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घर के काम-काज से
निपट कर
औरतें
दोपहर में
शायद यही बातें करती होंगी
इस महीने के इन प्लेनस्पीक के इंटरव्यू खंड के लिए हमने कुछ ऐसे लोगों से बातचीत (इंटरव्यू का पहला भाग)…
इस महीने के इन प्लेनस्पीक के लिए 2 भागों में लिए गए इस इंटरव्यू के लिए शिखा आलेया ने कुछ…
जब कभी भी यौनिकता के संदर्भ में जोखिम की बात होती है, तो प्राय: लोग ऐसे लोगों के बारे में…
संपादक की ओर से: इस लेख का प्रकाशन अंग्रेज़ी में इन प्लेनस्पीक 2014 के अगस्त महीने के संस्करण में हुआ…
“ट्रांसजेंडर लोगों से सम्बंधित विषयों पर यूं तो अनेक संगठन काम कर रहे हैं लेकिन फिर भी, बहुत कम महिला…
भारतीय समाज में मातृत्व को पवित्र माना गया है – यहाँ आपको संतान पैदा करने के अयोग्य महिलाओं को चुड़ैल…
न जाने कितने अनुभवों के बाद ही मैंने यह समझा था कि देर रात से घर लौटने के लिए आख़री लोकल ट्रेन में सफर करना भी एक विकल्प हो सकता है। अपने घर से दूर किसी दूसरे शहर में रहते हुए बड़े होने का एक लाभ यह होता है कि आप दुनिया को एक नए नज़रिये से देख पाते हैं।
पहनावा किसी भी व्यक्ति की छवि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। समाज में किसी भी व्यक्ति की पहचान उनके पहनावे से भी की जा सकती है। कपड़े एक मनुष्य की पहचान का सबसे स्पष्ट हिस्सा होते है। कपड़े शरीर का घूंघट होते हैं। वे शील और यौनिक मुखरता के, अस्वीकृति के और अभिराम के, जश्न के खेल के नियमों को समाहित करते हैं। वे आइना होते हैं समाज के पदानुक्रम का, यौनिक विभाजन का और नैतिक सीमाओं का।
हमें इस तरह से ढाला गया है कि तथाकथित ‘विकल्प’ जो हमारे संबंधों को परिभाषित करते हैं, वे भी हमारे लिए हुए विकल्प नहीं बल्कि समाज द्वारा सृजित हैं। हालाँकि, जैसा कि हमने देखा है, इन सभी चुनौतियों के बावजूद, महिलाएँ, जब वे खुद को व्यक्तियों के रूप में महत्वपूर्ण मानने लगती हैं, तो वे अपने परिवेश और परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करने की रणनीति तैयार करती हैं।
उत्पीड़न करने की आदतों को बदलने की कोशिश में नीतियों का बदला जाना ज़रूरी होता है, लेकिन इसके लिए यह भी ज़रूरी है कि लोग उत्पीड़न के विरोध में अपनी आवाज़ उठाएँ।
पहनावे से जुडी नैतिक पुलिसिंग व लैंगिक भेदभाव को लेकर एक लंबा इतिहास रहा है। जहां पुरुषों के लिये उनका पहनावा उनके सामाजिक स्टेटस को दिखाता है वहीँ दूसरी ओर महिलाओ के लिये उनके पहनावे को लेकर मानदंड एकदम अलग है! जोकि महिलाओं के पहनावे के तरिके की निंदा करते हुए एक व्यक्तिगत पसंद पर नैतिक निर्णय बनाते हैं! भारत में कई राज्यों में महिलाएँ या लडकियां कुछ खास तरह के कपड़े नहीं पहन सकती है या फिर मैं ये कहूंगी कि ऐसे कपडे जिसमें वो ज्यादा आकर्शित लगती हों! जबकि पुरुष वही तंग जींस पहन सकते हैं पारदर्शी शर्ट पहनते हैं और धोती पहन सकते हैं!
सेक्स और यौनिकता को लेकर हमारे समाज में बहुत सारी वर्जित बातें हैं – चाहे वो हस्तमैथुन के बारे में…
मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरे पिता ने मुझे हस्तमैथुन करते हुए देखा लिया था।