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हमें ख़ुद को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि हराम और आएब को पितृसत्ता की वैश्विक प्रकोप से बढ़ावा मिलता है। वे एक ऐसी क़ैदी संस्था, बाध्यकारी बुनियादी ढाँचे और प्रतिबंधक प्रणाली का हिस्सा हैं जो अपनी प्रजा की स्वतंत्र पहचान और खुली अभिव्यक्ति को नियंत्रण मैं रखते हुए अपनी व्यापकता को बनाए रखता है।
विभिन्न स्थानों पर लड़कियों की उपस्थिति, उनका अनेक मुद्दों पर चर्चा करना, दोस्तों के साथ मसलों पर बातचीत करना और किसी भी कारण के लिए एकत्रित होना स्वयं ही समाज में मानदंड को चुनौती देता है और उनकी सुरक्षा, गतिशीलता और यौनिकता को बढ़ावा देता है।
किशोरों में यौनिकता विषय पर चर्चा करना आरंभ करने पर कानून, आयु, मान्यताएँ व स्वास्थ्य जैसे अनेक ऐसे मुद्दे भी…
किशोरों के जीवन में यौनिकता और रोमांस के अनुभवों में अक्सर उनके और उनके परिवार के लोगों के बीच मोलभाव…
यह लेख तारशी के #TalkSexuality अभियान का हिस्सा है गुमनाम लेखक द्वारा प्रस्तुत मैं एक दोस्त के ज़रिए इस लड़के…
ज जब मैं अपनी माँ और चेची के अनुभवों के बारे में एक इंटरसेक्शनल यानी अंतर्विभागीय नारीवादी नज़रिए से लिख रही हूँ, तो मैं यह सोचती रह जाती हूँ कि उनके शारीरिक और भावनात्मक श्रम का भुगतान कौन करेगा।
प्यार की अभिव्यक्ति कई रूपों में की जा सकती है और इसी तरह यौनिकता और इसे व्यक्त करने के भी कई तरीके होते हैं। हम सच्चाई को अधिक करीब से देख सकते हैं अगर हम इन सभी तरीकों को समझे और समग्र रूप से जाने।
जो वर्जित है उससे मन ही मन सोचकर ख़ुशी पाने के अलावा, यौन कल्पनाएँ हमें सुरक्षित रूप से खोज करने का और बिना किसी प्रतिबद्धता के, बिना किसी परिणाम की चिंता के, विभिन्न तरीकों से रहने और उनका आनंद लेने का मौका देती हैं। यह कुछ-कुछ ऐसा है जैसे हम बिना खाना बनाने की झंझट के, या बर्तन साफ़ करने या अपच और वज़न बढ़ने की चिंता के भी अपने मन की चीज़ खाने का मज़ा ले सकते है।
अब मैं बार–बार पीछे मुड़कर देखने और अंजान आदमियों के भय से डरी रहने से भी थक चुकी हूँ। मेरे मन में हमेशा यह डर बना रहता है कि मेरी शारीरिक सीमायों का कोई उल्लंघन न कर दे और साथ ही मैं अब लोगों को अपने से दूर रखते रहने की कोशिश करते हुए भी थक चुकी हूँ।
एक औरत के परिवारवाले अक्सर उसके दोस्तों को उसकी ज़िंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा नहीं समझते। लड़कियों को ऐसी मतशिक्षा दी जाती है कि उनके जीवन में दोस्त सिर्फ़ तब तक हैं जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती। इसलिए यह अनकही उम्मीद भी रहती है कि शादी के बाद एक औरत अपने दोस्तों को छोड़कर अपने पति के घरवालों और दोस्तों को अपना लेगी।
पंजाब में रहने वाला गुनराज बचपन से ही प्यारा सा शर्मीला बच्चा था। अक्सर उसे लगता था कि इस दुनिया में वह ही एक मात्र ऐसा लड़का होगा जिसे लगता है कि वह एक लड़की है। जितना भी उसे उसके परिवार वाले या उसके दोस्त लड़के के रूप में देखते थे, उतना ही उसे लगता था कि वह लोग गलत हैं, क्योंकि वह तो एक लड़की है।
तारशी की ईमैगज़ीन इन प्लेनस्पीक में हम इस महीने ‘बॉडी इमेज’ या शारीरिक छवि पर बात करेंगे। बॉडी इमेज वह…
वालंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑव पंजाब (वीएचएपी) ने जब एचआईवी ग्रस्त लोगों और जिनमें सीडी-4 की संख्या 200 से भी कम…
Growing up, for me, has been about accepting that the loneliness and sadness woven into the fabric of my being do not go away with entering conventional arrangements like monogamous relationships or marriage.
1 जून, 2014 त्रिना निलीना बनर्जी 1997 में रितुपर्णो घोष द्वारा उपन्यासकार सुचित्रा भट्टाचार्य के उपन्यास ‘दहन’ पर आधारित इसी…