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गाँव से शहर – ‘नौकरानियाँ’ (हाउसमेड) और उनकी यौन इच्छाएँ

18 वर्षीय अनीता (बदला हुआ नाम), जिन्हें मेरी चचेरी बहन ने घर के काम (हाउस हेल्प) के लिए रखा है, कहती हैं, “मैं झांसी, उत्तर प्रदेश के पास के एक गाँव डोगरी से हूँ। मेरा परिवार बड़ा है। हम तीन बहनें हैं, और मैं बीच की हूँ। मैंने कक्षा छह तक पढ़ाई की है, और मेरी बहन की ही तरह, मुझे भी काम करने और परिवार में योगदान देने के लिए स्कूल छोड़ने को कहा गया। मेरी चाची मुझे दिल्ली ले आईं और तब से मैं घरों में ‘पूरे समय की नौकरानी’ के रूप में काम कर रही हूँ, और मुझे उनके साथ रहना भी पड़ता है।”

हर साल, भारत की 37% बेहतर जीवन की तलाश में देश के भीतर विभिन्न शहरों की ओर पलायन करती है, और प्रवासियों की काफ़ी बड़ी संख्या (कुछ स्वैच्छिक रूप से, और कुछ ज़बरदस्ती) महानगरों में पूर्णकालिक घरेलू मदद (जिन्हें घर के काम के लिए रखा जाता है) के रूप में काम कर रहे हैं। पिछले कुछ दशकों में भारत में होम सर्विस स्टाफ़ (यानि घरेलू कामकाज सेवाओं के उद्योग) में तेजी देखी गई है। अन्य सेवाओं के साथ, घरेलू कामकाज में मदद की सेवाओं को बड़े करीने से तैयार और पेशेवर तरीके से सुव्यवस्थित किया जाता है। आज, शहरी भारत के अधिकांश तथाकथित उच्च-वर्ग और कई उच्च-मध्यम-वर्गीय परिवारों के पास एक प्रवासी घरेलू मददगार होते हैं, जो पूरे समय उनके साथ रहते और काम करते हैं। हालाँकि, कुछ चीजें नहीं बदली हैं जिसमें इन श्रमिकों, विशेषकर महिलाओं, के लिए नियोक्ताओं का दृष्टिकोण शामिल है।

जैसे ही घर के काम के लिए राखी महिला काम करना शुरू करती हैं, उनकी ज़िंदगी उस घर और उसके लोगों के इर्द-गिर्द घूमने लगती है। उनके नियोक्ता उनके जीवन पर खतरनाक स्तर तक नियंत्रण रख सकते हैं (इसका एक कारण सामान्य जागरूकता की कमी और घरेलू कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए अपर्याप्त कानून है)। नियोक्ता अपने कर्मचारी के जीवन के बारे में सब कुछ तय करते हैं, जिसमें कर्मचारी की बुनियादी ज़रूरतें क्या हैं और उन्हें एक लक्ज़री या विलासिता के रूप में किसे प्राथमिकता देनी चाहिए, ये भी शामिल है। नियोक्ताओं द्वारा उनकी गतिशीलता/ कहीं आने-जाने की निगरानी भी की जाती है, और वह केवल वहीं जा सकती हैं जहाँ उन्हें ‘जाना चाहिए’, और जब जाना चाहिए।

इस प्रकार, जानबूझकर या अनजाने में, काम देने वाले परिवार काम के लिए रखी महिला की यौनिकता को नियंत्रित करते हैं। काम करने वाली महिला/ लड़की उम्र में जितनी छोटी हों, उन्हें नियंत्रण में रखना उतना ही आसान होता है। अपने परिवारों से दूर, इन महिलाओं को किसी भी प्रकार की सहायता का कोई सहारा नहीं है। काम देने वाले परिवार की मंजूरी के बाहर किसी के साथ किसी भी तरह के संबंध रखने की संभावना से बचने के लिए, ‘नौकरानी’ को अक्सर मोबाइल फोन रखने की भी अनुमति नहीं होती है

घर में काम के लिए रखी महिला की ज़रूरतों और इच्छाओं को अनदेखा करते देखते हुए, मुझे हमेशा इस बता का ख्याल आता था कि वे कैसा महसूस करती हैं। घरेलू काम के लिए रखी महिला की ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करने में एक सत्ता और नियंत्रण दिखाई देता है जो काम देने वाले परिवार इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि काम करने वाली महिला उनके ‘अधीन’ हैं। जब मैंने अपनी ताई जी की पूर्णकालिक प्रवासी कामगार, अनीता, से पूछा कि क्या उन्हें अपने माता-पिता या परिवार के सदस्यों से बात करने के लिए फोन रखने की आवश्यकता महसूस होती है, तो उनका कहना था कि वह जानती हैं कि उन्हें फोन नहीं मिलेगा, यही वजह है कि उन्होंने कभी फोन रखने की ज़रूरत को व्यक्त करने की कोशिश नहीं की। और शायद ही कभी उन्हें अपने गाँव में अपने परिवार के सदस्यों के साथ बात करने का मौका मिलता है या वे यह इच्छा व्यक्त करती हैं। अब उन्हें इसकी “आदत हो गई है”। धीरे-धीरे, काम के लिए रखी महिला को यह समझ में आना शुरू हो जाता है कि न केवल उन्हें रोजगार देने वाले परिवार द्वारा उनकी ज़रूरतों को पूरा करने की उम्मीद करने की अनुमति नहीं है, बल्कि उन्हें खुद के लिए इन ज़रूरतों को महसूस करने और स्पष्ट रूप से कहने का भी कोई मतलब नहीं है।

यह केवल गतिशीलता और संचार नहीं है जिस पर रोक लगाई जाती है; सच तो यह है कि काम के लिए रखी महिला को, उस घर जिसमें वे काम करती और रहती हैं, उसके अंदर निजता (प्राइवेसी) और सत्ता (एजेंसी) बहुत कम होती है, उन्हें अपनी यौनिकता व्यक्त करने का लगभग कोई मौका नहीं होता है। आसपास थोड़ा पूछने पर पता चला कि उनमें से कई को प्रेम या यौन संबंध बनाने के लिए, या यदि वे खुद को आनंदित करते हुए देखी जाती हैं, तो निकाल दिया जाता है।

कुछ दिन पहले, मेरी चचेरी बहन ने अनीता को सोने के समय हस्तमैथुन करते हुए देखा। और इस बारे में चर्चा करने के दौरान, मैंने महसूस किया कि, इसका पता चलने के बाद भी, कैसे कोई भी अनीता के साथ आनंद की अभिपुष्टि (प्लेज़र अफ़र्मिंग) के नज़रिए से चर्चा करने के तरीके खोजने के बारे में बात नहीं करना चाहता था। इसके बजाय, चर्चा ‘अब क्या करें’ इस पर अधिक केंद्रित थी। उन महिलाओं के बारे में उनके परिवारों को बताने से लेकर इस मुद्दे की रिपोर्ट काम दिलाने वाली एजेंसियों को करने तक के सभी विकल्पों पर विचार किया गया, हर मुद्दे पर विचार हुआ सिवाय एक के, कि घर काम के लिए रखी महिला के स्वास्थ्य और खुशहाली को सुनिश्चित करने के लिए उनकी ज़रूरतों को कैसे पूरा किया जाए। जो लोग किसी भी कारण से, किसी की देखभाल के तहत (हालाँकि घर में काम करने वाली महिला ही परिवार की सारी देखभाल का काम करती हैं, विडंबना यह है कि, उन्हें ‘उनकी देखभाल के तहत’ के रूप में देखा जाता है) होते हैं, उनकी यौन इच्छाओं या ज़रूरतों को समझने की कोशिश करना अधिकांश समाजों में अभी भी एक चुनौती है। जब तक यौनिकता के मुद्दों को दबाया जाता रहेगा, तब तक इन ज़रूरतों को स्वीकार करने और दृढ़ता से कहने का सामान्य अभाव रहेगा।

जब मैं अनीता के साथ बातचीत कर रही थी, तो एक प्रमुख बात सामने आई, जो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं थी; उन्होंने कहा कि (जब वह हस्तमैथुन करती है) वे यह नहीं जानती कि वे क्या करती हैं, लेकिन वह ऐसा इसलिए करती हैं क्योंकि इससे उन्हें आनंद मिलता है। मुझे एकदम समझ में आया कि यौनिकता के इर्द-गिर्द बातचीत की कमी हमें आनंद के लिए, सचेत रूप से या अनजाने में हमारे द्वारा की जाने वाली छोटी-छोटी बातों से कितना अनजान बना देती है। मुझे वास्तव में आश्चर्य नहीं होना चाहिए था कि घर से दूर, पैसे की ज़रूरत में, यौनिकता की अवधारणाओं की थोड़ी समझ और यौन इच्छाओं के साथ, अनीता ने, भी,  इस बारे में बहुत कुछ नहीं सोचा था कि वह खुद को कैसे और क्यों आनंदित कर रही थी।

अनीता और मैंने उनके गाँव में शादी, जाति और यौनिकता के मुद्दों पर भी बात की। उन्होंने बताया कि उनके गाँव में विवाह में दहेज प्रथा का पालन होता है और लड़की की शादी किससे हो रही है इस विषय पर लड़की की कोई राए नहीं ली जाती है। यदि कोई लड़की भाग जाती है, तो सज़ा के तौर पर उनके परिवार को पंचायत (दक्षिण एशिया के कई ग्रामीण हिस्सों में स्थानीय शासी निकाय) को पैसे देने पड़ते हैं और गाय दान करनी पड़ती है। इस तरह से विभिन्न गाँवों से आने वाली इन युवतियों की यौनिकता और सत्ता (एजेंसी) पर नियंत्रण एक प्रक्रिया है जो उनके घर के समुदाय से लेकर उनके नियोक्ताओं तक चलती रहती है। इसके अलावा, उनके मुद्दों और अधिकारों की न के बराबर या थोड़ी मान्यता के साथ एक अनौपचारिक श्रम बल से संबंधित होने के कारण घरेलू काम करने वाले, अपने नियोक्ता की सर्व-शक्तिशाली परिवार / समुदाय के बुजुर्गों के रूप में व्यवहार करने की उम्मीद के आगे झुक जाते हैं।

सर्व-शक्तिशाली नियोक्ता फायदा उठाते हैं। देश भर में, धनी घरों में कई नाबालिगों और युवा वयस्कों के साथ दुर्व्यवहार होता है, उन्हें नियंत्रित और उनका शोषण किया जाता है, और श्रमिकों के अधिकारों के बारे में सामान्य जागरूकता की कमी इसके आस-पास चुप्पी को और गहरा कर देती है। हालाँकि, हर कोई चीजों को चुपचाप नहीं सहन करता है। कुछ महिलाएँ इतनी मज़बूत और सक्षम रही हैं कि अपने नियोक्ताओं के खिलाफ़ बलात्कार और हमले के बारे में पुलिस केस दर्ज किए हैं।

अधिकांश पूर्णकालिक (और यहाँ तक कि अंशकालिक लोगों के मामले में भी) घरेलू काम के लिए रखी महिलाएँ जो पैसे कमाती हैं वह उनके काम की तुलना में न के बराबर है, और जो फायदे उन्हें दिए जाते हैं (छुट्टियाँ, स्वास्थ्य देखभाल, पेंशन) वो काम पर रखने वाले की उदारता और अधिकतर उनकी मर्ज़ी पर निर्भर है। अधिक विशेषाधिकार वालों के लिए, इस्तेमाल के लिए उपलब्ध आय (डिस्पोजेबल आय) उन्हें एक सुविधाजनक जीवन शैली प्रदान करती है, जिसमें वे घरेलू काम करने वालियों को अपनी छोटी से छोटी ज़रूरतों का ख्याल रखने के लिए नियुक्त कर सकते हैं। भारत में, यह सामंती सोच की एक प्रणाली द्वारा स्तरित है, जहाँ घर में काम करने वाले लोगों को ‘नौकर’ के रूप में माना जाता है और उन्हें किसी और की तरह मानवाधिकारों – कम से कम श्रम अधिकारों और यौन अधिकारों – के हकदार नहीं माना जाता है ।

सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित

To read this article in English, please click here.

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