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कुछ ज़्यादा बड़ी

n abstract painting by SLR Jester which is a composite of different sized splatters and splashes of various colours.

हमारे शरीर के बारे में ऐसा क्या है कि हम उसके ऊपर इतनी चिंता में लगे रहते हैं? क्या इसलिए कि उसके लिए निर्धारित नियम तय हैं और हमें लगता है कि हमें उनके अनुसार ही चलना होगा, नहीं तो हम हार जाएंगे?असलियत में यह कारण तो नहीं हो सकता। हम कितनी ही निर्धारित अवधारणाओं पर सवाल उठाते हैं क्योंकि हम उन पर विश्वास नहीं करते लेकिन फिर भी, जब शरीर की बात होती है तो हमारी नींदें उड़ जाती हैं और हम कहीं ज़्यादा तो कहीं कम करने की कोशिश करने लगते हैं। क्या हमने कभी इसको हिंसा के रूप में देखा है? क्या हम अपने साथ जो करते हैं और हिंसा के प्रति हमारी कथित घृणा के बीच जुड़ाव देख सकते है? हम हमेशा ऐसा क्यों सोचते हैं कि हम पर हिंसा कोई और करता है और ऐसा नहीं है कि हम ख़ुद पर आसानी से हिंसा कर लेते हैं लेकिन हमारे पास हज़ारों बहाने होते हैं कि हम खाते क्यों नहीं हैं, फ़ेयर एण्ड लवली क्रीम क्यों लगाते हैं, घंटों जिम में कड़ी मेहनत करते हैं, और हमेशा इसी बात पर ध्यान देते रहते हैं कि किस ने कितने किलो (वज़न) बढ़ा या घटा लिया है और वह भी आध्यात्मिक अर्थ में नहीं?

आख़िर यह कहने का क्या फ़ायदा कि मेरा शरीर मेरा है जब असल में हमारा मतलब यह है कि मेरा शरीर आंशिक रूप से मेरा है और बाकी शरीर मेरे माँ-बाप, जिम, मैं जिन लोगों को चाहती हूँ और वे मुझे नहीं चाहते उनका, मीडिया, समाज और अनगिनत अनजान लोगों का है, जिन्हें लगता है कि वे मुझे राय दे सकते हैं और बता सकते हैं कि मुझे कैसा दिखना चाहिए। 

मैं हर दिन एक जैसी ही दिखती हूँ। लंबी, बड़ी, साँवली औरत। दूसरों के लिए, मैं क्या हूँ, यह अलग-अलग है। किन्हीं दिनों में एक सुंदर औरत, और अन्य दिनों में एक मोटी औरत। कुछ के लिए मैं एक आदमी हूँ, दूसरों को मेरा जेन्डर चक्कर में डाल देता है। कुछ लोगों को मुझे देख कर लगता है मैं हॉट हूँ जबकि कुछ को लगता है कि मुझे तुरंत 90 किलो वज़न कम करने का प्रोग्राम शुरू कर देना चाहिए। 

मैं यह सब कुछ हूँ भी, और नहीं भी। 

प्रमदा मेनन एक क्वीयर फ़ेमिनिस्ट हैं। वह एक स्टैंड-अप परफ़ॉरमेंस आर्टिस्ट भी हैं; उनका शो “फ़ैट, फ़ेमिनिस्ट और फ़्री” जेंडर और यौनिकता के विषयों को व्यंग भरे अंदाज़ से देखता है। उन्होंने एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म “एंड यू थॉट यू न्यू मी” भी बनाई है – पांच लोगों के जीवन पर एक नज़र जिन्हें जन्म के समय महिला जेंडर निर्धारित किया गया था। अपनी दाल रोटी के लिए वह एक कंसलटेंट (सलाहकार) के तौर पर काम करती हैं।

निधि अगरवाल द्वारा अनुवादित। 

To read the original in English, click here.

कवर इमेज: SLR Jester