोनों घटनाओं से इस दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई का पता चलता है कि सार्वजनिक स्थानों में महिलाओं और लड़कियों का जीवन सुरक्षित नहीं है। ज्योति सिंह के मामले में, बलात्कार और हत्या के दोषियों को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखते हुए भारत के उचितम न्यायालय  नें कहा की ज्योति सिंह की हत्या का मामला ‘कभी कभार ही देखे जाने वाले’ मामलों की श्रेणी में आता है इसलिए दोषियों को मिली मौत की सजा को बरकरार रखा जाना पूरी तरह उचित प्रतीत होता है। अपराध के मामले में जघन्य अपराधों के लिए मौत या उम्रकैद की सजा दिए जाने का प्रावधान होता है। 

मेरी राय में, इस तरह महिलाओं और लड़कियों  के साथ बलात्कार अब कभी कभार होने वाली घटना नहीं रह गयी है। वास्तविक्ता तो यह है कि इनसे जुड़े शर्म और कलंक के कारण अनेक मामलों के बारे में कभी पता ही नहीं चल पाता है। 

दुनिया भर में यौन हिंसा की घटनाएँ होना अब एक वैश्विक महामारी का रूप ले चुका है और एक-तिहाई महिलाओं को अपने जीवन में कम से कम एक बार यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। भारत में इन घटनाओं के आँकड़े भी उतने ही चौंकाने वाले हैं। देश के अपराध ब्यूरो के वर्ष 2014 के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में हर 20 मिनट में (और वर्ष 2021 में हर 16 मिनट में) बलात्कार की एक घटना होती है। 2013 में UN-Women समर्थित ICRW के सर्वे से पता चला है कि 95 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों को दिल्ली के सार्वजनिक स्थानों में असुरक्षित होने का भय सताता है जबकि सर्वेक्षण में भाग लेने वाली 75 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों नें बताया कि उन्हें अपने आसपास के माहौल में और पासपड़ोस के लोगों द्वारा ही यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है।       

मैं सेफसीटी नाम की एक संस्था की सह-संस्थापिका हूँ। यह संस्था आम लोगों से सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न और हिंसा की घटनाओं के व्यक्तिगत अनुभवों की जानकारी इककट्ठा करती है। वर्ष 2013 से 2021 तक हमनें यौन उत्पीड़न या दूसरे किसी रूप में हुई यौन हिंसा की 22,000 से अधिक घटनाओं की जानकारी इककट्ठी की है। लोगों द्वारा बताई गयी इन घटनाओं में पीछा किए जाने, सार्वजनिक यातायात सुविधाओं में खुलेआम हस्तमैथुन करने, या रेलवे प्लैटफ़ार्म और पटरी पार करने के लिए उनके ऊपर बनाए गए पुलों पर चलते समय महिलाओं को छूने की कोशिश करने जैसी घटनाएँ शामिल हैं।   

सेफसिटी संस्था की स्थापना का विचार, दिसम्बर 2012 में ज्योति सिंह के साथ घटी सामूहिक बलात्कार की भयावह घटना के बाद उत्पन्न हुआ था। संस्था के दूसरे संस्थापकों के साथ मिलकर मैंने एक ऐसे मंच के गठन की इच्छा से यह संस्था बनाई जहां कोई भी आम लोग  सार्वजनिक जगहों पर अपने साथ यौन उत्पीड़न के व्यक्तिगत अनुभवों को साझा कर सकते है। अलग-अलग स्थानों पर घटी इन घटनाओं की जानकारी के आधार पर हम इन्हें यौन उत्पीड़न और हिंसा की घटनाओं के हॉटस्पॉट के रूप में नक्शे पर अंकित कर सकते है  संस्था बनाने का उद्देश्य यही रहा है कि लोग गोपनीय रूप से इन घटनाओं की जानकारी दे सकें और उन्हें अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेहतर फैसले लेने में सहायता मिल सके, वे आपस में दूसरे लोगों के साथ मिलकर इस समस्या का समाधान खोज पाएँ और पुलिस तथा नगर निगम अधिकारियों को इस बारे में अधिक उत्तरदायित्व पूर्ण तरीके से काम करने के लिए बाध्य कर सकें। 

भारत में रहने वाली एक महिला के रूप में मुझे खुद सार्वजनिक यातायात में छेड़े जाने के अनुभव हुए हैं और मैंने पुरुषों को बस में अनेक बार हस्तमैथुन करते हुए देखा है। अपने पुराने दफ्तर में कई सीनियर मैनेजरों नें अनेक बार मेरे सामने प्रेम प्रस्ताव रखे हैं। मुझे अपने इन अनुभवों के बारे में किसी को बताने में बहुत कठिनाई होती थी। कई बार तो मैं खुद को ऐसी स्थिति से बहुत ही जल्दी बाहर निकाल पायी और कोशिश की कि ऐसी घटनाओं को जितना जल्दी हो सके भुला दूँ। कई बार मैंने इस तरह के उत्पीड़न को अनदेखा करने की भी कोशिश की। लेकिन ज्योति सिंह के मामले के बाद, मैंने बहुत सोच-समझ कर यह फैसला किया कि अब इस मुद्दे पर चुप रहना ठीक नहीं होगा। मेरे इस फैसले का मतलब यह था कि अब मैं अब तक की अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए अपने अनुभवों के बारे में खुल कर बोलुंगी।   

जब मैंने इन मुद्दों पर अपने निजी अनुभवों के बारे में लोगों को बताना शुरू किया तो मुझे एहसास हुआ कि अपने इन अनुभवों से निबटने की कोशिश करने वाली मैं अकेली नहीं थी। मेरे ही जैसे अनेक ऐसे लोग थे जो खुद अपने लिए शर्मिंदा होने या अपने परिवार का नाम खराब होने के डर से इस तरह की घटनाओं के बारे में बोलने से सकुचाते थे। उन्हें लगता था कि अगर उनके घर वालों को या दूसरे लोगों को ऐसी घटनाओं की जानकारी मिली तो उनके लिए उपलब्ध विकल्प और भी कम हो जाएँगे या फिर उनके इधर-उधर आने जाने की आज़ादी पर इसका असर पड़ेगा। उन्हें यह भी लगता था कि घूमफिर कर उन्हें ही इन घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा कि उन्होने कुछ “गलत” तरह के कपड़े पहने होंगे, कुछ “गलत” कह दिया होगा, या फिर दिन के किसी ऐसे समय पर बाहर होने के कारण उनके साथ यह घटना घटी होगी या यह हो सकता है किसी “गलत” व्यक्ति के साथ होने पर उनके साथ ऐसा हुआ हो।  

सेफसिटी तैयार करने के विचार पर काम करते हुए मैंने पाया कि लोगों को आपस में एक दूसरे से जोड़ने में और समस्याओं को नए तरीकों से हल करने की दिशा में इंटरनेट एक सशक्त माध्यम हो सकता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में सेफ सिटि द्वारा इककट्ठे किए गए आंकड़ों के आधार पर, अब मुझे यह पता है कि नेहरू प्लेस मेट्रो स्टेशन पर उतरने की बजाए अगर मैं कैलाश कॉलोनी स्टेशन पर मेट्रो से उतरती हूँ, तो अपने घर तक पहुँचने का मेरा आगे का सफर अधिक आरामदायक रहेगा क्योंकि नेहरू प्लेस से इस तरह की घटनाओं की अधिक खबरें हमें मिली हैं और यहाँ भीड़भाड़ भी ज़्यादा रहती है।    

लोगों से इककट्ठी की गयी जानकारी के आंकड़ों के आधार पर हम उनके पहले के अनुभवों से ऐसी घटनाओं के रुझान तैयार कर सकते हैं और समझ सकते हैं कि घटनाओं की परिस्थितियाँ किस तरह की होती हैं। हम इस तरह की घटनाओं के लिए अधिक प्रभावी स्थानीय निवारक उपाय भी तैयार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, नैरोबी के किबेरा में हमारी सहयोगी संस्था को यह पता चला कि लड़कियों को स्कूल के रास्ते में यौन उत्पीड़न की घटनाओं की बहुलता वाला एक हॉटस्पॉट एक स्थानीय मस्जिद के पास था। संस्था नें उस मस्जिद के इमाम को एक बैठक के लिए आमंत्रित किया और यौन उत्पीड़न  की घटनाओं के आंकड़े उनके सामने पेश किए। इन इमाम साहब नें फैसला किया कि मस्जिद में अपनी तकरीर में वे इन बातों को उठाएंगे और समुदाय के युवा लड़कों को लड़कियों के साथ उचित व्यवहार करने के बारे में बताएँगे। इस उपाय के बाद उस जगह पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं की संख्या में बहुत हद तक कमी हो पायी।    

हमारे सामने अनेक देशों, शहरों और अलग-अलग आयु वर्ग के समूहों से जुड़े बहुत से उदाहरण हैं, जहां हमारे आकड़ों को प्रस्तुत कर पुलिस को अधिक मुस्तैदी बरतने या पुलिस गश्त का समय बढ़ाने के लिए राज़ी किया गया है। ऐसे ही आंकड़ों के आधार पर निगम के अधिकारी भी सड़कों पर स्ट्रीटलाइट ठीक करवाने अथवा बेहतर और साफ सुथरे शौचालय बनाने के लिए तैयार हो गए हैं। ऐसी ही जानकारी के आंकड़ों के आधार पर निर्वाचित प्रतिनिधियों को किसी जगह के निवासियों द्वारा बताए गए हॉटस्पॉट स्थान पर CCTV लगाए जाने के लिए धन मुहैया कराने के लिए भी बाध्य किया गया है।  

नेपाल में भी इन आंकड़ों की मदद से हमारे सहयोगी संस्थान को वहाँ के ट्रांसपोर्ट अधिकारियों को केवल महिलाओं को ले जाने वाली बसों के लाइसेन्स जारी करवाने में सफलता मिल पायी और महिलाओं के लिए यातायात का वैकल्पिक, सुरक्षित और परेशानी मुक्त साधन उपलब्ध हो पाया। किसी स्थान विशेष के परिप्रेक्ष्य से इस विषय पर ध्यान देने से न केवल यौन हिंसा की घटनाओं को बढ़ावा देने में मददगार कारणों को पहचाना जा सकता है बल्कि लोगों को भी एक साथ मिलकर आसानी से लागू किए जाने वाले व्यावहारिक हल खोजने में मदद की जा सकती है। 

जिस तरह से महिलाएं और लड़कियां आम तौर पर अपने अधिकारों या कानून में नए बदलावों के बारे में अनभिज्ञ होती हैं, वैसे ही अक्सर पुरुषों और लड़कों को भी उचित व्यवहार करने के बारे में जानकारी नहीं होती – वे नहीं जानते कि उन्हें किस तरह से पेश आना चाहिए। यौन उत्पीड़न के अनेक हॉटस्पॉट में, जैसे मुंबई में लड़कियों के एक कालेज के बाहर, दिल्ली के दक्षिणपुरी इलाके में एक सार्वजनिक शौचालय के बाहर, या दिल्ली के ही लालकुआं क्षेत्र में चाय की एक दुकान के बाहर, हमनें चित्रों के माध्यम से लोगों को शिक्षित करने और बताने की कोशिश की, कि लड़कियों को घूरना, यौन रूप से तंग करनेछेड़ने की कोशिश करना, बिना अनुमति किसी की फोटो खींचना या यौन हमला करना आदि अपराध की गिनती में आता है और सही नहीं है। ऐसा करने से समुदाय के लोगों के व्यवहार में हुए बदलावों को देख कर बहुत सी युवा महिलाओं नें राहत की सांस ली, उनमें फिर से विश्वास जगा और अनेक लड़कियां फिर से स्कूल जाने लगीं, सार्वजनिक जगहों पर आने-जाने लगीं और पहले से ज़्यादा लंबे समय के लिए घर से बाहर रहने लगी।      

उत्पीड़न करने की आदतों को बदलने की कोशिश में नीतियों का बदला जाना ज़रूरी होता है, लेकिन इसके साथ लोगों को उत्पीड़न के विरोध में अपनी आवाज़ उठाने में सशक्त करना भी आव्यशक है। सेफसिटी में हम आम लोगों से जानकारी इककट्ठी करने, आपस में सहयोग करते हुए मिलकर काम करने, प्रशिक्षण देने और वर्कशाप्स आयोजित करने का काम करते हैं। इंटरनेट के कारण हम यह सब आसानी से अपने घरों में बैठ कर ही कर पाते हैं और ऐसा करते हुए हम लोगों को न केवल अपनी बात कहने के लिए सशक्त करते हैं बल्कि उन्हें तैयार करते हैं कि वे दूसरों की कही गयी बातों को भी सुने और उन पर अमल करें।  

सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित 

To read this article in English: https://www.tarshi.net/inplainspeak/can-make-cities-safer-using-crowdsourced-data/

Cover image courtesy of Safecity

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