डर और आज़ादी के बीच…
जीवन में उम्र बढ़ने के साथ, खासकर किशोरावस्था पार होने पर, यौनिकता पर चर्चा में हमेशा ‘सुरक्षित रहने’ पर ही बात होती है – और इसी नज़रिये से यह माना जाता है कि हमारी सुरक्षा इसी बात पर निर्भर करती है कि हम एक विषमलैंगिक-पितृसत्तात्म्क व्यवस्था के अनुरूप किसतरह से व्यवहार करते हैं।