वह एक ऐसे परिवार में बड़ी हुई थीं जहाँ बनने संवरनें की सराहना की जाती थी, इसलिए कपड़ों के प्रति उनकी चाहत को कभी भी विलासिता की तरह नहीं देखा गया। उनकी माँ की शख्शियत की एक विशिष्ट पहचान, उनकी बड़ी सी बिंदी और सूती साड़ी हमेशा अपनी जगह पर रहती थी, चाहे दिन का कोई भी समय हो, चाहे वो खाना बना रहीं हों, धूप या बारिश में बाहर गई हों, सो रहीं हों या बस अभी ही जागी हों, हंस रहीं हों, या रो रहीं हों। उनकी और उनकी बहन के लिए, उनकी माँ की फैशन को लेकर एक ही सलाह थी, “हमेशा ऐसे तैयार होकर रहो जैसे आप बाहर जा रहे हों, भले ही आप सारा दिन घर पर ही हों।” अपनी माँ की सलाह के बावजूद, वह घर पर ‘गुदड़ी के लाल’ की तरह और बाहर जाते वक़्त ‘सिंडरेला’ की तर्ज़ पर चलने वाली बनी।