Scroll Top

सभी बाधाओं के बावजूद

A poster of the Netflix film 'Rising Phoenix'.

महामारी के बावजूद, भले ही एक साल देरी से लेकिन टोक्यो ओलिम्पिक और पैरालिम्पिक गेम्स होने वाले हैं। इस बार की थीम है ‘भावनाओं से जुड़े’ और यह वास्तव में उपयुक्त है क्योंकि हम सभी को इस प्रेरणा की ज़रूरत है। भारतीय खेल प्राधिकरण ने मुझे टीम इंडिया की जर्सी भेजी और हमारे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन का संदेश भेजने के लिए आमंत्रित किया – 24 पैरालिम्पिक खिलाड़ी और 119 ओलिम्पिक खिलाड़ी। संदेश रिकार्ड करते समय मेरे अंदर भावनाओं का एक सैलाब जैसा उमड़ रहा था क्योंकि इन खिलाड़ियों ने इस अवसर के लिए वर्षों धूप में प्रशिक्षण किया था और दुर्भाग्यवश इस वर्ष, वे अपने परिवारों, दोस्तों और प्रशंसकों के साथ नहीं जा पाएंगे। लेकिन फिर भी, यह विश्व का सबसे बड़ा खेल आयोजन है और मेरे सहित सभी लोग भागीदारों को प्रोत्साहित कर रहे होंगे।

खेल की भावना में, मैंने नेटफ़्लिक्स फ़िल्म राइज़िंग फ़ीनिक्स देखी जिस में पैरालिंपिक्स के इतिहास और विकलांगता के विषय को सामने लाने के कारण विश्व पर इसके प्रभावों को दिखाया गया है। इस में पैरालिंपिक्स के कुछ सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के निजी और व्यावसायिक सफ़र को दिखाया गया है जो अपनी चुनौतियाँ, हताशा और प्रेरणाएँ साझा करते हैं। यह कहानियाँ (जिनमें से कुछ को मैं संक्षेप में नीचे लिखूँगी) हमें छूती हैं क्योंकि इन लोगों की अपनी ज़रूरतें हैं, अपने डर हैं, आशाएँ हैं और वे चाहते हैं कि वो जो हैं उसके लिए उन्हें प्यार किया जाए न कि उनके शरीर के अंग न होने के कारण उन पर दया। इन प्रेरणादायक कहानियों में हम देखते हैं कि कैसे, सभी बाधाओं के बावजूद, इन लोगों ने असाधारण उपलब्धियां हासिल की हैं। खेल जगत ऐसा एकताकारी जगत है जो उन्हें अपनी क्षमताएँ हासिल करने में मदद करता है। यह उन्हें एक ऐसी दुनिया में अपनी पहचान देता है जहां विकलांगता को हीन नज़र से देखा जाता है और जहां प्रणालियों, नीतियों और मूलभूत सुविधाओं की रूपरेखा बनाते वक़्त इन लोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

पैरालिंपिक्स के संस्थापक डॉ. लुडविग गुटमन हैं, जो कि स्टोक मेंडेविल अस्पताल के रीढ़ की हड्डी विभागाध्यक्ष थे और उनका मानना था कि चलने-फिरने में अक्षम मरीज़ों, खासकर जिन्हें रीढ़ की हड्डी में चोट लगी है, का हिलना-डुलना आवश्यक है। हर दो घंटे में उनके शरीर को धीरे से करवट दिलवाने के अतिरिक्त, वे उनके साथ साधारण बॉल गेम, व्हीलचेयर पोलो, बास्केटबॉल, तीरंदाज़ी, और डार्टस खेला करते थे। उन्होंने पाया कि इन खेलों को खेलने से उनके मरीज़ों के शरीरों में ताक़त आती है और वे जीने, कामयाब होने, और उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित होते हैं। और यहीं से स्टोक-मेंडेविल गेम्स फॉर द पैरालाइज़्ड की शुरुआत हुई, जिन्हें 1948 लंदन ओलिंपिक्स, विश्व युद्ध II के बाद पहले ओलिम्पिक गेम्स के साथ आयोजित किया गया। 14 पुरुषों और 2 महिलाओं ने इन खेलों में खेले गए एकमात्र खेल तीरंदाज़ी में भाग लिया। यही आगे चलकर पैरालिंपिक्स गेम्स बन गए, जिसका पहला आयोजन रोम में 1960 में हुआ, जहां 23 देशों के 400 खिलाड़ियों ने भाग लिया। लोगों के अनुमान के विपरीत, ‘पैरालिंपिक्स’ शब्द का अर्थ यहाँ पर ओलिंपिक्स के पैरालेल (समानांतर) है न कि ‘पैरालाइज़्ड (विकलांगों) के लिए’।

2012 लंदन ओलिंपिक्स में सर फिलीप क्रैवन, अंतर्राष्ट्रीय पैरालिम्पिक कमिटी के अध्यक्ष, के नेतृत्व में पैरालिंपिक्स गेम्स अपने चरम पर पहुँच गए। भूतपूर्व व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी होने के नाते, उनके अंदर विकलांग लोगों के लिए अधिक से अधिक अवसर पैदा करने और अक्षमता तथा विकलांगता के साथ जीने वाले लोगों के बारे में आम सामाजिक धारणाओं को बदलने के बारे में जुनून था। उन्होंने विकलांगता अधिकार आंदोलन पर प्रकाश डालने के लिए एक अभियान चलाया क्योंकि उनका मानना था कि पैरालिंपिक खेलों में विकलांगता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए बहुत कम समय था। लंदन पैरालिंपिक्स के लिए प्रचार के रूप में, उससे पहले हुए ओलिम्पिक गेम्स के अंत में, पूरे शहर में होर्डिंग लगाए गए जिन पर लिखा था “वॉर्म-अप के लिए धन्यवाद”, यह कहने का एक चुटीला अंदाज़ कि पैरालिंपिक्स ‘असली चीज़’ है और साथ ही एक साहसिक कदम, चूंकि उस समय विकलांगता के साथ जी रहे व्यक्तियों के ख़िलाफ़ अपराध हमेशा के मुक़ाबले सबसे उच्च स्तर पर थे। कई लोगों को नहीं लगता था कि पैरालिंपिक्स वास्तव में एक खेल आयोजन है। लेकिन इन गेम्स ने दिखा दिया कि कैसे विकलांगता के साथ खेलने वाले ऐथलीट्स असाधारण लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं, भले ही उनके आसपास के लोगों को लगता हो कि वे नहीं कर सकते।

जैसे कि फ़िल्म में एक अनाम पैरा-खिलाड़ी कहते हैं, “हम सब सुपरहीरो हैं क्योंकि हम सब ने त्रासदी का अनुभव किया है। हम सब कुछ ऐसा जी कर उभरे हैं जो हमें सफ़ल होने की इजाज़त नहीं देता। और इसी में हमारी ताक़त है।”

यह कहानियाँ अविश्वसनीय हैं क्योंकि इन खिलाड़ियों को बार-बार बताया गया था कि एक सम्पूर्ण जीवन जीना उनके लिए असंभव होने वाला था। उन्हें डराया-धमकाया और प्रताड़ित किया गया, लेकिन उन्होंने खेल से प्रेरणा पाई, पूर्ण आत्म-विश्वास और लचीलेपन के साथ आगे बढ़े, और कई लोगों को प्रेरित किया। जैसे कि लंदन में देखा गया, सभी स्टेडियम दर्शकों से भरे हुए थे जो उन्हें प्रोत्साहित कर रहे थे और यह मानव शरीर और मन की सुंदरता और ताकत के प्रति अपनी आंखें खोलने का एक शानदार मौक़ा था।

ओलिंपिक्स में, हम मानव शरीर की बनावट और फ़िट्नेस पर आश्चर्य करते हैं। यह हमेशा से ही ‘सर्वोत्तम’ शरीर का जश्न मनाते आए हैं, ऐसा शरीर जो ग़ैर-विकलांग है और उसे विषमलैंगिक-पितृसत्ता की नज़र से देखा जाता है। लेकिन पैरालिंपिक्स में, कोई भी दो शरीर एक जैसे नहीं होते। कुछ जन्म से विकलांग होते हैं और कुछ किसी दुर्घटना के कारण विकलांग हो जाते हैं, चिकित्सीय कारण से या युद्ध में भी। एक ही खेल खेलते हुए भी, दो खिलाड़ी शारीरिक रूप से एक जैसे नहीं होते। लेकिन यह इन खिलाड़ियों के पदक जीतने की चुनौती में आड़े नहीं आता। वे जटिल प्रशिक्षण करते हैं और प्रतियोगिता में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं।

ऑस्ट्रेलियन तैराकी चैम्पीयन ऐल्ली कोल का कहना है कि जब वे तीन वर्ष की थीं, तब अगर उनके माता-पिता ने पैरालिंपिक्स देख लिया होता, तो उन्हें विकलांगता के साथ जीने वाले लोगों की क्षमता पर ज़्यादा भरोसा होता। उनका जन्म एक स्वस्थ शिशु के रूप में हुआ था लेकिन उन्हें एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर था जिसके कारण तीन वर्ष की उम्र में उनका पैर अलग करना पड़ा था। उनके माता-पिता विकलांगता के साथ जी रहे किसी व्यक्ति को नहीं जानते थे और वे अपनी बेटी के लिए परेशान हो गए। ऐल्ली ने जब स्वान लेक देखी तो वे बैले नर्तकी बनना चाहती थीं और वे जल को अपने अंदर तरलता और फुर्तीलापन लाने के माध्यम के रूप में उपयोग करने के लिए प्रेरित हुईं। साथ ही वे अपने गुट में सबसे फुर्तीली बनना चाहती थीं। उन्हें अब ऑस्ट्रेलियन तैराकी टीम की सबसे मनोहर तैराकों में से एक माना जाता है।

बेबे वीओ एक इटालियन व्हीलचेयर तलवारबाज़ हैं जिनका ओलिंपिक्स में पदक जीतना हमेशा से एक सपना था। जब वे पाँच वर्ष की थीं, तभी उन्हें तलवारबाज़ी से प्यार हो गया और वे छः वर्षों तक इसकी चैम्पीयन रहीं। ग्यारह वर्ष की उम्र में, मेनिन्जाइटिस के कारण वे मृत्यु के करीब जाकर वापस आईं। वे कोमा में थीं, और उनका जीवन बचाने के लिए, डॉक्टरों को उनके कोहनी के आगे के हाथ और घुटने के नीचे के पैर हटाने पड़े। उन्हें नहीं पता था कि वे आगे अपना जीवन कैसे जीयेंगी, यहाँ तक कि अपने दांत भी कैसे साफ़ करेंगी। एक बार फिर तलवारबाज़ी ने उनका साथ दिया और उन्हें जीने के लिए प्रेरणा दी। वे हमेशा सवाल करती रहीं कि आखिर वे इस स्थिति में क्यों हैं क्योंकि उन्होंने तो कभी कुछ ‘ग़लत’ नहीं किया था। लेकिन एक चैम्पीयन होने के नाते, जीतने की उनकी मनःस्थिति ने उन्हें फोकस करने में मदद की। वे कहती हैं, “आपका दिमाग स्पष्ट होना चाहिए”। इसके बाद 2016 में उन्होंने पैरालिंपिक्स में स्वर्ण पदक जीता।

लौंग जम्पर और धावक जीन बैप्टिस्टे अलाइज़े का बचपन दर्दनाक रहा, जहां वे हूटू और टूटसी समुदायों के बीच बुरुंडी गृहयुद्ध से बच कर बाहर निकल पाए। वे अपनी माँ के साथ अपने गाँव से भाग रहे थे जब वे लड़ाई के बीच में फंस गए। लड़ रहे लोगों ने कुल्हाड़ी से उनकी टांग काट दी और उन्हें अपनी माँ को मरते हुए देखने के लिए मजबूर किया। इसके बाद, उन्हें एक विकलांग अनाथ के रूप में दोबारा अपना जीवन खड़ा करना पड़ा। बाद में उन्हें फ़्रांस ले जाया गया जहां उनको उनकी जाति और विकलांगता के कारण डराया-धमकाया जाता था। वे एकदम अकेले थे। वे कहते हैं, “मैं बचने के लिए दौड़ता हूँ” और “खेल ने ही मुझे बचाया”।

मैट स्टुटज़मैन उत्तरी अमरीका के एक तीरंदाज़ हैं जो चिकित्सीय रूप से अस्पष्ट, बिना हाथों के पैदा हुए थे और वे अपने पैरों को हाथों की तरह इस्तेमाल करते हैं। जल्द ही, उन्हें पता चला कि उन्हें गाड़ी चलाना बहुत पसंद है। वो कहते हैं कि कार अपने ड्राइवर को किसी रूढ़िबद्ध धारणा से नहीं देखती, क्योंकि उसे बस चलाए जाने से मतलब है। इसी तरह उनका मानना है कि तीरंदाज़ी के धनुष को केवल तीर चलाने से मतलब है। उन्हें एक परिवार ने गोद ले लिया जिन्होंने उन्हें दुनिया के अनुकूल ढलने में मदद की और उन्हें बताया कि दुनिया उनके अनुरूप नहीं ढलने वाली। उन्होंने उनको नई चीज़ें उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्हें पनपने के लिए जगह दी कि वे अपने समाधान खुद ढूंढ सकें। इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने गाड़ियां चलाईं, पेड़ चढ़े और यहाँ तक कि सांड की सवारी भी की।

तात्याना मैकफैडेन का जन्म रूस में स्पाइना बिफ़िडा (द्विमेरुता) के साथ हुआ जिसके कारण वे कमर के नीचे से पैरालाइज़्ड थीं। उन्हें एक अनाथाश्रम में रखा गया, जहां दुर्भाग्यवश उनके लिए व्हीलचेयर के लिए पैसे नहीं थे और वो अपने ऊपरी शरीर पर कूद कर चलती थीं। छः वर्ष की उम्र में उन्हें उत्तरी अमरीकी अभिभावकों ने गोद लिया। जब उन्होंने व्हीलचेयर रेसिंग शुरू की तो उनकी अच्छी तरह से विकसित ऊपरी शरीर की मांसलता काम आई। जब उनके कॉलेज ने उन्हें खेलों में भाग लेने और संबंधित सुविधाएँ उपयोग करने की इजाज़त नहीं दी, तो उन्होंने उनके खिलाफ़ विकलांगता के साथ जी रहे लोगों के अधिकारों को शामिल करने के लिए केस दर्ज कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, स्पोर्ट्स एण्ड फिट्नस इक्विटी ऐक्ट, एक संघीय कानून पास किया गया जिसे लोकप्रिय रूप से तात्याना कानून कहा जाता है। जब उन्हें रूस के विन्टर पैरालिंपिक्स में भाग लेना था, तो उन्होंने एक नया खेल चुना – डाउन्हिल सकीन्ग (ढलान पर सकीन्ग)। हाँलाकि उनके प्रशिक्षकों ने उन्हें सलाह दी कि उन्हें अपने ग्रीष्मकालीन खेल पर ध्यान देना चाहिए और कोई नया प्रयोग नहीं करना चाहिए, उन्होंने इस खेल में रजत पदक जीता और इस मौके पर उनकी जन्मदाता माँ और अभिभावक माता-पिता उनके साथ खड़े थे।

इस फ़िल्म में कैसे विकलांगता के साथ जी रहे खिलाड़ियों ने कई बाधाओं को पार करके अविश्वसनीय चीज़ें की हैं, के ऊपर इतनी प्रेरणादायक कहानियाँ हैं। प्रिंस हैरी, ससेक्स के ड्यूक जो कि पैरालिंपिक्स के एक बड़े समर्थक हैं, सही कहते हैं कि कितनी भी स्कूली शिक्षा या किताबें पढ़ने से इतनी प्रेरणा नहीं मिल सकती जितनी कि इन खिलाड़ियों को देख कर मिलती है, जिन्हें लोगों ने हमेशा यही कहा कि यह उनके लिए असंभव है। खेल ही एक ऐसा चीज़ है जो आपको जीवन में वापस लाता है।

लेकिन 2016 रियो ओलिंपिक्स में पैरालिंपिक्स नहीं होने वाले थे, चूंकि आयोजक समिति ने सभी को सूचित किया कि उनके पास पैसे खत्म हो गए हैं और वे अब खेलों की मेज़बानी नहीं कर सकते। यह खिलाड़ियों के लिए बेहद निराशाजनक था, जो इस बात से आहत थे कि उनके खेलों के लिए निर्धारित बजट को मुख्य ओलिंपिक्स के लिए उपयोग कर लिया गया, जिससे वे एक बार फिर विकलांगता के कारण हाशिये पर चले गए। यह पैरालिंपिक्स समिति के दृढ़ संकल्प और पैरवी से संभव हुआ कि गेम्स का आयोजन हो पाया। यदि यह गेम्स नहीं होते, तो विकलांगता अधिकार आंदोलन को एक बड़ा धक्का लगता क्योंकि उनका आत्मविश्वास टूट जाता। इसलिए ज़रूरी है कि टोक्यो ओलिंपिक्स में भी गेम्स जारी रहें।

पैरालिंपिक्स में हीरो जन्म लेते हैं। खिलाड़ियों की अदम्य भावना प्रभावी है। जैसा कि सर फ़िलिप क्रैवन कहते हैं, “हमें एक मौक़ा दो। नहीं, तो हम अपने लिए ख़ुद मौक़े बना लेंगे। गेम्स जारी रहेंगे।” यह कहानियाँ निश्चित तौर पर न केवल हमें विकलांगता के विषय पर अपने पूर्वाग्रहों को चुनौती देने के लिए आमंत्रित करती हैं, बल्कि उन समाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों को भी चुनौती देती हैं जो उन लोगों को प्रतियोगिता से बाहर रखते हैं जिनके पास ‘सम्पूर्ण’ शरीर नहीं हैं। याद रखिए, एक ऐसा भी समय था जब अश्वेत खिलाड़ियों और महिलाओं को गेम्स में जगह नहीं दी जाती थी और समलैंगिक लोगों का तिरस्कार किया जाता था।

इतिहास ने हमें दिखाया है कि पैरा-खिलाड़ियों को भी हमेशा से जगह या सहयोग नहीं मिला । ऐटलांटा ओलिंपिक्स में उनके साथ गरिमापूर्ण व्यवहार नहीं किया गया जबकि मास्को ने 1980 में उनकी मेज़बानी करने से इनकार कर दिया, जहां एक अधिकारी ने यहाँ तक कह दिया कि, “सोवियत संघ समाजवादी गणराज्य में कोई विकलांग नहीं है!” हमारे अपने पैरा-खिलाड़ियों को पैरालिंपिक्स योग्यता आयोजन में मूलभूत सुविधाओं जैसे कि व्हीलचेयर जाने योग्य रास्ते व अन्य सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ा। उत्तरी-अमरीकी बधिर नेत्रहीन तैराक बेका मेयर्स ने हाल में घोषणा की कि वे गेम्स से अपनी भागेदारी वापस ले रही हैं क्योंकि उन्हें अपने निजी देखरेख सहायक को ले जाने की इजाज़त नहीं दी गई, जो कि खेल में उनकी सफ़लता से हिस्सा लेने के लिए ज़रूरी हैं कोविड-19 के चलते सुरक्षा कारणों से सहयोगी स्टाफ की संख्या पर सीमा लगाते हुए, अमरीकी ओलिम्पिक और पैरालिम्पिक समिति ने उनसे कहा कि वे 33 अन्य तैराकों के साथ मिलकर एक निजी देखरेख सहायक की सेवाओं का उपयोग कर लें। यह उदाहरण दर्शाते हैं कि एक तुलयात्मक खेल का मैदान बनाने के लिए, इनमें से हर खिलाड़ी की ज़रूरतों पर ध्यान देना ज़रूरी है। इससे कुछ भी कम करना ग़ैर-समावेशी होगा और सचमुच उन्हें खेलों से बाहर रखेगा।

खेल एक एकताकारी जगत है और हम निश्चित रूप से यह सुनिश्चित करने के बेहतर प्रयास कर सकते हैं कि हम बुनियादी ढांचे में निवेश करें और सामाजिक दृष्टिकोण को बदलें ताकि हम विकलांगता के साथ जी रहे लोगों को ओलिंपिक्स सहित जीवन के सभी पहलुओं में सही मायने में शामिल कर सकें। मैं तो निश्चित तौर पर टीम इंडिया की जर्सी पहन कर उनको चीयर करने वाली हूँ।

एल्सा मेरी डि’सिल्वा (www.elsamariedsilva.com) सफेसिटी (www.safecity.in) संस्था की संस्थापिका और कार्यकारी निदेशक हैं। यह संस्था लोगों के अनुभवों के आधार पर सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं की जानकारी जुटाती है। एल्सा 2015 में ऐस्पन न्यू वॉइसेस की फ़ेलो रह चुकी हैं और इन्हें 2017 के वाइटल वॉइसेस ग्लोबल लीडरशिप अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है।

निधि अग्गरवाल द्वारा अनुवादित।

To read this article in English, click here.