हिन्दी
The most satisfying spiritual and sexual experiences I’ve had were not in my twenties, thirties or even forties. They have been in my 50’s. The most insightful spiritual insights, and the most orgasmic orgasms have both arrived in middle age.
पूरे देश में ऐसे कई क्वीयर लोग होंगे जो अपनी ‘मातृभाषा’ में अपनी क्वीयर पहचान को एक नाम देने में नाकामयाब रहे हैं।
हम धीरे-धीरे अपनी शर्म, असहजता, और ‘हेटेरोनॉर्मेटिव’ मानसिकता से ऊपर उठने लगे ऐसी कई सारी कृतियों का विश्लेषण करते हुए, जो न तो वात्स्यायन का ‘कामसूत्र’ थे और न ही यौनिकता पर फ़ूको की समीक्षा।
ऑनलाइन डेटिंग पहली मुलाक़ात में किसी को अपने घर बुला लेने जैसा लग सकता है, लेकिन फ़र्क़ ये है कि हम फ़ैसला कर सकते हैं कि हम उन्हें अपने घर और अपनी निजी ज़िंदगी के कौन-से हिस्सों में जगह देने के लिए तैयार हैं।
मां बनने के बाद से आत्म-देखभाल पर मेरे नज़रिये में बहुत बदलाव आया है। एक अभिभावक की भूमिका निभाते हुए और उसकी चुनौतियों का सामना करते हुए अपना ख़्याल कैसे रखा जा सकता है?
हमारा मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ़ हमारी इकलौती ज़िम्मेदारी नहीं है बल्कि उन संस्थाओं और व्यवस्थाओं की भी ज़िम्मेदारी है जिनका हम हिस्सा हैं। इसलिए हमारी सेहत और ख़ुशहाली बनाए रखने के लिए इनका योगदान ज़रूरी है।
उर्दू शायरी की एक पूरी शैली है, ‘रेख़्ती’, जो औरतों के नज़रिये से लिखी गई है और जिसमें औरतों की ज़िंदगी और भावनाओं की बात होती है। ये ‘रेख़्ता’ का उल्टा है, जो कि मर्द के नज़रिये से लिखा गया साहित्य है।
व्यापक यौनिकता शिक्षा किशोरावस्था के विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है जो दृष्टिकोण, व्यवहार, और समग्र विकास को प्रभावित करती है।
एक मानवशास्त्रीय दृष्टिकोण से बॉलीवुड की फ़िल्मों में वर्ग और जेंडर के मुद्दों के चित्रण पर ग़ौर करना केथ्रीजी जैसी फ़िल्मों पर नई आलोचनाओं को बढ़ावा देता है।
उनकी सेक्सी कहानियों में आनंद और फैंटसी का चित्रण पूरी तरह औरतों की इच्छाओं पर केंद्रित हैं।
In this month’s issue of Play and Sexuality, Wesley D’Souza recounts the time his school put up a production of The Pied Piper of Hamelin, his preparations for its audition, and how the process was intertwined with an exploration and acceptance of his sexuality.
आख़िर डिजिटल माहौलों पर अपना हक़ जताना… मटरगश्ती ही तो है, ख़ासकर अगर वे माहौल वासना, रोमांस, सेक्स, और आनंद पर केंद्रित हों।
आज सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्मस के रूप में पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में है, और मुझे इस बात का एहसास है कि काफ़ी हद तक मैंने इस ताक़त को हल्के में लिया है।
इंटरनेट की दुनिया मुझे अपने ‘ज़नाना’ शरीर पर पितृसत्ता के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का मौक़ा देती है।
हम कैसी भाषा का प्रयोग करते हैं, अपने ख़्याल कैसे बयां करते हैं, यहां तक कि बात करते दौरान कैसी आवाज़ का इस्तेमाल करते हैं ये सब हमारी सामाजिक परवरिश पर निर्भर करता है।