कभी दोस्त रहे एक व्यक्ति के नाम खत
अब मैं बार–बार पीछे मुड़कर देखने और अंजान आदमियों के भय से डरी रहने से भी थक चुकी हूँ। मेरे मन में हमेशा यह डर बना रहता है कि मेरी शारीरिक सीमायों का कोई उल्लंघन न कर दे और साथ ही मैं अब लोगों को अपने से दूर रखते रहने की कोशिश करते हुए भी थक चुकी हूँ।