मैं नहीं जानती इस लेखन को क्या बुलाऊं – एक निबंध, फील्ड की डायरी, या जर्नल एंट्री? यह पढ़ने वालों के विवेक पर निर्भर है कि वे इसे किस श्रेणी में रखना चाहते हैं।
मेरे लिए यह एक अनुभव, भावना, और याद है।
मैं आपसे अपने समुदाय की महिलाओं के बारे में बात करना चाहती हूं, उन्हीं महिलाओं के बारे में जिन्हें देखकर मैं बड़ी हुई हूं, जिनसे मैं प्रेम और समुत्थान सीखती हूँ।
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पिछले वर्ष, अपनी एम.ए. परियोजना के एक हिस्से के रूप में, मैंने उन महिलाओं से बात की जो शादीशुदा थीं, मुझसे बड़ी थीं और जिनकी उम्र तीस से सत्तर वर्ष के बीच थी। एक 23 वर्षीय शोधकर्ता के रूप में, उनका “अध्ययन” करना मुझे अपने आने वाले कल का अध्ययन करने जैसा लगा।
रुको! मेरा शोध महिलाओं, आराम और दोस्ती के बारे में था – मेरे तीन पसंदीदा शब्दों एक साथ। अपने शोध की प्रस्तावना में मैंने लिखा था, “…सशक्तिकरण के साधन के रूप में आराम और दोस्ती की क्षमता, महिलाओं को मानदंडों को चुनौती देने, समर्थन नेटवर्क बनाने और जेंडर आधारित परिदृश्य में अपनी पहचान को फिर से परिभाषित करने में सक्षम बनाती है।”
इन महिलाओं से बात करना शोध का सबसे आनंदित चरण था। दोपहर में हम बरामदे में बैठकर ज़िंदगी की बातें करते थे। उन दो घंटों के लिए, मैं, हर लिहाज़ से, उनकी दोस्त थी।
ग्रामीण मलयाली महिलाओं के लिए दोस्ती के मौके शहरी परिवेश की तुलना में अलग हैं। रविवार को कुदुम्बश्री1 की बैठकें ऐसी होती हैं जिनमें हिस्सा लेने के लिए वे सभी उत्सुक रहते हैं, क्योंकि यह उनके लिए अपने दोस्तों से मिलने का सामाजिक रूप से स्वीकृत मौका होता है। भले ही रविवार को ज़्यादा काम हो, लेकिन महिलाएं किसी तरह अपना काम निपटाकर पड़ोस में रहने वाली अपने दोस्तों के घर चली जाती हैं। बचपन में हम उन जमावड़ों को ‘शोरगुल वाली जगहें’ कहते थे जहाँ औरतें ऊँची आवाज़ में बातें करती थीं जिससे कभी-कभी रविवार की दोपहर की झपकी ले रहे पुरुषों को भी परेशानी होती थी। ये जमावड़े भले ही छोटे लगें, लेकिन प्रभावशाली होते हैं।
मेरी दादी कुछ साल पहले तक नियमित कुदुम्बश्री सदस्य थीं। मेरे दादाजी के देहांत के बाद, उन्होंने अपने बाहर जाने पर रोक लगा दी और धीरे-धीरे समूहों से अलग हो गईं। उन्हें खोने का मतलब था स्वयं सहायता समूह2 को दिया जाने वाला साप्ताहिक आर्थिक योगदान भी खोना। इसके बाद उन्होंने यह दिनचर्या अपनी बहू, यानी मेरी मां को सौंप दी, जो अब इलाके में महिला समूहों में सक्रिय हैं। बचपन में, मैं अक्सर अपनी दादी के साथ इन कुदुम्बश्री बैठकों में जाती थी। मेरे दोस्त भी वहां होते थे अपनी माँ और दादी के साथ। ऐसा लगता था एक दुनिया के अंदर एक और दुनिया है, साप्ताहिक तौर पर दोस्तों के मिलने की। मैं ग्रामीण महिलाओं के लिए दोस्ती के केन्द्र बिन्दु के रूप में कुदुम्बश्री पर एक पूरा अध्याय लिख सकती हूं, लेकिन मैं यहां रुकूंगी।
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इतिहास में लेखकों ने महिला का महिलाओं के साथ के रिश्तों का जश्न मनाया है। एड्रिएन रिच3 ने “लेस्बियन कॉन्टिनुयम” के बारे में लिखा, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे महिलाओं के सम्बन्ध भावनात्मक तौर पर एक तरह का पोषण प्रदान करते हैं। “आंतरिक जीवन” को साझा करने के लिए एक सुरक्षित जगह भी प्रदान करते हैं, और जिसे वह “पुरुष अत्याचार” कहती हैं, उसके खिलाफ़ ताकत का स्रोत प्रदान करते हैं। एलीन ग्रीन4 दोस्ती को एक सतत “धागा” के रूप में बयान करती हैं जो ज़िन्दगी के अलग-अलग बदलावों के दौरान लोगों को जोड़ता है।
लेकिन ये विचार मेरे समुदाय की महिलाओं के रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कैसे लागू होते हैं?
मेरी बातचीत में, महिलाओं ने अपने जीवन के विभिन्न चरणों में नए दोस्त बनाए – उनके पतियों के विपरीत, जो अक्सर बचपन के दोस्तों के एक ही समूह को बनाए रखते हैं। महिलाओं की मित्रता में शादी एक अहम मोड़ बन जाता है, क्योंकि जब वे अपने पति के घर चली जाती हैं, तो अक्सर वे अपने पुराने दोस्तों से संपर्क खो देती हैं। हालांकि स्मार्टफोन और इंटरनेट अब मददगार हैं, लेकिन वे किसी प्रिय मित्र के पास बैठने, हाथ पकड़ने और एक कप चाय साझा करने की शारीरिक अंतरंगता की जगह नहीं ले सकते। “ये वे विलासिताएं हैं जो पुरुषों के पास होती हैं,” कई लोगों ने मुझसे कहा – गांव के चौराहों और चाय की दुकानों में शाम को – दैनिक पुरुष मिलन। जगहें चाहे सार्वजनिक हो या निजी, भौतिक हो या भावनात्मक पर वे आज भी जेंडर के आधार पर बनी हुई है।
ऐसे में ग्रामीण महिलाओं के लिए मिलने-जुलने की जगहें आमतौर पर पड़ोस की सीमाओं के भीतर ही होते हैं। पारिवारिक समारोह, त्यौहार, शादी और अंत्येष्टि उनके लिए दोस्तों से मिलने और फिर से जुड़ने के अहम मौके और जगहें बन जाती हैं।
महिलाएं अक्सर अपने रोज़मर्रा के काम के बीच में अपने पड़ोसियों के घर जाती हैं, तेल या मसाला लेती हैं, या पपीता और मोरिंगा के पत्ते तोड़ती हैं। यह बातचीत आमतौर पर अल्पकालिक होती है, क्योंकि सब लोग जल्दी ही अपने काम पर लौट जाते हैं। फिर भी, हमें इन पलों के महत्व को कम नहीं आंकना चाहिए, ख़ासकर पितृसत्तात्मक संस्कृतियों में। वे मायने रखते हैं – जुड़ाव के छोटे-छोटे कार्य जिन्हें मैं सुरक्षित, और चुनौती के शक्तिशाली कार्यों के रूप में देखना चाहूंगी।
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मैं बड़ी उम्र की महिलाओं से यह पूछने में घबराती थी कि, “क्या आपके कोई दोस्त हैं?” ऐसी महिलाएं जो कभी-कभी मुझसे पचास साल बड़ी होती हैं। मैंने “दोस्तों” की जगह “साथी”, “पड़ोसी महिलाएं” और “पुराने सहपाठी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने की कोशिश की, लेकिन मैं बार-बार “दोस्तों” पर ही लौट आती थी। “दोस्त” का इकलौता विकल्प ख़ुद “दोस्त” है। स्थिर और एकमात्र। तब तक मैं यही मानती थी कि दोस्ती पुरुषों का क्षेत्र है। मैंने ऐसा क्यों सोचा कि यह वृद्ध महिलाओं के लिए नहीं है? मैं भाग्यशाली थी कि मुझे इसका एहसास हुआ। जैसा कि एक साठ वर्षीय ने मुझसे कहा, “आपकी दोपहरें आपके दोस्तों के साथ बातचीत करने में बीत जाएंगी” (तब तक जब तक कि चार बजे चाय के लिए कोई पूछने वाला आपकी दिलचस्प बातचीत में बाधा न डाल दे)।
ग्रामीण परिवेश में, महिलाओं की यौनिकता पर अक्सर “देखभाल और सुरक्षा” की आड़ में सूक्ष्म और लगातार निगरानी रखी जाती है। महिलाओं ने बताया कि अगर उन्हें खुले बाल में देखा जाए तो लोग अब भी टिप्पणी करते हैं। माथे के दोनों ओर लटकते बालों की दो छोटी लटें, जो एक लम्बी चोटी से अलग होकर गिर रही हैं, विद्रोह का संकेत देती हैं। एक ने कहा, “वे हमें बदचलन औरतें कहते हैं।” ऐसा लगता है कि बेतरतीब बाल, एक अनुशासनहीन औरत का प्रतीक बन जाते हैं।
जैसा कि एक महिला ने कहा, “मुझे घर पर भी एकांत नहीं मिलता। जब मैं अपने कमरे का दरवाज़ा बंद करके अकेली बैठती हूँ, तो मेरी सास अपनी आँखें घूमने लगतीं हैं। फिर उनकी आवाज़ भी असहज सी हो जाती है।” यहां तक कि शादी के भीतर भी महिलाओं की यौन और भावनात्मक गोपनीयता पर नज़र रखी जाती है, जो सार्वजनिक स्थानों से आगे बढ़कर घरेलू जीवन के सबसे अंतरंग कोनों तक फैली हुई है।
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महिलाओं की मित्रता का एक और केंद्रीय तत्व गपशप और हँसी-ठिठोली थी। महिलाएं चुटकुले सुनाती थीं और एक-दूसरे को चिढ़ाती थीं – जिससे उनका एक छुपा हुआ रूप सामने आता था जो केवल बाक़ी महिलाओं, यानी उनकी ‘बराबर’ महिलाओं के बीच ही दिखाई देता था। गिलिगन5 का काम यहां मददगार है। वह बताती हैं कि कैसे विषमलैंगिक संबंध प्रभुत्व और अधीनता को जन्म दे सकते हैं। इसके विपरीत, समलैंगिक मित्रता अक्सर महिलाओं के लिए अधिक भावनात्मक समर्थन और सलामती से जुड़ी होती है।
इन बातों में भावनात्मक अंतरंगता और खुलेपन की बात बार-बार सामने आई। एक एसएचजी सदस्य ने यहां तक कहा, “इस समूह को बनाने के पीछे मुख्य कारण हमारी दोस्ती और प्रशिक्षण कक्षा के दौरान बने रिश्ते को बनाए रखना था।”
अनेक ग्रामीण महिलाओं के लिए, स्वयं सहायता समूहों ने यात्रा और पर्यटन के दुर्लभ अवसर प्रदान किए हैं – घर और दिनचर्या से दूर रहने के लिए। उनमें से एक ने बड़े प्यार से याद किया, “हम (एक सफ़र के दौरान) एक ही कमरे में रुके थे, हम सब साथ-साथ। हमने पूरी रात उन बातों पर बातें कीं जिनके बारे में हमने कभी सोचा भी नहीं था। हम सोना भूल गए और हमें पता ही नहीं चला कि सुबह के छह बज गए।”
अन्य महिलाओं के साथ इन मित्रताओं में उन्हें अनूठी आज़ादी और अंतरंगता मिलती है, एक ऐसी जगह जहां वे बिना किसी की टिपण्णी के आगे बढ़ सकती हैं और ख़ुद को अभिव्यक्त कर सकती हैं। यहां, वे आत्म-अभिव्यक्ति के अपने हक़ को फिर से प्राप्त करती हैं, ख़ासकर उन नज़रों से दूर जो अक्सर घर पर या सार्वजनिक रूप से उनका पीछा करती हैं। इन समूहों में महिलाएं जीवन संबंधी सलाह और आत्म-सज्जा के संकेत देती हैं, और बदले में उन्हें स्नेहपूर्ण प्रशंसा और गले मिलने का मौका मिलता है।
जैसा कि रिच ने सही कहा है, महिलाओं के रिश्ते अक्सर प्यार और इच्छा/स्नेह के आधार पर बने रहते हैं। यह रिश्तें भावनात्मक के साथ-साथ कभी-कभी शारीरिक रूप से भी आराम देते हैं। अपने शरीर में सहजता महसूस करने और ख़ुद को फिर से परिभाषित करने के लिए एक जगह का निर्माण होता है। जिस दौरान सामाजिक मानदंड अभी भी आनंद, आज़ादी और अंतरंगता के बारे में चुप्पी साधे रखते हैं, उस दौरान इन शांत, संक्षिप्त अंतर्क्रियाओं में, महिलाएं आत्म-सम्मान के छोटे-छोटे स्थान बुनती हैं।
अगर मैं महिलाओं के साथ दोस्ती के बारे में की गई बातचीत का एक शब्द बादल (वर्ड-क्लॉउड) बनाऊं, तो वह कुछ इस तरह होगा – हँसी, डर, समर्थन, उपचार, भरोसा, एकजुटता, अपनापन, आज़ादी, सीख और आश्वासन।
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और फिर भी, मैं इतनी भोली नहीं हूं कि उन पर पितृसत्ता के प्रभाव को कमतर आंक सकूं। साक्षात्कारों में एक दर्दनाक विरोधाभास सामने आया। कुछ लोगों ने कहा, “परिवार तो परिवार ही होता है। दोस्त नहीं। मेरे लिए, मेरा परिवार किसी भी चीज़ से ऊपर है, और अगर वे ना कहते हैं, तो उसका मतलब ना ही होता है।” और अगले सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा, “यहां (महिलाओं के समूहों में) घर की तुलना में ज़्यादा ख़ुशी है,” फिर उन्होंने कहा, “मुझे ऐसा लगता है कि जब हम (महिलाएं) एक साथ बैठती हैं तो हमारे पास कुछ होता है।”
जैसा कि कहा जाता है, दोस्ती अक्सर परिवार के बाद दूसरे स्थान पर आती है – फिर भी दोस्ती जो ख़ुशी और समर्थन प्रदान करती है, वह भी उतना ही ज़रूरी हो सकता है। इसने कुछ लोगों को इंटरनेट का इस्तेमाल करना, सोच-समझकर फैसले लेना, पैसे बचाना, अकेले सफ़र करना सिखाया है, और सबसे बढ़कर, उन्हें स्वयं होने का अवसर दिया है।
जैसा कि कहा गया है, सत्ता की संरचनाएं, बाक़ी जगहों की तरह, दोस्ती के भीतर भी संचालित होती हैं। दोस्ती में जेंडर को एकमात्र परिवर्तनशील तत्व मानना अधूरा है। जैसा कि सारा अहमद6 हमें याद दिलाती हैं, कुछ सामाजिक कारक हैं जो यह तय करते हैं कि कौन गप्पे मारते हैं, कौन बोलते हैं, और किन्हें सुना जाता है। मैं यह मानना चाहूंगी कि दोस्ती एक ऐसा स्थान है जहां सत्ता का वितरण अपेक्षाकृत समान होता है, लेकिन जब तक बड़ी सामाजिक संरचनाएं मौजूद हैं, तब तक वे कभी भी सममित नहीं हो सकती।
विकराल संरचनाएं – वे किसी को नहीं छोड़ती।
इन भयावह शक्तियों के सामने भी, महिलाओं द्वारा बनाई गई कोमल, विनोदी और कभी-कभी विद्रोही मित्रता, बढ़ती ही रहती है।
References:
- कुदुम्बश्री केरल का गरीबी उन्मूलन और महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम आस-पड़ोस के समूहों के एक विशाल नेटवर्क के माध्यम से संचालित होता है और महिलाओं के बीच सूक्ष्म-वित्त और उद्यमशीलता गतिविधियों को सुगम बनाता है। स्वयं सहायता समूह या सेल्फ हेल्प ग्रुप। यहाँ, कुदुम्बश्री। ↩
- स्वयं सहायता समूह या सेल्फ हेल्प ग्रुप। यहाँ, कुदुम्बश्री। ↩
- Rich, A. (1980). Compulsory Heterosexuality and Lesbian Existence. Signs, 5(4,), 631–660↩
- Green, E. (1998). ‘Women Doing Friendship’: an analysis of women’s leisure as a site of identity construction, empowerment and resistance. Leisure Studies, 17(3), 171–185. https://doi.org/10.1080/026143698375114 ↩
- Gilligan, C. (1982). In a different voice: Psychological theory and women’s development (pp. xxx, 184). Harvard University Press. ↩
- Ahmed, S. (2011). Analysing women’s talk and gossip between two female friends. 3. ↩
प्रांजलि शर्मा द्वारा अनुवादित। प्रांजलि एक अंतःविषय नारीवादी शोधकर्ता हैं, जिन्हें सामुदायिक वकालत, आउटरीच, जेंडर दृष्टिकोण, शिक्षा और विकास में अनुभव है। उनके शोध और अमल के क्षेत्रों में बच्चों और किशोरों के जेंडर और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार शामिल हैं और वह एक सामुदायिक पुस्तकालय स्थापित करना चाहती हैं जो समान विषयों पर बच्चों की किताबें उपलब्ध कराएगा।
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