हँसे या न हँसे?
"अगर आप उसपर हँस सकते हैं तो सब कुछ मज़ाकिया है।" - लुईस कैरोल लुईस कैरोल को अधिकार-आधारित परिप्रेक्ष्य वाला माना जा सकता है क्योंकि वह हर किसी की हँसने की ताकत (एजेंसी) की पुष्टि करते हैं। लेकिन, हर किसी को हर बात मज़ाकिया नहीं लगती है, और ये हमें मानहानि के दावों की बढ़ती…