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किसी ने मुझसे सेक्स के बारे में बात नहीं की

Picture of a flower with thorns

मैं एक ऐसे समाज में पला-बढ़ा हूं जो धार्मिक हराम (पापकर्म) और सामाजिक आएब (शर्म) से घिरा है। ये दोनो मुख्य संस्थागत बुनियादी ढांचे के रूप में काम करते हैं जो एक नियंत्रित भाषा के भीतर लोगों की यौन और जेंडर पहचान को बैठाता है।

एक क्रोध भरी चीख़ के साथ मुझे इस विचित्र वाक्यांश के लिए कुछ संदर्भ प्रदान करके बताने दें की यह ढांचा हमारी ज़िंदगी में कैसे कमी पैदा करता है। सेक्स के बारे में बातचीत की कमी या यौनक्रिया कैसे आनंददायक होनी चाहिए। कोई भी महिलाओं को यह नहीं समझाता है कि उन्हें ओर्गास्म का अनुभव करने का अधिकार है और ऐसा करने पर उनके चरित्र पर ऊँगली नहीं उठाई जाएगी। लेकिन रुकिए, यह आएब है। कोई भी पुरुषों को यह याद नहीं दिलाता है कि यौनक्रिया केवल अपने लिंग द्वारा रौब जमाने के बारे में नहीं है। कोई भी हमें यह नहीं बताता है कि हम समलैंगिक साथी के साथ खुशी पा सकते हैं क्योंकि अगर हमें इसके बारे में पता चल जाये तो हम हराम प्रणाली के नियंत्रण से निकल जायेंगे। सेक्स को, अगर उसके बारे में कभी बात भी की गई है, केवल प्रजनन के उद्देश्य से देखा जाता है – एक भावहीन क्रिया जिसमें बस मर्द हकदार एवं मुख्य खिलाड़ी है और जहां हराम या आएब लागू नहीं होता है।

हमें ख़ुद को यह याद दिलाना ज़रूरी है कि हराम और आएब को पितृसत्ता की वैश्विक प्रकोप से बढ़ावा मिलता है। वे एक ऐसी क़ैदी संस्था, बाध्यकारी बुनियादी ढाँचे और प्रतिबंधक प्रणाली का हिस्सा हैं जो अपनी प्रजा की स्वतंत्र पहचान और खुली अभिव्यक्ति को नियंत्रण मैं रखते हुए अपनी व्यापकता को बनाए रखता है।

यह प्रणाली, लोगों की यौनिकता और यौन अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने का लक्ष्य रखते हुए, विशेष प्रभावी रूप से अल्पसंख्यकों के खिलाफ, इस जटिलता में भी योगदान देती है कि मौका मिलने पर हम कैसे और क्यों यौनक्रिया से अंतरंग रूप से व्यक्तिगत आनंद लेते है। यह यौन अभ्यास और अभिव्यक्ति में लचीलापन भी जोड़ता है, एक ऐसा लचीलापन जो स्व-निर्णित और प्रणाली-आधारित दोनों है। मैं आप पर सिग्मंड फ्रायड के सिद्धांतों की वर्षा नहीं करूँगा, लेकिन यहां वे पुरुष हैं जो अपने ऊपर महिलाओं द्वारा हावी होना और यौनक्रिया के दौरान पट्टेदार कृतिम लिंग का प्रयोग करना पसंद करते हैं और इससे बहुत आनंद प्राप्त करते हैं, वे पुरुष जो बड़े पुरुषों द्वारा बंधे रहना और दंडित होना पसंद करते हैं, महिलाएं जो आज्ञा मानना ​​और वेश्या कहलाना पसंद करती हैं, और इसी तरह आगे भी।

ये सुखद प्रथाएं हैं जो पेचीदा आंतरिक इच्छाओं को दर्शाती हैं और इनकी ऊपरी रूप से निंदा करके कलंकित नहीं करना चाहिए। वे उन आकांक्षाओं से जुड़े हुए हैं जिनको लचकता नियंत्रण करने वाली प्रणाली एक सिरे प्रभावित करती है और पोर्न (कामुक सामग्री), सेक्स टॉयज़ (यौन खिलोने), औरजी पार्टीज़ (यौन सम्बन्ध के लिए कई लोगों का इकठ्ठा होना) आदि के माध्यम से एक व्यापारिक वस्तु में बदल देती हैं। ये फ़िर संरचित आनंद के एक अतिरिक्त विकल्प द्वारा अपने दर्शकों को लुभाती हैं – “क्या तुमको डैडी का बड़ा लिंग पसंद है?”, “तुमको थप्पड़ खाना अच्छा लगता है ना?”, “मुझे भी पोर्न फिल्म की उस महिला की तरह बांधो”, और ऐसे कई और जो लोगों के अचेतन जी-स्पॉट को उकसाने अनुरूप बनाए गए हैं।

अगर कोई कहता है, “मुझे छोटे लिंग पसंद हैं, क्योंकि जब हम उन्हें अंदर लेते हैं, तो हम उसे अधिक से अधिक चाहते हैं “, तो दिल खुशी से फट जाता है। लोग यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि उनमें ऐसी पसंद क्यों मौजूद है क्योंकि वे एक ऐसी प्रणाली में पले-बढ़े हैं जिसका उद्देश्य केवल नर-और-मादा के बीच प्रजनन हेतु भावहीन यौनक्रिया है। इसलिए लोगों को प्रणाली-जनित आत्म-जांच से पीछे हटके उस जटिलता का आनंद लेना चाहिए जो मनुष्यों के जीवन का स्वाभाविक अंश है। यह इस तरीके से किया जाना चाहिए जो एक ऐसे विमर्श पर ज़ोर दे जहां विभिन्न प्रकार कि यौनिकता और जेंडर अभिव्यक्ति को स्वीकार किया जाता है और जिसका उद्देश्य एक सुरक्षित स्थान बनाना है।

ऐसा स्थान बनाने के लिए हमें इस प्रणाली पर चर्चा करते रहने की आवश्यकता है जो ग़ैर-अनुरूप प्रथाओं और पहचानों को हाशिए पर रखकर लंबे समय तक शासन करने के लिए हमारी यौन प्रथाओं और जेंडर पहचान को नीतिबद्ध करती है। हमें यह स्वीकार करने और सराहने की भी ज़रूरत है कि हम जो और जैसे सुख प्राप्त करते हैं वो भी इसी प्रणाली के उत्पाद हैं, और हमें इसका उपयोग अधिक समावेशी स्थान बनाने और मात्र प्रणाली के उपकरण होने से बचने के लिए करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि हमें इस बात से अवगत होने की आवश्यकता है कि यौन सम्बन्ध और यौनिकता के संधर्ब में आम तौर पर इस्तेमाल होने वाली आपत्तिजनक भाषा का उपयोग करना पितृसत्ता का ज़हरीला पानी है जो मुख्य रूप से महिलाओं को हाशिए पर रखकर वस्तु बनाता है। यह भाप होकर बादलों में तब्दील हो जाता है और पूरे समाज पर वापस बरसकर इस प्रकार से पितृसत्तात्‍मक व्यवस्था को बनाए रखता है।

यह राजनीतिक और सामाजिक रूप से निर्मित भाषा पोर्न में देखी जाती है। हम इसका इस्तेमाल अपने दोस्तों और बिस्तर में अपने प्यारों के साथ करते हैं। लेकिन हमें इस बारे में चयनात्मक होना चाहिए कि हम इन वाक्यांशों का उपयोग करते समय किस और किन पर ज़ोर देते हैं। हमें नीचा दिखाने और वस्तुकरण करने वाली भाषा को यौन पहचान और जेंडर अभिव्यक्ति से अलग करने की ज़रूरत है।

याद रखें पुरुष बड़े फूहड़ हो सकते हैं!
महिलाएं आदम की पसली का टुकड़ा नहीं हैं जो केवल सेवा करने के लायक हैं!

आनंद जैसी जटिल चीज़ की बात आने पर भी हमें संस्थागत बुनियादी ढांचे और समाज में शक्ति की गतिशीलता को हिलाने की ज़रूरत है। हमारी भाषा और हमारी यौनिक प्रथाओं के बारे में जागरूक होने और उन्हें सामाजिक रूप से आत्मसात निर्माणों से वंचित करने से हमारे यौन व्यवहार की विविधता पर चर्चा करने के लिए एक सुरक्षित स्थान खुल जाएगा।

यह सिस्टम के प्रतिकूल अल्पसंख्यकों को भेदभाव के खिलाफ खड़े होने और जितना संभव हो सके अपने वास्तविक अस्तित्व के क़रीब रहने के लिए सशक्त करेगा। यह एक ऐसी प्रणाली पर पुनर्विचार और पुनर्परिभाषित करने के लिए प्रेरित करेगा जो विशेष रूप से महिलाओं को ओब्जेक्टिफाइ करती है (वस्तु बराबर समझती है) और यहां तक ​​कि उनके साथ बलात्कार होने को भी वैध बनाती है एवं फिर बाद में जब वे अपने बलात्कारी के खिलाफ खड़ी होती हैं, तो उन्हें शिकार बनाया जाता है और कभी कभी ज़िंदा जला दिया जाता है। यह हमें यथासंभव शारीरिक और भावनात्मक रूप से सुरक्षित रहकर हमारी यौन और जेंडर पहचान के मौलिक अधिकार का अभ्यास करने की आज़ादी देगा।

परिवर्तन की शुरुआत हमारे द्वारा यौनिकता, सेक्स और पहचान के बारे में नए सिरे से बात करने से होगी। हमारे दिमाग़ शक्तिशाली हैं और उन्हें हाशिए पर रखने वाली भाषा और प्रथाओं को स्पष्ट कर पाने में प्रशिक्षित किया जा सकता है। हमें अपनी विविध पहचानों और समावेशिता को बढ़ाने का लक्ष्य रखना चाहिए, और उस पक्षपात को कम करना चाहिए जो पितृसत्तात्मक व्यवस्था एक जेंडर को दूसरों की तुलना में दिखाती है। यह, जैसा कि मैं हमेशा ज़ोर दूंगा, केवल एक चर्चा से शुरू हो सकता है। तो चलिए चर्चा शुरू करते हैं।

अब्दुल्ला एरिकत चयापचय रोगों में जीनोमिक्स और ड्रग डिस्कवरी के एक जूनियर वैज्ञानिक हैं। विज्ञान के अलावा, उन्हें यौन और जेंडर विविधता पर चर्चा करने का शौक है। उन्हें यौनिकता और जेंडर पर सामाजिक-जैव-राजनीतिक राज के जटिल प्रभाव के बारे में लिखने में आनंद आता है। उन्हें प्रदर्शन कला, नृत्य और भाषाएं पसंद हैं।

अरीब अहमद द्वारा अनुवादित

To read the original in English, click here.

Cover Image: Pixabay