Scroll Top

यौनिकता शिक्षण कार्यक्रम को अधिक समावेशी बनाने के लिए कुछ सुझाव

मेरे एक 22 वर्षीय क्लाइंट, जो आटिज्म के साथ रहते हैं और जिनकी बौद्धिक कार्य क्षमता सीमित है, हाल ही में पुलिस के चक्कर में पड़ गए क्योंकि वह दुसरे नवयुवकों को बार-बार फ़ोन कर रहे थे और कुछ ‘अनुचित सवाल’ कर रहे थे। थेरेपी के दौरान कुछ समय साथ काम करने के बाद ही वे यह खुलासा कर पाए कि वे ऐसा क्यों कर रहे थे और तब कहीं जाकर हमें उनके यौनिक रुझानों के बारे में जानकारी मिली। औटिस्टिक व्यक्ति के नज़रिए से और सिमित बौद्धिक क्षमता वाले व्यक्ति के रूप में जो प्रश्न वह दूसरों से पूछ रहे थे, वे केवल अपनी जिज्ञासा को शांत करने और जानकारी बढ़ाने के लिए हो सकते थे लेकिन दुसरे लोगों की नज़र में उनके यह प्रश्न औरों की व्यक्तिगत सीमा लांघने जैसे थे। इस अंतर को समझ पाने की प्रक्रिया बहुत ही टेढ़ी और असमंजस भरी थी। इस नौजवान को ज़रुरत थी किसी ऐसे व्यक्ति की जो उन्हें, उन्हीं के तरीके और बौद्धिक स्तर पर रहते हुए यह अंतर समझने में मदद करे।

हमारे देश में बच्चों और किशोरों को यौनिकता के बारे में शिक्षित करने का विषय माता-पिता और शिक्षकों, दोनों के लिए चिंता में डालने वाला है। हम में से कई लोगों को अपने बचपन और किशोरावस्था का वह समय अब भी याद होगा जब जीव विज्ञान के टीचर या तो ‘प्रजनन तंत्र’ वाले अध्याय के बारे में पढ़ाते ही नहीं थे या फिर उसके बारे में केवल थोड़ी-बहुत जानकारी ही देकर समाप्त कर देते थे। या कैसे माँ दबी हुई आवाज़ में ‘मासिक धर्म’ के बारे में बताया करती थीं कि कहीं पिताजी इस बातचीत को सुन न लें। इसी तरह स्कूल में जब सेनेटरी नैपकिन बांटे गए थे तो सभी को कैसे इस बात को छुपाना पड़ा था या फिर घर में कोई फिल्म देखते हुए जब कोई ‘लव सीन’ आता तो कैसी अजीब सी भावनाएँ और संवेदनाएँ होती थीं और हम असहज और शर्मिंदा हो कमरे से बाहर भागना चाहते थे। लेकिन वर्षों तक इस अकुलाहट, असमंजस और अपने सवालों के जवाब ढूँढने की कोशिश करने में कुछ विश्वासपात्र दोस्तों और अपने से बड़ों की मदद से आखिरकार हम यौनिकता के इस विषय के बारे में जानकारी ले पाए और भौंचक्के कर देने वाले इस विषय को कुछ हद तक समझ पाए।

मैंने सीमित बौद्धिक क्षमता और विकासात्मक विकलांगता के साथ रह रहे बच्चों और युवाओं के साथ वर्षों तक काम किया है और मेरे मन में हमेशा ही यह प्रश्न उठता रहा है कि यौनिकता का यह विषय इन बच्चों को कैसे समझ में आता होगा क्योंकि इसे समझने के लिए जिस बौद्धिक, सामाजिक और भावनात्मक क्षमता की ज़रुरत होती है वह इन बच्चों में या तो होती ही नहीं या फिर उनका इसे समझने और अनुभव करने का तरीका अलग होता है। लेकिन साथ ही साथ व्यक्तिगत रूप से और एक-दुसरे के बारे में यौनिकता या यौन जानकारी पाने की मौलिक उत्कंठा तो इनमें भी विद्यमान रहती है। इस जटिल विषय की समझ और जानकारी के इस अंतर को हम किस तरह ख़त्म कर सकते हैं?

  • मिथकों को नष्ट करें – विकलांगता क साथ रहने वाले बच्चों और युवाओं को यौनिकता के बारे में शिक्षा देने के कार्यक्रमों में शामिल ना किए जाने का मुख्य कारण यही होता है कि हम उन्हें या तो ‘सेक्स-विहीन’ मानते हैं और इस कारण से यह समझ लेते हैं कि इन्हें यह जानकारी देने की कोई ज़रुरत नहीं है। या फिर इसके ठीक विपरीत अक्सर इन्हें ‘यौन रूप से आवेगी’ और ‘नियंत्रण से बाहर’ मान लिया जाता है और समझा जाता है कि ऐसे लोगों को ये जानकारी नहीं दी जानी चाहिए। दोनों ही विचार वास्तविकता से दूर हैं और सही तरीके से जानकारी और अवसर दिए जाने में बाधक हैं क्योंकि हर युवा व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है कि उन्हें अपने विकास की प्रक्रिया के बारे में सही और सकारात्मक जानकारी मिले, भले ही उनका बौद्धिक स्तर कुछ भी क्यों न हो। 
  • खुद से जानकारी पाने और समझने के अवसर देना – यौनिकता के विषय पर औपचारिक शिक्षा मिलने के अलावा, अधिकाँश नवयुवा लोग अपने विकास के वर्षों के दौरान यौनिकता के बारे में कई तरीकों से जानकारी हासिल करते हैं। इनमें किताबें और पत्रिकाओं को पढ़ कर मिली जानकारी, इन्टरनेट से मिली जानकारी, टेलीविज़न पर कंडोम और सेनेटरी नैपकिन के विज्ञापन देखने से मिली जानकारी और सबसे महत्वपूर्ण, अपने दोस्तों और हमउम्र लोगों से बातचीत द्वारा मिली जानकारी शामिल है। इन सभी जानकारियों के आधार पर वे अपनी ज़रुरत के लिए पूरी जानकारी तैयार कर लेते हैं। जानकारी एकत्रित करने और उसका विश्लेषण करने की यह प्रक्रिया हममें से अधिकाँश लोगों में प्राकृतिक रूप से अपने आप या आटोमेटिक होती है। लेकिन सीमित बौद्धिक क्षमता वाले या विकासात्मक विकलांगता के साथ रह रहे बच्चों में यह प्रक्रिया पूरी तरह से विकसित नहीं होती, इसीलिए ज़रूरी है कि उनके लाभ के लिए इस तरह के अवसर उन्हें अलग से प्रदान किये जाएँ। 
  • सुरक्षा को महत्व देना – आंकड़ों से पता चलता है कि बौद्धिक एवं विकासात्मक विकलांगता के साथ रह रहे बच्चों का यौन उत्पीड़न सबसे ज़्यादा होता है। वे अपनी साफ़-सफाई, नहाने-धोने और व्यक्तिगत स्वच्छता जैसे देखभाल ज़रूरतों के लिए कई बार एक से ज़्यादा व्यस्क लोगों पर निर्भर होते हैं, उनके हमउम्र दुसरे लोग प्राय- उनसे दूर होते हैं इसलिए जीवन में कई सामाजिक और सार्वजनिक परिवेशों को उन्हें खुद ही समझना होता है, उन्हें व्यक्तिगत और सामाजिक दायरों और अनकही बातों की बहुत कम समझ होती है और संभव है कि वे अपने अनुभवों को खुल कर प्रभावी और सही तरीके से लोगों को न बता पातें हों। इन सभी कारणों के चलते उनके साथ यौन उत्पीड़न और शोषण होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि हम उन्हें यह बताएं कि वे खुद को किस तरह से सुरक्षित रख सकते हैं।
  • कब और क्या सिखाने का निर्णय लेना – यौनिकता के विकास की प्रक्रिया सामाजिक और भावनात्मक विकास के कई पहलुओं पर निर्भर होती है इसलिए यौनिकता शिक्षा के पाठ्यक्रम में किसी भी वर्ग विशेष समूह के बच्चों को कौन सी जानकारी दी जानी चाहिए, यह बहुत महत्वपूर्ण है। अगर आप बौद्धिक एवं विकासात्मक विकलांगता के साथ रह रहे युवाओं के साथ काम कर रहे हों तो न केवल ‘क्या’ सिखाना है बल्कि ‘कैसे’ सिखाना है भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इसके लिए कही और अनकही बातों को समझने के बारे में बताना, जानकारी को अधिक सटीक बनाकर प्रस्तुत करना (बजाय इसके कि आप मान लें कि युवा लोग बात की नजाकत को समझ लेंगे या खुद ही अच्छे/बुरे स्पर्श को समझने लगेंगे), उन्हें व्यक्तिगत और सामाजिक व्यवहार की सीमाओं और मर्यादाओं की जानकारी देना और हर एक के लिए उदहारण प्रस्तुत करना आदि कुछ तरीके हैं जिससे आप यह कर सकते हैं। मल्टीमीडिया, चित्रों, नियम-कायदे के हैण्डआउट, रोले-प्ले और अलग-अलग परिस्थितियों की कल्पना करने के माध्यम से भी आप उन्हें वास्तविक जीवन की परिस्थितियों के बारे में अधिक बेहतर रूप से जानकारी दे सकते हैं। 
  • अन्वेषण या नयी बातें जानने के लिए सुरक्षित अवसर देना – विषय के बारे में उचित और सटीक जानकारी देना जहाँ महत्वपूर्ण है वहीं हमें युवाओं को अपनी यौनिकता के अनुभव एवं अभिव्यक्ति के स्वस्थ्य एवं सुरक्षित तरीके खोजने में मदद करने के बारे में भी सोचना चाहिए। उनकी निजिता को भंग किए बिना एवं अनुचित हुए बिना, उनसे इस बारे में बातचीत कर यह बताना आवश्यक है कि जब उनके मन में यौन भाव आएँ तो वे क्या करें। इसके लिए उन्हें एकांत में अपने शरीर को जानने या हस्तमैथुन करने की सलाह दी जा सकती है, उन्हें कहा जा सकता है कि वे एकांत में विडियो देख सकते है या कोई पत्रिका पढ़ सकते हैं, लेकिन साथ ही साथ यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि इन विडियो या पत्रिकाओं की विषय-वस्तु उनकी उम्र और मानसिक क्षमता के लिए उपयुक्त हो। नवयुवाओं को यह सलाह भी दी जा सकती है कि वे सामाजिक समूह का हिस्सा बनें और सुरक्षित एवं सुनियोजित तरीके से दुसरे युवा लोगों के साथ मेलजोल करें।

अगर आप इस बारे में सोचें तो पायेंगे कि विकलांगता और यौनिकता, दोनों ही मानवीय अनुभव के अभिन्न अंग हैं और किसी भी एक के लिए दुसरे को नज़रंदाज़ कर देना न केवल अनुचित होगा बल्कि अव्यवहारिक भी होगा। विकलांगता के साथ रह रहे युवा लोगों को सही जानकारी और विकल्प देकर हम उन्हें उत्तरदायित्व उठाने और व्यस्क जीवन के मानकों के अधिक करीब ला पायेंगे और इससे समुदाय में उनकी भागीदारी अधिक अर्थपूर्ण होगी। यह सभी जानकारी उन्हें उनके स्तर और विकास की गति के आधार पर दी जानी चाहिए लेकिन साथ ही साथ यह सोचते हुए कि समाज में उनकी भागीदारी पूर्ण और बराबर आधार पर होगी।  

चित्र स्रोत- Parentedge.in / स्टॉक चित्र

सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित

To read this article in English, please click here.

Leave a comment