Scroll Top

मर्दानगी को पोषित करती मान्यताएं

Selection of reproductive health supplies: pills, diaphragm, condoms, vaginal ring, IUD, implant, dmpa, birth-control pills, emergency contraception pill

किशोरावस्था के दौरान जब हम अपनी यौनिकता से रूबरू हो रहे होते हैं, तब सामाजिक तौर पर हमे बताया गया जेंडर ही निर्धारित करता है कि हम अपनी पहचान कैसे बना रहे हैं जो ज़्यादातर मामलों में हमारी पूरी ज़िन्दगी को प्रभावित करती है। हमारे पूरे शरीर सहित यौनांगो व जनांगों से जुड़े गौरव और भय एक साथ पलते हैं क्यूंकि पुरुष लिंग के साइज़ और आकर से जुड़े मिथक इसी उम्र से हावी होने शुरू हो जाते हैं और फिर अख़बारों के विज्ञापन एक किशोर मन को भ्रमित और भयभीत करते हैं। साथ ही मीडिया और समाज महिलाओं और पुरुषों के बारे में जो छवि बनाता है वो सब हमारी मर्दानगी से जुडी धारणाओं को अपनाने और टेस्ट करने के लिए रोज़ चुनौती भी देते हैं।

पियर्स/ दोस्तों के साथ हस्थमैथुन से जुडी यौनिक क्रियाएं और अनुभव पर बातचीत हमें यह भी सिखाते है कि यह शारीरिक आनंद का अस्थाई माध्यम है और असली आनंद भविष्य में आपकी महिला साथी से ही मिलेगा और वही एकमात्र स्थाई माध्यम और संसाधन होगा। और हम उसे एक साथी की बजाए यौन क्रिया और यौन-सुख का एकमात्र साधन और संपत्ति मानने लगते है। जैसे- जैसे लड़के बड़े होते हैं वो इस स्थाई साधन की खोज और इंतज़ार में जीते हैं और उनकी यह फैंटेसी उन्हें एकाधिकार और विशेषाधिकार की भावना से भर देती है। कंसेंट और सहमति जैसे शब्द ना तो हमें सीखने और सुनने मिलते हैं। मेरे लिए या शायद किसी भी पुरुष के लिए यह अंतिम सत्य होता है जो यौनिकता और मर्दानगी को निर्धारित करने वाली एकमात्र सीख भी – हस्तमैथुन अस्थाई और महिला साथी (गर्ल फ्रैंड या पत्नी) के साथ सेक्स एक सामाजिक लाइसेंस और पुरुष का एक विशेषाधिकार। यही सोच कंसेंट को ग़ैर- ज़रूरी और स्व-अर्जित सुविधा बना देती है जो संबंधो में पुरुषों की तरफ़ से इसे गौण बना देती है और महिलाओं व लड़कियों का पालन-पोषण भी पति नामक स्वामी को यौन-सुख देने के पत्नी धर्म के साथ होता है जिसमे उनका अपना सुख और इच्छा ग़ैर-ज़रूरी और एक टैबू माना जाता है।

कहते हैं कि हमारा माहौल ही हमें बनाता है और बदलता है। इसी बदली सोच ने मुझे परिवार की बाकि ज़िम्मेदारियों के साथ- साथ गर्भ-निरोधक और परिवार नियोजन से जुडी ज़िम्मेदारियों को लेने की समझ भी दी।

बचपन में नसबंदी के बारे में दो बातें अक्सर सुनने को मिलती थी।पहली बात, कि इमरजेंसी के दौरान ज़बरदस्ती लोगो की नसबंदी कराई गयी और दूसरी बात जो सुनाई पड़ती थी कि नसबंदी करने पर 1100 रूपये इंसेंटिव और रेडियो सेट मिलता है।

जवानी के दौरान दोस्तों से, हॉस्पिटल के सामने से गुज़रते हुए, नसबंदी के पोस्टर पढ़कर एक दूसरे की चुटकी लेना भी मुझे याद है – “चलो रेडियों लेकर आते हैं”

खैर, इमरजेंसी की ज़बरदस्ती और महिला नसबंदी की बजाए पुरुषो को नसबंदी करने पर अधिक प्रोत्साहन राशि मिलना इस बात का सबूत है कि हमारे समाज में पुरुष नसबंदी को गैर-ज़रूरी समझने के साथ-साथ, नामर्द होने से भी जोड़ा जाता है और इसका अंदाज़ा आप इमरजेंसी के बाद नसबंदी को लेकर एक लोकप्रिय नेता की कविता “आओ मर्दों- नामर्द बने” से लगा सकते हो |

परिवार नियोजन में पुरुषों की भूमिका नदारद है, परिवार नियोजन के पुरुषों के लिए बने तरिके कम ही हैं। सुना है कि पुरुषों के गंजेपन को दूर करने की रिसर्च के मुकाबले पुरुषों के लिए गर्भनिरोधक गोली बनाने को लेकर हो रही रिसर्च कम और धीमी है। सरकार ने औपचारिकता के तौर पर भले कंडोम के अलावा नसबंदी को लेकर खूब प्रचार और प्रसार किया हो पर एक समाज के तौर पर इसे कभी नहीं अपनाया गया।

मेरी शादी को 10 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, दो बेटियो के बाप होने के नाते, हमेशा मुझे, बल्कि मुझे और मेरी पत्नी को लड़का पैदा करने की सिफ़ारिशें आती रहती है। जिसका ज्यादा दवाब मेरी पत्नी पर ही रहा, पर हम दोनों लगातार इस से विवेकपूर्ण तरिके से निपटते रहे। मेरी दूसरी बेटी के बाद ही मेरे मन में नसबंदी करने की इच्छा आती थी, पर इसको लेकर जितनी भी धारणाएं हैं, उसकी वजह से मुझे अपने पार्टनर का भी पूरी तरह से सहयोग नहीं मिला, हालांकि मैं इस पर बीच-बीच में प्रयास करता रहा। इसे अपने अधिकारों की अनदेखी या मेरी लापरवाही कहना ही सही रहेगा क्यूंकि मेरे शरीर पर मेरा ही अधिकार है – यह जो नारीवादी स्लोगन है सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं है सबके लिए है (हालाँकि उस परिपेक्ष्य में हमेशा उपयोग हुआ है जिसकी शायद ज़रुरत भी थी क्यूंकि महिलाओं के शरीर पर मालिकाना हक़ हमारे तथाकथित समाज में पुरुषों का रहा है )

एक दिन हमारी ज़िंदगी में, अनचाहे गर्भधारण ने दस्तक दी, जिस से निपटना हमारी ज़िंदगी का सबसे दर्दनाक अनुभव था। इस घटना के बाद मुझे मेरे साथी के सपोर्ट से नसबंदी की योजना फाइनल हो गयी। कुछ दोस्तों ने भी इस पर बात करके हौसला बढ़ाया, लेकिन नसबंदी को नामर्दी से जोड़ने वाले समाज में ये जंग लड़ने जैसा ही था। ख़ैर, पिछले कई सालों के मुक़ाबले, उस रात के दुःख और उसकी ज़िम्मेदारी लेते हुए मैं अब पूरी तरह से तैयार था।

मैं नज़दीक की डिस्पेंसरी में पता करने गया तो पता चला “एम्स” (AIIMS) में तीन दिनों का कैंप है।मैं रजिस्ट्रेशन करा के अपने एरिया की आशा वर्कर के साथ अगले ही दिन एम्स पहुँच गया। रस्ते में आशा वर्कर से बात करके पता चला कि मैं उनके कॅरियर का तीसरा केस हूँ, और अलग भी हूँ कि मैंने ख़ुद सामने से आकर इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराया।

एम्स के गेट पर दाख़िल होते ही मुझे हंसी आ रही थी , भारत के सबसे बड़े हॉस्पिटल में, मैं सबसे छोटा और ज़रूरी ऑपरेशन कराने जा रहा हूँ, फिर भी मुझे उम्मीद थी कि कैंप में लाइन में लगना होगा, कितना टाइम लगेगा, पर वहां ऐसा कुछ भी नहीं था

3 दिवसीय राष्ट्रीय नसबंदी कैंप में इतने बड़े हॉस्पिटल में मैं अकेला था, अपने आपको बहादुर भी समझ रहा था और खुश भी था कि लाइन में नहीं लगना पड़ा। सर्जन के आने से पहले वहां आस पास के वार्ड से पुरुषों को मोटिवेट करने की कोशिश हॉस्पिटल का स्टाफ कर रहा था। दो पुरुष आये जो प्रोत्साहन राशि ऑपरेशन से पहले मांग रहे थे, थोड़ी देर बाद वो वापिस जा चुके थे। मैंने लगभग 50 -60 मिनट इंतज़ार किया।बीच में सर्जन आये मुझे कुछ जानकारी देकर चले गए। नसबंदी से जुडी पाठ्य सामग्री मैंने वहां समय का सदुपयोग करते हुए पढ़ी।

डॉक्टर ने मेरी काउन्सलिंग की, कि बिना दर्द का 30 मिनट का प्रोसेस है और 30 मिनट ऑब्ज़र्वेशन के बाद आप घर जा सकते हो। फिर दोपहर बाद मैं घर आ गया। एक दिन की थोड़ी बहुत मूवमेंट में दिक्कत के अलावा कोई परेशानी नहीं रही।

हालाँकि, मैंने अपनी एक ज़िम्मेदारी पूरी की (जिसके लिए मुझे भी फैसला लेने में 3-4 साल लगे) जो कि किसी गौरव का विषय नहीं है, पर जब हम ख़ुद और आस पास के संघर्ष, टैब्बूस, पितृसत्ता, मर्दानगी के मानकों से हट कर कुछ नई पहल करते हैं तो अपने लिए ख़ुशी होती है। इस फैसले के पीछे मेरे पिछले लगभग एक दशक का काम भी रहा है, ब्रेकथ्रू के साथ जेंडर आधारित हिंसा से जुडी मान्यताओं को बदलने के काम से जुड़ने की यात्रा में यह फैसला सेल्फ रिफ्लेक्शन से उपजी एक ज़िम्मेदारी भी है।

Cover image by Reproductive Health Supplies Coalition on Unsplash