Feminism
“Historically, feminism and fashion have been pitted against one another,” writes Manjima Bhattacharjya in her book, Mannequin. It’s a dilemma the fashion industry has struggled with for decades – being perceived as flippant, or existing in a vacuum”
Tales delicately yet powerfully draws out the conflict between sex workers and feminism in India,at a time when a lot of feminists thought of prostitution through a SWERF lens[1].
सेक्शूऐलिटी और जलवायु परिवर्तन के कारण जलवायु आपदाओं के बीच का रिश्ता भले ही सीधा न दिखाई दे, लेकिन यह बेहद गहरा और महत्वपूर्ण है।
हम भाषा पर निर्भर करते हैं। “हाँ” का मतलब इजाज़त देना, और “ना” का मतलब मुकरना। आसान और सरल शब्दों में हमें बताया जाए तो सहमति का मतलब इन्हीं दो अल्फ़ाज़ों से आता है। आसान है, है न?
सबसे ख़ूबसूरत बात यह है कि समावेशी दोस्ती समाज में भी बदलाव लाती है। जब दोस्त एक-दूसरे को बिना भेदभाव अपनाते हैं, तो यह उदाहरण बनता है और धीरे-धीरे एक ऐसी संस्कृति का निर्माण होता है जहाँ विविधता को सम्मान और स्वीकार्यता मिलती है।
उर्दू शायरी की एक पूरी शैली है, ‘रेख़्ती’, जो औरतों के नज़रिये से लिखी गई है और जिसमें औरतों की ज़िंदगी और भावनाओं की बात होती है। ये ‘रेख़्ता’ का उल्टा है, जो कि मर्द के नज़रिये से लिखा गया साहित्य है।
The most satisfying spiritual and sexual experiences I’ve had were not in my twenties, thirties or even forties. They have been in my 50’s. The most insightful spiritual insights, and the most orgasmic orgasms have both arrived in middle age.
पितृसत्ता ने मर्दानगी को विषमलैंगिकता और यौनिक वर्चस्व से जोड़ा है, जिससे पुरुषों पर ‘सच्चा मर्द’ बनने का दबाव बढ़ता है। यह न केवल समलैंगिक और द्विलैंगिक पुरुषों को हाशिए पर डालता है, बल्कि विषमलैंगिक पुरुषों के लिए भी यौनिक अभिव्यक्ति को सीमित करता है।
क्या आपने अपनी माँ के साथ ऐसी बातें की हैं, उनके प्यार, चाहत, इच्छा के बारे में कभी बात हुई है? कैसा था आपका अनुभव? मुझे लगता है कि परंपरा, संस्कृति, इज़्ज़त ने मेरे अंदर एक डर बैठा दिया है और मैं अपनी इच्छा के बारे में बात करने के लिए शब्द और जगह दोनों ही ढूंढती रहती हूँ।
वह एक ऐसे परिवार में बड़ी हुई थीं जहाँ बनने संवरनें की सराहना की जाती थी, इसलिए कपड़ों के प्रति उनकी चाहत को कभी भी विलासिता की तरह नहीं देखा गया। उनकी माँ की शख्शियत की एक विशिष्ट पहचान, उनकी बड़ी सी बिंदी और सूती साड़ी हमेशा अपनी जगह पर रहती थी, चाहे दिन का कोई भी समय हो, चाहे वो खाना बना रहीं हों, धूप या बारिश में बाहर गई हों, सो रहीं हों या बस अभी ही जागी हों, हंस रहीं हों, या रो रहीं हों। उनकी और उनकी बहन के लिए, उनकी माँ की फैशन को लेकर एक ही सलाह थी, “हमेशा ऐसे तैयार होकर रहो जैसे आप बाहर जा रहे हों, भले ही आप सारा दिन घर पर ही हों।” अपनी माँ की सलाह के बावजूद, वह घर पर ‘गुदड़ी के लाल’ की तरह और बाहर जाते वक़्त ‘सिंडरेला’ की तर्ज़ पर चलने वाली बनी।
नहलाए जाने और नए कपड़े मिलने पर बुला बहुत खुश नहीं होती थीं। खाना वह ख़ुशी-ख़ुशी ले लेती थीं –…
कुछ साल पहले ही मुझे एहसास हुआ कि जब भी मैं भविष्य के बारे में सोचती हूँ, तो मेरे मन में हमेशा अपनी सबसे करीबी महिला मित्रों की तस्वीर उभरती है। मेरे हर फ़ैसले पर सबसे ज़्यादा असर उन्हीं का पड़ता है…
दो कविताएं – हवेली आधुनिकता के आवरण में क्षयग्रस्त पारंपरिक पुरुषत्व को दर्शाती है, जबकि चारपाई कठोर और लचीली अभिव्यक्तियों के बीच विरोधाभास प्रस्तुत करती है, जहां जो जिस चारपाई पर बैठते हैं, उसके गुणों को अपनाते हैं, जो भिन्न-भिन्न पुरुषवादी पहचानों का प्रतीक है।
हमें नहीं बनना महान
हमें इंसान ही रहने दो।