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क्विअर दुनिया के भीतर की दुनिया – क्विअर मौजूदगी, राजनीति और विविधता 

भारत में क्विअर ऐक्टिविस्म के लिए 2018 का वर्ष ऐतिहासिक रहा। इस दौरान कोलकाता में आयोजित प्राइड वॉक में मैंने देखा कि क्विअर व्यवहारों का उत्सव मनाने और भारतीय दंड विधान की धारा 377 को निरस्त किए जाने की खुशी में विविध क्विअर पहचान, शारीरिक संरचना, अभिव्यक्ति और वैचारिक चेतना रखने वाले क्विअर लोग एक स्थान पर एकत्रित हुए थे। इस आयोजन में पहुँचने वाले लोगों की संख्या, 1999 की गर्मियों में आयोजित पहली प्राइड वॉक के आयोजन से लेकर पिछले बीस वर्षों के आयोजन में, सबसे ज़्यादा थी। लंबे समय तक अनेक क्विअर आंदोलनों के अथक प्रयासों के कारण साम्राज्यवाद के समय में बनाए गए एक कानून को निरस्त किया जा चुका था और सर्द मौसम होने के बावजूद उपस्थित भीड़ के दिलों में जीत की गरमाइश झलक रही थी, और साफ़ पता चल रहा था कि लोगों का यह हुजूम उत्सव मनाने के इरादे से यहाँ इककट्ठा हुआ था। उस दिन मैंने अपनी फ्लैनेल की कमीज़ के साथ काला कॉर्डराय का कोट पहना हुआ था और बिलकुल वैसी\ ही लग रही थी जैसे कि मैं 18 या 19 वर्ष की उम्र में तब लगती थी जब तक मुझे यह एहसास नहीं हुआ था कि एक दिन मेरे स्त्री सुलभ व्यवहार मेरे पौरुष पर हावी हो जाएँगे। वह एक असंख्य संभावनाओं से भरा दिन था और हम सभी अपनी स्वतंत्र होकर हिलोरे मारती इच्छाओं को लेकर सड़कों पर उतर आए थे। उस दिन तो हम खुद को बिलकुल उसी रूप में महसूस कर रहे थे जैसा कि हम हमेशा होना चाहते थे लेकिन हर दिन नहीं हो सकते थे। हर रोज़ तो हम दुनिया में जीने के संघर्ष में खुद को छुपाए रहते थे। उस दिन भीड़ में मैंने अनेक ट्रांस-महिलाओं, हिजड़ों, और ट्रांस लोगों को देखा जो अपनी पूरी चमक-धमक वाले कपड़ों को पहन, अपने सुंदर पंखों को दर्शाते, बहुत ही गर्व के साथ वहाँ दिखाई दे रहे थे। उस दिन उनके चेहरों पर ऐसे भाव नज़र आ रहे थे मानों वे खुद से अपेक्षित पहनावे के तरीकों को चुनौती दे रहे हों। शहर की जनसंख्या के सबसे उपेक्षित और अलग-थलग वर्ग होते हुए भी उस दिन वहाँ उनकी मौजूदगी का दृश्य मुझे बिलकुल अपने मन में न्याय के काल्पनिक दृश्य की तरह लग रहा था। एक क्विअर “फेम” (femme) महिला के रूप में, मेरे लिए यह दृश्य बहुत ही उत्साहित करने वाला था जहाँ स्त्रीत्व अपने अनेक रूपों में न केवल मौजूद था, बल्कि जहाँ इसे आदर भी मिल रहा था और लोग गर्व से इस अपनाए जाने का प्रदर्शन भी कर रहे थे। यह आयोजन वहाँ जमा हुआ लोगों के बहुत ही कोमल तरीके से अपनी ताकत प्रदर्शित करने, विविधताओं और समानताओं के जश्न मनाने और एकजुटता का हर्ष मनाने की तरह था, जिसमें वर्ग, जाति और धार्मिक अंतर का कोई भेद नहीं था। लेकिन कहानी अभी बाकी है।    

इस प्राइड वॉक में भाग लेते हुए मेरे मन में बिलकुल आदर्शलोक या यूटोपिया जैसी स्थिति थी और सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन वे कुछ क्षण बहुत तेजी से गुज़र गए। वापिस लौटते हुए मैंने अगले ट्रेफिक सिग्नल पर कुछ हिजड़ों को भीख मांगते हुए देखा। उस दिन जहाँ शहर के क्विअर और ट्रांस लोगों ने और उनके साथ समानुभूति रखने वालों ने गैर-सामान्य समझी जाने वाली इच्छाओं और पहचान का जश्न मनाया था, और लोगों ने इन व्यक्तिगत और समूहिक तौर पर क्विअर लोगों के सुनहरे भविष्य का सपना देखा था, वहीं दिसम्बर की उसी दोपहर को कुछ लोग अपने एक दिन की कमाई को खोकर इस उत्सव में भाग नहीं ले पाए थे। इस प्राइड वॉक के कारण साल में कम से एक दिन तो सड़कों पर हमारा राज होता है। उस दिन अपने दुख-तकलीफ़ों, अपने डर, हिंसा से जुड़ी यादों, अन्याय, असुरक्षा के भाव को अपने मन में दबाए खुशी और उम्मीद लिए, जो किसी न किसी रूप में हम में से हर एक के मन में होती है, हम क्विअर लोग सड़कों पर निकलते हैं, नारेबाजी करते हैं, एक दूसरे को गले लगाते हैं, और नाच-गाना करते हैं। क्या हम यह कल्पना कर लेते हैं कि हमारी तरह ही हर क्विअर व्यक्ति इसी तरह से प्रभावी सत्ता की शक्तियों के खिलाफ़ खड़े हो सकते हैं या खड़े होने के बारे में सोचते हैं? क्या जब प्राइड वॉक की दिखाई दे रही राजनीति हर तरह की सामाजिक-आर्थिक सीमाओं से परे लगती है, तब हम वैकल्पिक यौनिक और जेंडर विकल्पों की राजनीतिक अर्थव्यवस्था के बारे में सोचते हैं? ऐसे में दिखाई देने वाली यह समवेशिता क्या वाकई समावेशी होती है?  

हम जिन शहरों और स्थानों पर रहते हैं, हम में से प्रत्येक उस जगह को अपने व्यक्तिगत सामाजिक और आर्थिक अनुभवों के आधार पर अनुभव और महसूस करते हैं। क्विअर और ट्रांस समुदायों में बहुत अधिक विविधता होती है, और इसीलिए हमारे शहरों, समुदायों, साथियों और परिवारों के साथ हमारे संबंध, एक-दूसरे से बहुत अलग होते हैं। हमारे शहरों के उदार होने का भ्रम उस समय छिन्न-भिन्न हो जाता है या उस पर प्रश्न तब खड़े हो जाते हैं जब ऐसे ही प्राइड वॉक के दौरान हम में कुछ लोग फोटो खींचे जाने या इंटरव्यू देने से मना कर देते हैं, या चेहरे पर नकाब लगा कर रखते हैं, उस वॉक में सहयोगियों की तरह शामिल नहीं होना चाहते या फिर इसमें भाग लेते समय ज़रूरत से ज़्यादा शांत रहते हैं। हम में से कुछ लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं जबकि कुछ दूसरे तो हमेशा से ही वंचित बने रहे हैं। शहरों में रहने वाले सभी क्विअर लोगों की परिस्थितियाँ एक समान नहीं होतीं और इनकी तुलना किसी छोटे शहर या कस्बे अथवा गाँव में समान परिस्थितियों में रह रहे क्विअर लोगों से नहीं की जा सकती और न ही यह कहा जा सकता है कि शहर के क्विअर लोगों को गाँव के लोगों की तुलना अधिक लाभ मिलते हैं या वे अधिक स्वतंत्र होते हैं और प्रगति कर लेते हैं। स्पष्ट है कि शहरों के साथ हमारे मन में लगाव हमेशा ही बहुत ज़्यादा नहीं बना रहता। शहरों में भले ही क्विअर अधिकारों के लिए विरोध होते रहते हैं, या कालेजों या विश्वविद्यालयों के कैम्पस में, सार्वजनिक स्थानों पर, चर्चा के मंचों पर या क्विअर उत्सवों में अधिकारों पर बात की जाती है, लेकिन यह भी सच है कि यहाँ पर भी क्विअर लोगों को अपने जीवन में अनेक तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है और मन में डर हमेशा ही बना रहता है। भले ही हम शहरों में रहने वाले क्विअर लोग परेड में साथ-साथ चलते हों, लेकिन इसके खत्म होने पर हम अपने-अपने अलग जीवन जीने को विवश हो जाते हैं।  

हम में से कुछ क्विअर लोग प्राइड वॉक के तुरंत बाद कोशिश कर शहर की विषमलैंगिक भीड़ का हिस्सा बन कहीं खो जाते हैं जबकि हम में से कुछ वापिस हिंसा से भरी अपनी उसी दुनिया में लौट जाते हैं जहाँ हमारी मौजूदगी को ही स्वीकार नहीं किया जाता और तिरस्कार से देखा जाता है। ट्रांस लोगों के लिए तो यह बात विशेष रूप से सही है।  

हम में से कुछ क्विअर लोग तो इस प्राइड परेड में शामिल हो जाते हैं, जबकि दूसरे अनेक लोग या तो शामिल नहीं हो पाते या फिर शामिल होना नहीं चाहते। जो क्विअर लोग परेड में शामिल होते हैं, वे अपनी ओर घूर कर देखने वाले लोगों की आँखों में देखकर वापिस घूरते हैं। जब चलती बसों, ऑटो, टॅक्सी, कारों और रिक्शा में से विषमलैंगिक पितृसत्ता व्यवस्था के मानने वाले पुरुष हमारी ओर देखते हैं तो हम और ज़ोर से नारे लगा कर इसका जवाब देते हैं और अपने अस्तित्व की घोषणा दृढ़ता से करते हैं। लेकिन फिर परेड के बाद जब हम अपने जीवन में वापिस लौट आते हैं तो यही सब कुछ कर पाने में नाकाम रहते हैं या हमेशा छींटाकशी होने, पीछा किया जाने, रेप कर दिए जाने या मार दिए जाने के डर में जीते हैं। हम में से अनेक को उन्ही सड़कों पर, जिन पर हम साल में एक बार बड़ी शान से चलते हैं, गाली दिए जाने, धमकाए जाने और भद्दे नामों से पुकारे जाने का अनुभव करना होता है, इसीलिए अगले साल होने वाली परेड तक, जब तक कि फिर एक बार सड़कों पर उत्सव करते हुए चलना संभव नहीं होता, हम फिर चुपचाप, डरते हुए जीवन बिताने के लिए विवश हो जाते हैं। फिर इसके अलावा कुछ ऐसे क्विअर लोग भी हैं जिन्हे उनके लगभग अदृश बन चुके व्यवहारों के कारण शहर के दूसरे क्विअर लोग और समुदाय भी पहचानते या स्वीकार नहीं करते हैं। हमारी रोज़मर्रा की वास्तविकताएँ एक दूसरे से बहुत भिन्न होती हैं। हमारे कार्यकलाप हर क्षण भी अलग-अलग जगहों पर बदलते रहते हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि किसी विशेष समय और परिस्थिति में हम किस तरह से हालात से सम्झौता कर पाते हैं।  

हम में से कुछ क्विअर लोग आनंद पाना जानते हैं लेकिन क्विअर राजनीति में उनकी रुचि नहीं होती। कुछ लोग क्विअर क्रान्ति करना चाहते हैं जबकि कुछ का अंतिम ध्येय केवल प्यार पाना ही होता है। हम में से कुछ अंतरसंबंधों के सिद्धान्त को समझते हैं जबकि दूसरे कुछ लोग तो केवल जीवन निर्वाह करने के लिए ही संघर्ष करते रहते हैं। कुछ किसी भी तरह की पहचान के लेबेल लगवाना पसंद नहीं करते जबकि कुछ दूसरे लोग अपना पूरा जीवन अपनी पहचान के साथ गुज़ार देते हैं। हम में से कुछ अपने जीवन की सच्चाई, अपनी वास्तविकता के बारे में लिखने की हिम्मत कर भी लेते हैं तो कुछ क्विअर लोग तो जीवन भर खुद अपने व्यवहारों को ही स्वीकार नहीं कर पाते। क्विअर होने का कोई एक निश्चित, निर्धारित तरीका नहीं होता और न ही क्विअर व्यवहार किसी विशेष तरह के होते हैं। हम में से प्रत्येक क्विअर के समानता और भिन्नता के चलते क्विअर है और हमारे क्विअर व्यवहारों को हर रोज़ अनेक दिखने और न दिखने वाली परिस्थितियाँ प्रभावित करती हैं। 

क्विअर लोगों का समुदायों की रचना करना, आपस में एकजुटता बनाना, विकल्पों की खोज करते रहना आदि सब कुछ हमारी विविधता के चलते ही निरंतर संभव हो पाया है। क्विअर होने मोटे तौर पर इस जानकारी के साथ जीवन जीना है कि जीवन, प्रेम, कल्पना, विचार रखना, आनंद उठाना, विरोध करना, प्रतिस्पर्धा करना, और भावों को दर्शाना आदि सभी कुछ तभी क्विअर है जब इन सभी में उभर कर दिखने वाले क्विअर व्यवहार का भय न हो। अगर ऐसा हो तभी क्विअर विचारों की स्वतन्त्रता भी क्विअर व्यवहार से घिरी नहीं रहेगी और क्विअर समुदायों, में भीतरी और बाहरी चुनौतियों का सामना कर पाएगी। क्विअर विचार रखना अस्थिरता रखने का ही एक रूप है और यही इसकी राजनीतिक अनिवार्यता भी है। एक समान विचारों, विचारों और काम की क्षमता में समानता होने के बारे में सोचना भी क्विअर भाव और इससे जुड़ी हर प्रकार की चिंताओं के प्रति अपकार है। क्विअर भाव वास्तव में खुद अपने व्यवहारों की ओर बार-बार लौट कर आना है और हर बार इस वापसी के रंग अलग हो। खुद अपने में, और दूसरों में, जिन्हे हम जानते हैं और नहीं भी जानते, विविधता को पहचान लेना ही क्विअर व्यवहार है। ऐसा होने पर ही जब हमारे द्वारा किया जाने वाला विरोध, समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग का विरोध नज़र आने लगे, तब हम खुद से यह सवाल करें की किस तरह से हमारी यह राजनीति सबसे कमजोर और अनसुनी रह गयी आवाज़ वाले लोगों की चिंताओं को दूर कर सकती है।   

सुमेंद्र कुमार द्वारा अनुवादित 

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