जब भी मुझसे पूछा जाता है कि “आपके सपनों का घर कैसा है?”, तो मेरे मन में पहाड़ियों में नदी के किनारे बने एक घर की तस्वीर उभर आती है, जिसमें गुलाबी, बैंगनी और पीले रंग की बेल से सजा बगीचा है। गर्मी के दिनों में पिकनिक का इंतज़ाम, बिजली गुल होने पर गरजती रातों में मोमबत्तियां जलाना, दिन भर के लंबे समय के बाद शाम को बालकनी में चाय पीते हुए सूरज को ढलते देखना। जब मैं इस बारे में सोचती हूँ तो मुझे अभी भी अपने बचपन की धुंधली तस्वीरें दिखाई देती हैं।
लेकिन कुछ साल पहले ही मुझे एहसास हुआ कि जब भी मैं भविष्य के बारे में सोचती हूँ, तो मेरे मन में हमेशा अपनी सबसे करीबी महिला मित्रों की तस्वीर उभरती है। मेरे हर फ़ैसले पर सबसे ज़्यादा असर उन्हीं का पड़ता है, चाहे वो दिवाली पर कौन सा रंग पहनना है की बात हो या किस स्कॉलरशिप के लिए आवेदन करना है उसकी।
जब मैं पहली बार घर से दूर रह रही, तब मुझे अपने जीवन में महिलाओं के साथ दोस्ती और रिश्ते की सच्ची कद्र होने लगी। मिरांडा हाउस हॉस्टल में आना मेरे जीवन के सबसे बड़े बदलावों में से एक था; अचानक मैं हर समय लोगों से घिरी रहती थी, लेकिन मैंने कभी इतना अकेला महसूस नहीं किया था। मुझे फँसा हुआ, अकेला महसूस हुआ और घर की याद सताती रहती थी।
सब कुछ बड़े पैमाने पर बदलने ही वाला था कि तभी मेरी मुलाक़ात उन लड़कियों से हुई जो मेरी ताक़त बनने वाली थीं। जब मैं उस पल के बारे में सोचती हूँ तो यादों की तस्वीरों से बनी एक रील सामने आ जाती है; हर शाम केके के साथ लंबी सैर पर जाना और सर्दियों की बारिश में भीगना, क्रिस्टीना के बालों की चोटियां खोलना जब उसने अपने असली बाल रखने का फ़ैसला किया था (इसमें हमें तीन घंटे लगे!), त्सुको के साथ उसके चर्च के बैंड की प्रैक्टिस में जाना क्योंकि उसने वादा किया था कि जब बैंड खाना ऑर्डर करेगा तो वो हमारे लिए मोमोज़ लाएगी।
हर दिन एक नए रोमांच वाली युवावस्था की फिल्म जैसा था, और इस फिल्म को दिलचस्प बनाने के लिए हमें किसी रोमांटिक विषय की ज़रूरत नहीं थी। लड़कियों के साथ रात को ठहरने की जो आम कल्पना है उसके विपरीत, मुझे याद है कि एक बार भी कोई पुरुष चर्चा का विषय नहीं बना। हमेशा कुछ और – जैसे असाइनमेंट, समाज की प्रतियोगिताएं, कौन से जूते ख़रीदने हैं – ज़रूरी होता था। यही वह समय था जब हम बड़े हो रहे थे, नई चीज़ें सीख रहे थे, नई किताबें पढ़ रहे थे और लगभग हर दिन कुछ नया तलाश रहे थे, और यह सिर्फ़ महिलाओं की जो जगह थी ये हमें बिना किसी दिखावे या पुरुष की नज़र के ऐसा करने का मौका देती थी।
इससे मुझे “लिटिल वुमन” का यह उद्धरण याद आता है, जो मेरा पहला उपन्यास था जिसे मैंने पांचवी कक्षा में पढ़ा था। यह लुईसा एम. अल्कॉट द्वारा लिखा गया था और हाल ही में इसी उपन्यास पर आधारित फिल्म में सीऊओश रोनन के अभिनय से यह लोकप्रिय हुआ। इसमें लिखा है, “औरतों के पास दिमाग होता है, उनके पास आत्मा होती है, और पास दिल भी होता है। और उनमें महत्वाकांक्षा होती है, उनके पास प्रतिभा होती है, और साथ ही सुंदरता भी होती है। मैं उन लोगों से बहुत तंग आ गई हूँ जो कहते हैं कि एक औरत सिर्फ़ प्यार करने के लायक ही होती है।”
यह पहली बार था जब महिला मित्रता के बारे में मैंने जो बातें सुनी थीं, ज़्यादातर टीवी और लोकप्रिय संस्कृति से, जैसे कि “लड़कियाँ हमेशा एक-दूसरे से जलती रहती हैं”, “पुरुष मित्र होने में ड्रामा कम होता है”, ये बातें गलत साबित हो रही थीं। एक भी ऐसा मौका नहीं था जब इनमें से किसी लड़की ने पूरी ईमानदारी से मेरा साथ न दिया हो। ऐसा एक भी मौका नहीं था जब उन्होंने मेरे हित का ध्यान न रखा हो।
अब मैं इसके बारे में सोचती हूँ, तो जानबूझ कर महिलाओं की दोस्ती और जुड़ाव को रोकने की कोशिशें हर जगह देखी जा सकती हैं, यहाँ तक कि हमारी भाषा में भी। महिलाओं की दोस्ती और समूहों को नीचा दिखाने के लिए ‘किटी पार्टी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल, या महिलाओं के किसी समूह द्वारा अपने हित में व्यक्त की गई किसी भी राजनीतिक असहमति या राय को दबाने के लिए ‘महिला मंडली‘ शब्द का इस्तेमाल, इनसे सच्चे जुड़ाव और एकजुटता को रोकने के लिए भाषा में स्त्री-द्वेष का कपटी प्रभाव साफ नज़र आता है।
मिरांडा हाउस को राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) द्वारा एक बार फिर नंबर 1 का दर्जा दिया गया है। मिरांडा में प्रवेश के लिए कट-ऑफ प्रतिशत हर साल बढ़ता ही जा रहा है। मिरांडा का हर छात्र पढ़ाई में कड़ी मेहनत, खेलकूद या अतिरिक्त (एक्स्ट्रा-करिकुलर) गतिविधियों में बेहतरीन प्रदर्शन करके वहाँ जाने का अधिकार अर्जित करता है, फिर भी दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में मिरांडा की लड़कियों को जिस तरह से वस्तु के रूप में देखा जाता है, वह कोई नई बात नहीं है। छात्रों के प्लेसमेंट, शैक्षणिक उपलब्धियों और उत्कृष्टता के बजाय, हमारे शरीर और कपड़ों की बात की जाती है।
मिरांडा हाउस के खुले दिवाली उत्सव में सुरक्षा में हुई हालिया चूक और महिला विरोधी नारे लगाए जाने से यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं द्वारा स्थापित और इस्तेमाल किए जाने वाले स्थान, साथ ही महिलाओं द्वारा एक-दूसरे के लिए बनाए गए और महसूस किए गए संबंध, हमेशा पुरुषों के लिए ख़तरा बने रहेंगे। पुरुष हमेशा इन संबंधों और स्थानों को ख़ारिज करेंगे, अपमानित करेंगे और शैतानी करार देते रहेंगे।
ऐसे समय में, ऐसे संबंधों से मिलने वाला सुकून, उनसे मिलने वाला असीम प्यार और जो हमारे अंदर आत्मविश्वास जगाता है, वो और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इस दुनिया के हर सुकून में, मेरे जीवन में महिलाओं के साथ मेरी दोस्ती सबसे अनमोल है।
यह उन सभी मित्रताओं के लिए प्रेम और आशा का पत्र है, साथ ही उन महिलाओं के लिए कार्यवाही का आह्वान है, जो इस लेख को पढ़कर इन संबंधों को दोबारा प्राप्त करने में सफल हो सकती हैं, जिन्हें अक्सर उन लोगों द्वारा बदनाम किया जाता है, जो इन मित्रताओं के न होने से फ़ायदा उठाते हैं।
सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित
To read this article in English, please click here