Scroll Top

शब्दावली

यौनिक और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों के विभिन्न पहलुओं से संबंधित 80 से अधिक परिभाषाएं, जो भारतीय और दक्षिण एशियाई संदर्भ के लिए प्रासंगिक हैं, यहाँ सूचीबद्ध हैं। चूँकि ये विचार और अवधारणाएँ वक़्त के साथ विकसित होती रहती हैं, इसलिए कुछ स्पष्टीकरणों को समय-समय पर अपडेट करने की ज़रूरत हो सकती है। यदि आपके पास यहाँ दिए गए किसी भी विवरण को बेहतर बनाने के लिए कोई सुझाव है, तो कृपया हमसे संपर्क करने में संकोच न करें।

यह पुस्तिका उस शब्दावली को आगे बढ़ाती है जिसे हमने इंटरन्यूज़ के सहयोग से तैयार किया था। इस हिंदी शब्दावली के प्रिंट संस्करण को प्रकाशित करने में हमारा सहयोग करने के लिए हम ILGA World को धन्यवाद देते हैं। यह फ़िनलैंड के विदेश मंत्रालय के माध्यम से इल्गा वर्ल्ड द्वारा वित्तपोषित LGBTI डिजिटल समावेशन पर एक परियोजना के अंतर्गत किया गया था।

  • यौनिकता (Sexuality) – यौनिकता के सिद्धांत को कई सालों से परखा जा रहा है। इसकी कई परिभाषाएं हैं जो इसके कई अवयवों को सम्मिलित करती हैं। हालांकि, कोई भी एक परिभाषा सर्वमान्य नहीं है, फिर भी नीचे दी गई परिभाषा यौनिकता की एक मूलभूत एवं काफ़ी हद तक व्यापक समझ देती है।“यौनिकता मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन का मुख्य पहलु है जिसमें लिंग, जेंडर पहचान व भूमिका, यौनिक रुझान, सुख, घनिष्ठता व प्रजनन सम्मिलित है। यौनिकता विचार, परिकल्पना, इच्छा, विश्वास, अभिवृत्ति, मूल्य, व्यवहार, अनुभव, के सम्बन्ध में अनुभव व व्यक्त की जाती है। यद्यपि यौनिकता के अंतर्गत उपरोक्त सभी पहलु आते हैं परन्तु सभी एक साथ अनुभव व व्यक्त नहीं किए जाते। यौनिकता पर जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, नैतिक, कानूनी, ऐतिहासिक, धार्मिक व आध्यात्मिक कारक का प्रभाव होता है।”- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ड्राफ्ट परिभाषा 2002
  • लिंग (Sex) – लिंग को अक्सर जन्म के समय जननांगों की उपस्थिति के आधार पर निर्धारित किया जाता है। यह लोगों की विभिन्न जैविक और शारीरिक विशेषताओं को संदर्भित करता है, जैसे कि प्रजनन अंग, गुणसूत्र, हार्मोन आदि। लिंग जेंडर के समान नहीं है।
  • जेंडर (Gender) – समाजमहिलाएवंपुरुषको जैसे देखता है, जैसे उनमें अंतर करता है तथा उन्हें जो भूमिकाएँ प्रदान करता है, उसे जेंडर कहते हैं। सामान्यतः लोगों से यह उम्मीद की जाती है कि वे उन्हें दिए गए जेंडर को स्वीकार करें और उसी के अनुसार उचित व्यवहार करें। जहाँ जेंडर से जुड़ी भूमिकाएँ सांस्कृतिक एवं सामाजिक अपेक्षाओं के आधार पर होती हैं, वहीं जेंडर पहचान लोगों द्वारा स्वयं तय की जाती है कि वे स्वयं को पुरुष की श्रेणी में रखना चाहते हैं, महिला की श्रेणी में रखना चाहते हैं या किसी भी श्रेणी में नहीं रखना चाहते हैं। संकेतों के एक जटिल समूह के आधार पर किसी का जेन्डर तय किया जाता है जो हर संस्कृति में अलग हो सकता है। यह संकेत अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे कोई कैसे कपड़े पहनते हैं, कैसे व्यवहार करते हैं, उनके रिश्ते किसके साथ हैं और वे सत्ता का प्रयोग कैसे करते हैं।
  • जेंडर मानदंड और भूमिकाएं (Gender Norms and Roles) – जेंडर मानदंड समाज द्वारा तय किए गए कुछ नियम हैं जिन पर जेंडर पहचान आधारित होती है और जेंडर भूमिकाएँ जेंडर के आधार पर समाज द्वारा तय की गई भूमिकाएं है जिनका पालन करना हमें बचपन से सिखाया जाता है। हम शिक्षा, मीडिया, परिवार, धर्म, और अन्य सामाजिक संस्थानों के ज़रिए ये सीखते हैं। जेंडर भूमिकाएं वक़्त के साथ बदल सकतीं हैं।  
  • जेंडर स्टीरियोटाइपिंग (Gender Stereotyping) – किसी के जेंडर के आधार पर उनके बारे में रूढ़िबद्ध धारणाएं बना लेना और उन पर भूमिकाएं और नियम थोपना। इसके कुछ उदाहरण हैंऔरतें गाड़ी नहीं चला सकतीं”, “मर्द बच्चों के डायपर नहीं बदल सकते”, “औरतों का काम दूसरों का ख़्याल रखना होता है”, यामर्द औरतों से ज़्यादा ताक़तवर होते हैं। जेंडर स्टीरियोटाइपिंग अक्सर पेशेवर और निजी ज़िंदगी में लोगों की फ़ैसले लेने की आज़ादी को सीमित करता है और इसलिए ये ठीक नहीं है। 
  • महिला (Woman) – वो जो एक महिला के रूप में पहचान करते हैं और जिनके महिलाओं के जननांग और स्तन, योनि और अंडाशय जैसे प्रजनन अंग हो भी सकते हैं या नहीं भी।
  • पुरुष (Man) – वे जो एक पुरुष के रूप में पहचान करते हैं; उनके पुरुष जननांग, या लिंग, या वृषण जैसे प्रजनन अंग हो भी सकते हैं या नहीं भी।
  • इंटरसेक्स विविधताएं के साथ जी रहे लोग (People with Intersex Variations) – ज़्यादातर बच्चे जब पैदा होते हैं तो उनके बाहरी यौनांगों को देखकर डॉक्टर द्वारा तय किया जाता है कि वे लड़कें हैं या लड़की। पर कुछ बच्चों के यौनांगों को देखकर यह बता पाना मुश्किल होता है। हो सकता है कि उनके कुछ बाहरी यौनांग लड़के और कुछ लड़की की तरह हों या हो सकता है उनके बाहरी यौनांग लड़के की तरह हों पर भीतरी जननांग लड़की की तरह या इसके विपरीत। अतः यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग होता है जिनके यौनांगों में ये विविधताएं होती हैं।
  • जेंडर पहचान (Gender Identity) – लोगों की आंतरिक रूप से महसूस की गई, स्त्रीत्व या लड़की/महिला होने की अंतर्निहित भावना, अथवा पुरुषत्व या लड़का/आदमी होने की अंतर्निहित भावना, या कोई अन्य जेंडर (उदाहरण के लिए – जेंडरक्वीयर, जेंडर नॉन-कंफ़ॉर्मिंग, जेंडर न्यूट्रल) होने की भावना जो किसी के जन्म के समय दिए गए जेंडर के अनुरूप हो भी सकता है और नहीं भी। चूंकि जेंडर की पहचान आंतरिक होती है, इसलिए ज़रूरी नहीं है कि किसी की जेंडर पहचान दूसरों को नज़र आए।
  • जेंडर द्विचर (Gender Binary) यह सीमित विचार या परिपेक्ष कि केवल दो जेंडर हैं और यह कि हर कोई इन में से एक जेंडर के है। यह शब्द उस प्रणाली का भी वर्णन करता है जिसमें समाज लोगों को पुरुषों और महिलाओं की जेंडर भूमिकाओं, जेंडर पहचान और विशेषताओं में विभाजित करता है।
  • सिसजेंडर लोग (Cisgender Persons) अक्सर संक्षिप्त में सिस (cis) – वे लोग जिनके जन्म के समय उन्हें दिए गए जेंडर, उनके शरीर और उनकी जेंडर पहचान के बीच एक मेल होता है। उदाहरणकोई व्यक्ति जो एक आदमी के रूप में पहचान करता है और जिसे जन्म के समय पुरुषजेंडर ही दिया गया था। दूसरे शब्दों में, ​​वे लोग जिनकी जेंडर पहचान और जेंडर भूमिका समाज द्वारा उनके लिंग से जोड़ी गयी अपेक्षाओं  से मेल खाती है।
  • प्रोनाउन (Pronouns) अंग्रेज़ी और कुछ अन्य भाषाओं में सर्वनामों से लोगों के जेंडर का पता लगता है। कुछ अंग्रेजी सर्वनाम जो अक्सर इस्तेमाल किये जाते हैhe/him/his, she/her/hers, they/them/theirs, ze/hir/hirs कई बार अनुपयुक्त सर्वनाम के ज़रिए लोगों कोमिसजेंडरकिया जाता है यानी उन्हें उस जेंडर पहचान से जोड़ा जाता है जो उनकी नहीं है।
  • जेंडर अभिव्यक्ति (Gender Expression) – हम जिस तरह अपने पहनावे, हेयरस्टाइल, व्यवहार, आवाज़ वग़ैरह के ज़रिए अपने आप को बाहर की दुनिया के सामने पेश करना पसंद करते हैं। ज़रूरी नहीं है कि ये अभिव्यक्ति किसी एक जेंडर से ही जुड़ी हो। ख़ुद को व्यक्त करने का कोई सही या ग़लत तरीक़ा नहीं होता हालांकि समाज में कभीकभी अपने दिए गए जेंडर से अलग अभिव्यक्ति को नाकारा जाता है।
  • ट्रांसजेंडर लोग (Transgender Persons) – अपने शारीरिक जेंडर को स्वीकार करते हुए स्वयं को दूसरे जेंडर का मानने वाले लोग ट्रांसजेंडर लोग स्वयं कोतीसरे जेंडरका मान भी सकते हैं और नहीं भी। ट्रांसजेंडर लोग शारीरिक रूप से पुरुष हो सकते हैं जिनको समाज ने पुरुष का जेंडर प्रदान किया हो, जो स्वयं को महिला मानते हैं और महिलाओं की तरह कपड़े पहनते हैं और व्यवहार करते हैं। उसी प्रकार, वे शारीरिक रूप से महिलाएं हो सकते हैं जिनको समाज ने महिला का जेंडर प्रदान किया हो, जो स्वयं को पुरुष मानते हैं और पुरुषों की तरह कपड़े पहनते हैं और व्यवहार करते हैं। यह ज़रूरी नहीं है कि सब ट्रांसजेंडर लोग स्वयं को समलैंगिक (यौनिक पहचान) मानें या केवल एक जेंडर से अपनी पहचान करें।
  • जेंडरन्यूट्रल (Gender Neutral) – कोई भी चीज़ जो स्त्री या पुरुष जेंडर से जुड़ा नहीं है। 
  • जेंडर नॉनकंफ़ॉर्मिंग (Gender Non-conforming) – जिनकी जेंडर अभिव्यक्ति स्त्रीत्व या पुरुषत्व/मर्दानगी से मेल नहीं खाती। ये ‘ट्रांसजेंडर’ से अलग है और इसका इस्तेमाल तभी करना ठीक रहता है अगर कोई अपनी पहचान ख़ुद ‘जेंडर नॉन-कंफ़ॉर्मिंग’ बताए। 
  • नॉनबाइनरी (Non-binary) एक जेंडर पहचान जो पुरुष/महिला जेंडर द्विचर से परे है। गैरद्विचर लोग कई रूपों में पहचान कर सकते हैंट्रांसजेंडर, बिना किसी जेंडर वाले या कई जेंडर वाले (उदाहरण के लिए, बाईजेंडर, जेंडरक्वीयर) या फिर एक ऐसे जेंडर के जो किसी बाइनरी में बड़े करीने से फिट नहीं होते है (उदाहरण के लिए, डेमीगर्ल, डेमीबॉय) कुछ लोगनॉनबाइनरीके लेबल का भी अपनी जेंडर पहचान के लिए सक्रिय रूप से प्रयोग करते हैं।
  • हिजरा (Hijra) भारतीय उपमहाद्वीप में इस्तेमाल किया जाने वाला यह शब्द उन लोगों के समुदाय को संदर्भित करता है जिन्हें जन्म के समयपुरुषका जेंडर दिया गया था, लेकिन जो पुरुषों के रूप में पहचान नहीं करते, या जिनमे इंटरसेक्स विभिन्ताएं हैं, और इसमें वे लोग भी शामिल हो सकते हैं जो बधिया करना चाहते हैं और/या करवाते हैं। हालांकि कुछ अपने लिए स्त्रीलिंग सर्वनामों का प्रयोग करते हैं, कुछ कहते हैं कि वे तीसरे जेंडर के हैं और न तो पुरुष हैं और न ही महिला। ‘हिजरा’ एक जेंडर पहचान ही नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक पहचान है। भारत में हिजरों के अपने दीक्षा अनुष्ठान और पेशे हैं, जिनमें भीख मांगना, यौन कार्य और शादियों में नृत्य करना या बच्चों को आशीर्वाद देना शामिल हैं। भारत में उन्हें क़ानूनी रूप से ट्रांसजेंडर लोग माना जाता है (भले ही समुदाय के कुछ सदस्य इस तरह से पहचान न करते हो), और वे कुछ सरकारों या राज्य विभागों द्वारा नौकरियों, शिक्षा आदि के लिए आवंटित आरक्षण तक पहुंचने में सक्षम हैं। दक्षिण एशिया के अन्य हिस्सों जैसे कि बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में भी हिजरा समुदाय हैं। भारत के अन्य हिस्सों में समान (लेकिन समरूप नहीं) सांस्कृतिक समुदाय हैं, जैसे कि अरवाणि (तमिलनाडु में), जोगप्पा (कर्नाटक में), और कोती (उत्तर भारत और महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों में)
  • पुरुषत्व/मर्दानगी/मर्दानगियां (Masculinity/ies)  समाज में जिस तरह के व्यवहार और क्रियाओं को मर्दों से जोड़ा जाता है। पुरुषत्व कई हो सकते हैंकभीकभी देशों, क्षेत्रों और संस्कृतियों के भीतर भिन्न होते हैंलेकिन अक्सर कुछ सामान्य या प्रमुख अवधारणाएं हो सकती हैं जो किसी कोपुरुषबनाती हैं। उदाहरण के लिए, कई संस्कृतियों में, पुरुषों की अपने परिवार के लिए अकेले कमाने की क्षमता, शारीरिक और भावनात्मक रूपसे ताक़तवरहोने, परिवार में सभी वित्तीय निर्णयों के लिए ज़िम्मेदार होने आदि में पुरुषत्व देखा जाता है। हमेंमर्दानगीसिखाई जाती है और इसका हमारे यौनिक रुझान या शारीरिक गठन के साथ कोई लेनादेना नहीं होता। मर्दानगी की परिभाषा हर किसी के लिए अलग है और ये वक़्त के साथ संस्कृति, धर्म, वर्ग आदि के हिसाब से बदलती भी रहती है।
  • यौनिक पहचान (Sexual Identity) – लोग जिस तरह से ख़ुद की यौनिकता को महसूस करते हैं और उसका पहचान करते हैं। गे, बाई, कोती, डबल डेकर, स्ट्रेट जैसे शब्द यौनिक पहचान से जुड़े हैं। ज़रूरी नहीं कि यौनिक पहचान और यौनिक रुझान एक ही हों क्योंकि उदाहरण के तौर से, एक मर्द ख़ुद को स्ट्रेट कहने के बावजूद मर्द और औरत दोनों की ओर आकर्षण महसूस कर सकता है।  
  • यौनिक रुझान (Sexual Orientation) – इसे यौनिक आकर्षण भी कहते हैं। यह लोगों के एक दूसरे के प्रति आकर्षण को संदर्भित करता है। आईये अलगअलग पहचानों और रुझानों के बारे में जाने… 
  • विषमलैंगिक/ स्ट्रेट (Heterosexual/ Straight) जो लोग मुख्य रूप से भावनात्मक, शारीरिक और/या यौनिक रूप से किसी दूसरे जेंडरजिसे अक्सर गलती सेविपरीत लिंगकहा जाता है – के सदस्यों के प्रति आकर्षित होते हैं।
  • समलैंगिक लोग (Homosexual Persons) – अपने ही जेन्डर के लोगों की ओर आकर्षण महसूस करते हैं (महिलाऐं जो दूसरी महिलाओं की ओर आकर्षित होती हैं उन्हें लेस्बियन और पुरुष जो दूसरे पुरुषों की ओर आकर्षित होते हैं उन्हें गे कहते हैं)
  • गे (Gay) – जो लोग अपने जेंडर के सदस्यों के प्रति भावनात्मक, रोमांटिक और/या यौन रूप से आकर्षित होते हैं। पुरुष, महिलाएँ और गैरबाइनरी लोग इस शब्द का उपयोग स्वयं का वर्णन करने के लिए कर सकते हैं, हालांकि यह शब्द आमतौर पर उन पुरुषों का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है जो अन्य पुरुषों के प्रति आकर्षित होते हैं।
  • लेस्बियन (Lesbian) – एक महिला जो अन्य महिलाओं के प्रति यौनिक रूप से आकर्षित होती है और/या एक लेस्बियन के रूप में पहचान करती है। लेस्बियन के रूप में पहचान करने वाले लोगों के बारे में आम गलत धारणाएं हैं कि वेपुरुषों से नफरतकरते हैं; या उनके पुरुषों के साथबुरे यौन अनुभवरहे हैं जो उन्हें लेस्बियन महिलाओं मेंबदलदेते हैं, या यह कि यह एक पश्चिमी आयात है जिसकी भारत या एशियाई संदर्भ में कोई प्रासंगिकता नहीं है। ये धारणाएं गलत हैं और अक्सर इनका उपयोग लेस्बियन के रूप में पहचान करने वालों के खिलाफ हिंसा को सही ठहराने के लिए किया जाता है। एक लेस्बियन का उनके कपड़ों या तौरतरीकों के आधार परपहचानकरना भी संभव नहीं है (उदाहरण के लिए, “जो महिलाएं मर्दानी हैं वे लेस्बियन हैंएक गलत और आपत्तिजनक मान्यता है)
  • द्विलैंगिक लोग (Bisexual Persons) – जो अपने ही जेंडर के लोगों और अपने से किसी अन्य जेंडर के लोगों के प्रति यौन रूप से आकर्षित होते हैं। 
  • अलैंगिक लोग (Asexual Persons) – जो किसी के भी प्रति यौनिक आकर्षण या तो बिलकुल नहीं महसूस करते हैं या आंशिक रूप से करते हैं, पर वे और लोगों की तरह रोमांटिक आकर्षण महसूस कर सकते हैं और गहरे भावनात्मक रिश्ते बना सकते हैं। अलैंगिकता एक स्पेक्ट्रम पर मौजूद है, और अलैंगिक लोगों को कम, कम या सशर्त यौन आकर्षण का अनुभव हो सकता है। निसंदेह, उनकी भावनात्मक ज़रूरतें हो सकती हैं और अन्य लोगों की तरह वे उनको कैसे पूरा करते हैं यह उनका व्यक्तिगत मामला है। वे डेट पर जा सकते हैं, लम्बे अरसे तक भावनात्मक रिश्ते/रिश्तों में रह सकते हैं या अकेले रहने का निश्चय भी कर सकते हैं।
  • क्वीयर (Queer) – वे लोग जो विषमलैंगिकता की प्रबलता पर सवाल उठाते हैं। क्वीयर लोग समलैंगिक, लेस्बियन, गे, इंटरसेक्स या ट्रांसजेंडर हो सकते हैं। हालांकि इस शब्द को आक्रामक माना गया था, कई समूहों और समुदायों ने इस शब्द को सशक्तिकरण हेतु स्वीकारा है और इसका इस्तेमाल यह दावा करने के लिए किया है कि वे विषमलैंगिक नहीं हैं, गैरअनुरूपतावादी हैं, और एक प्रमुख विषमलैंगिक ढांचे के खिलाफ हैं। इसके अंतर्गत वो लोग भी आते हैं जो स्वयं पर इस्तेमाल किए गएलेबलसे असंतुष्ट हैं और जो विषमलैंगिक मानदंडों के अनुरूप जीवन नहीं जीते हैं।
  • एलजीबीटीक्यूआईए+ (LGBTQIA+) यह अंग्रेज़ी में संक्षिप्त रूप से क्वीयर पहचान औरक्वीयरता(queerness) को स्पष्ट करता है। इसमें कई पहचानें शामिल हैं और यह लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल (द्विलैंगिक), ट्रांसजेंडर, क्वी, इंटरसेक्स, एसेक्शुअल (अलैंगिक) के लिए शॉर्ट फ़ॉर्म/ संक्षिप्तीकरण है। प्लस चिह्न (+) अन्य पहचानों और अभिव्यक्तियों को संदर्भित करता है जोएलजीबीटीक्यूपरिवर्णी शब्द में शामिल नहीं हैं और जिनका अभी तक पूरी तरह से वर्णन नहीं हुआ है। यह एक छत्रशब्द है जिसे अक्सर पूरे ग़ैरविषमलैंगिक, ग़ैरसिसजेंडर समुदाय के लिए इस्तेमाल किया जाता  है।
  • यौन स्वास्थ्य (Sexual Health) – यह यौनिकता के संबंध में शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक खुशहाली की स्थिति है; यह केवल रोग, शिथिलता या दुर्बलता की अनुपस्थिति नहीं है। यौन स्वास्थ्य के लिए यौनिकता और यौन संबंधों के प्रति सकारात्मक और सम्मानजनक दृष्टिकोण की आवश्यकता होने के साथसाथ आनंददायक और सुरक्षित यौन अनुभव होने की संभावना तथा ज़बरदस्ती, किसी भी प्रकार के सामाजिक भेदभाव और हिंसा से मुक्ति भी आवश्यक है। यौन स्वास्थ्य प्राप्त करने और बनाए रखने के लिए सभी लोगों  के यौन अधिकारों का सम्मान, संरक्षण और पूर्ती होनी ज़रूरी है।
  • प्रजनन स्वास्थ्य (Reproductive Health) प्रजनन प्रणाली और इसके कार्यों और प्रक्रियाओं से संबंधित सभी मामलों में केवल बीमारी या दुर्बलता की अनुपस्थिति, परन्तु पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक भलाई की स्थिति। प्रजनन स्वास्थ्य का तात्पर्य है कि सभी लोग एक संतोषजनक और सुरक्षित यौन जीवन जीने में सक्षम हैं और उनके पास प्रजनन करने की क्षमता है और इस के साथसाथ यह तय करने की स्वतंत्रता भी है कि वे यौनिक रूप से सक्रिय होना या होना चाहते हैं, और यदि हाँ तो कब और कितनी बार।
  • यौनिक अधिकार (Sexual Rights) – इनमें सभी के, बिना किसी ज़बरदस्ती, भेदभाव तथा हिंसा के निम्नलिखित अधिकार शामिल हैंयौनिक तथा प्रजनन स्वास्थ्य, देखभाल तक आसानी से पहुंच, यौनिकता से संबंधित जानकारी, यौनिकता संबंधी शिक्षा, शारीरिक निष्ठा के लिए आदर, अपनी पसंद का साथी चुनना, यौनिक रूप से सक्रिय होने या होने का निर्णय, आपसी सहमति से यौनिक संबंध, आपसी सहमति से विवाह, निर्णय लेना कि बच्चे चाहते हैं या नहीं और यदि चाहते हैं तो कब, और संतोषजनक, सुरक्षित तथा आनंदमय यौनिक जीवन व्यतीत करना।
  • प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) – वे अधिकार जो सभी लोगों को सुरक्षित, प्रभावशाली, उनके सामर्थ्य के अनुकूल तथा अपनी पसंद के, स्वीकृत परिवार नियोजन उपायों के साथ-साथ परिवार नियोजन के लिए अपनी पसंद के अन्य तरीक़ों (जो क़ानून के विरूद्ध नहीं हैं) के विषय में सूचना एवं उन तक पहुँच प्रदान करते हैं। ये अधिकार उचित स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर पहुँच के अधिकार भी हैं जो गर्भधारण तथा प्रसूति की अवस्था को सुरक्षित रूप से पार करने में लोगों को सशक्त बनाते हैं और उनको स्वस्थ शिशु पैदा करने की बेहतरीन संभावना प्रदान करते है। 
  • एसटीआई (STI) सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शनजो उन संक्रमणों की ओर संकेत करता है जिनका संचार यौन संपर्क के द्वारा होता है। यहगुप्त रोगके नाम से ज़्यादा जाना जाता है।
  • आरटीआई (RTI) –रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्शन’ (प्रजनन पथ में होने वाले संक्रमण) वे संक्रमण हैं जो प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करते हैं, जो सामान्य रूप से योनि में मौजूद जीवों के अतिवृद्धि के कारण होता है या जब बैक्टीरिया या सूक्ष्म जीवों यौन संपर्क के दौरान या चिकित्सा प्रक्रियाओं के माध्यम से प्रजनन पथ में प्रवेश कर जाते हैं। वे अनुचित तरीक़े से निष्पादित चिकित्सा प्रक्रियाओं जैसे असुरक्षित गर्भ समापन या अस्वच्छ प्रसव प्रथाओं के कारण भी हो सकते हैं। आरटीआई के उदाहरणों में बैक्टीरियल वेजिनोसिस, यीस्ट इन्फेक्शन, सिफलिस और गोनोरिया शामिल हैं। इनमें से कुछ योग्य उपचारों द्वारा रोके जा सकते हैं।। ज़रूरी नहीं कि किसी में आरटीआई की उपस्थिति यौन गतिविधि को दर्शाए।
  • एचआईवी (HIV) – ह्यूमन इम्यूनो डेफिशियेंसी वायरस, इस नाम की रचना इस प्रकार हुईएच  से ह्यूमन, यानी मनुष्य, आई से इम्यूनो डेफिशियेंसी, यानि रोग से लड़ने की क्षमता में कमी, और वी  से वायरस  या विषाणु। एचआईवी वायरस संक्रमित लोगों के शरीर में CD4 कोशिकाओं पर नियंत्रण कर लेता है और संक्रमित कोशिकाओं के माध्यम से स्वतः प्रजनन करने लगता है। हर संक्रमित CD4 कोशिका मरने से पहले वायरस की हज़ारों प्रतियां बना सकती है। एचआईवी से संक्रमित लोगों के शरीर में रोज़ लाखों एचआईवी विषाणु कण बन सकते हैं। एचआईवी अपने आप में कोई बीमारी नहीं है और हालांकि इससे आगे जाकर एड्स की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, इस प्रक्रिया में कई साल लग सकते हैं। एचआईवी द्वारा संक्रमित लोग कई सालों तक एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
  • एड्स (AIDS) –अक्वायर्ड इम्यून डेफ़िशियेंसी सिंड्रोमको यह नाम इन कारणों से दिया गया है से अक्वायर्ड, क्योंकि यह एक अनुवांशिक स्थिति नहीं है, बल्कि एक बीमारी है, जो चार संचरण के माध्यम से होती है – 1) संक्रमित लोगों के साथ असुरक्षित यौन सम्बन्ध; 2) संक्रमित मातापिता से शिशु को; 3) बिना जांच का रक्त चढ़वाना, जो संक्रमित हो सकता है; 4) संक्रमित सुई या अन्य चिकित्सक उपकरणों के माध्यम से। आई से इम्यून, क्योंकि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है; डी से डेफिशियेंसी, क्योंकि यह इस प्रणाली को कमज़ोर करता है; और एस से सिंड्रोम, क्योंकि जो लोग एड्स के साथ जी रहे होते हैं, उन्हें विभिन्न बीमारियों और संक्रमण हो सकते है।
  • गर्भ समापन (Abortion) – गर्भावस्था के प्रेरित या सहज समाप्ति को गर्भ समापन कहते हैं। एक सहज गर्भ समापन तब होता है जब एक गर्भावस्था किसी भी चिकित्सा या शल्य चिकित्सा हस्तक्षेप के बिना समाप्त हो जाती है, जैसामिसकैरेजके मामले में होता है। प्रेरित गर्भ समापन में गर्भावस्था की समाप्ति के लिए शल्य चिकित्सा या चिकित्सा प्रक्रियाओं की मदद ली जाती है।गर्भ समापनका प्रयोगगर्भपातसे अधिक उपयुक्त है। 
  • गर्भनिरोधन (Contraception) – इनका उद्देश्य गर्भावस्था को रोकना है। गर्भनिरोधक विकल्प होने से लोगों, विशेष रूप से महिलाओं, के लिए यह चुनने का अवसर बढ़ जाता है कि वे कितने बच्चे, कब पैदा करना चाहते हैं और बच्चे पैदा करना चाहते हैं या नहीं। गर्भनिरोधके कुछ अस्थायी तरीके होते हैं (जैसे गर्भ निरोधक गोली और कंडोम) और कुछ स्थायी होते हैं (जैसे नसबंदी और नलबंदी), और कुछ लोग यौन संबंध को ‘सुरक्षित’ रखने के लिए महीने के कुछ दिनो में ही सम्बन्ध बनाते हैं – इस कम प्रभावी विधि को किसी की मासिक धर्म चक्र के “सुरक्षित दिन (सेफ़ डेज़ )” कहा जाता है। 
  • अनुर्वरता (Infertility) – इसे 12 महीने के असुरक्षित यौन संबंध के बाद गर्भधारण करने में असमर्थता के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसका कारण दोनों सहभागियों में से किसी एक में या दोनों में भी हो सकता है। प्राथमिक अनुर्वरता तब होती है जब कोई 12 महीने के असुरक्षित संभोग के बाद भी गर्भधारण नहीं कर पाता है। दूसरे दर्जे की अनुर्वरता एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें जिन लोगों का पहला शिशु हो चुका होता है, वे 12 महीने के असुरक्षित संभोग के बाद भी दोबारा गर्भधारण करने में असमर्थ होते हैं।नपुंसकताऔरबांझपनशब्दों का प्रयोग अनुपयुक्त और रूढ़िवादी है।
  • जेंडरपक्षपाती लिंग चयन (Gender-biased Sex Selection)  गर्भावस्था की स्थापना से पहले जेंडर-आधारित लिंग चयन (उदाहरण के लिए, प्री-इम्प्लांटेशन लिंग निर्धारण और चयन, या इन-विट्रो निषेचन के लिए “शुक्राणु छँटाई”) या गर्भावस्था के दौरान (लिंग-चयनात्मक गर्भ समापन)। भारत में प्रसव पूर्व लिंग चयन अवैध है।यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी समस्या का मूल कारण नहीं है। दक्षिण एशिया के कई देशों में पुत्रों को प्राथमिकता मिलने के कारण अक्सर प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग किया जा सकता है।
  • मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) गर्भावस्था की अवधि और स्थान के निरपेक्ष, गर्भावस्था या उसके प्रबंधन से संबंधित किसी भी कारण (आकस्मिक कारणों को छोड़कर) से गर्भावस्था और प्रसव के दौरान या गर्भावस्था की समाप्ति के 42 दिनों के भीतर महिलाओं की मृत्यु की वार्षिक संख्या।
  • लिंगानुपात (Sex Ratio) – 100 पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं की संख्या। इसका प्रयोग जेंडर पक्षपाती लिंग चयन, जन्म या बचपन में शिशु उपेक्षा या लड़कियों पर लड़कों के मुक़ाबले सांस्कृतिक वरीयता को इंगित करने के लिए किया जा सकता है।
  • जेंडर परीक्षण (Gender Verification or “Sex Testing”) खिलाडियों के जेंडर को “निर्धारित” करने के लिए परीक्षणों की एक श्रृंखला। महिलाएं इसका ज़्यादातर सामना करती हैं। ये परीक्षण अक्सर एथलीट के टेस्टोस्टेरोन हार्मोन स्तर को मापते हैं और यदि टेस्टोस्टेरोन का स्तर निर्धारित स्तर से अधिक है, तो एथलीट को इस आधार पर प्रतिस्पर्धा करने से प्रतिबंधित कर दिया जाता है कि उनके पास इंटरसेक्स भिन्नताएं हो सकती हैं और इसलिए वे एक महिला के रूप में भाग नहीं ले सकती हैं। इन परीक्षणों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और ये अब सिर्फ तब किये जाते हैं जब किसी एथलीट के प्रदर्शन के आधार पर “संदेह” की गुंजाइश होती है। कैस्टर सेमेन्या, दुती चंद और पिंकी प्रमाणिक जैसे एथलीट इन परीक्षणों के अधीन रहे हैं और उनकी भागीदारी, प्रदर्शन या जीत पर सवाल उठाया गया था या उसे निरस्त कर लिया गया था। इन परीक्षणों के खिलाफ काफी आलोचना हो रही है और इन्हें कानूनी रूप से कई संस्थानों में चुनौती दी गई है, जिसमें कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट भी शामिल है। 
  • विशेषाधिकार (Privilege) एक अनर्जित संसाधन, सामाजिक अवस्था या जीवन की स्थिति जो केवल कुछ लोगों को उनके सामाजिक निर्धारकों के कारण आसानी से उपलब्ध होती है, जैसे कि एक विशेष जेंडर (पुरुष), या जाति, या राष्ट्रीयता, का होना; या विषमलैंगिक, या धनी होना आदि। यह अनेक संसाधनों तक पहुंच, सामाजिक लाभ और समाज के मानदंडों और मूल्यों को आकार देने के अभिकर्तृत्व के संबंध में लाभ प्रदान करता है। विशेषाधिकार वाले लोग एक आदर्श बन जाते हैं जिसके विरुद्ध दूसरों को परिभाषित किया जाता है।
  • विषमलैंगिक पितृसत्ता (Heteropatriarchy) – एक समाज या संस्कृति जिसे विषमलैंगिक मर्दों का एक शासक वर्ग चलाता है। अन्य जेंडर और यौनिक पहचान वालों के ख़िलाफ़ भेदभाव ऐसे समाज की पहचान है। 
  • विषमलैंगिकतावाद (Heteronormativity) – ये धारणा कि सभी लोग विषमलैंगिक ही है और यही प्राकृतिक और स्वाभाविक है। ऐसी सोच अन्य यौनिक पहचान वालों के ख़िलाफ़ भेदभाव पैदा करती है। 
  • समलैंगिकद्वेष (Homonegativity) – पारंपरिक जेंडर और यौनिक मानदंडों का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ नफ़रत, डर, और असहनीयता की भावना। इसेहोमोफ़ोबियाभी कहा जाता हैहोमोनेगटिविटीशब्द के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि होमोफ़ोबियाका इस्तेमाल होमोफ़ोबिकलोगों को सहानुभूति के योग्य मानकर उन्हें क़सूरदार नहीं ठहराता है, जो सही नहीं है।
  • ट्रांसनेगेटिविटी और ट्रांसफ़ोबिया (Transnegativity and Transphobia) – ट्रांसजेंडर लोगों या जेंडर नॉनकंफ़ॉर्मिंग व्यवहार के प्रति डर या घृणा की भावना। यह विषमलैंगिक लोगों के साथसाथ लेस्बियन, गे और बाइसेक्सुअल लोगों में भी मौजूद हो सकता है। जैसा कि हमने पहले देखा, ‘ट्रांसनेगेटिविटीशब्द के प्रयोग को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकिट्रांसफ़ोबियाका इस्तेमालट्रांसफ़ोबिकलोगों को सहानुभूति के योग्य मानकर उन्हें क़सूरदार नहीं ठहराता है, जो कतह सही नहीं है।
  • लिंगआधारित भेदभाव या लिंगभेद (Sexism) – ये धारणा कि मर्द अपने शरीर की वजह से औरतों से बेहतर हैं। लिंगभेद ही महिलाओं के शोषण का आधार है। पितृसत्ता की तरह कई सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्थाओं के ज़रिए इसे बढ़ावा दिया जाता है। स्त्रीद्वेष (Misogyny) लिंगभेद का मानसिक रूप है। स्त्रीद्वेष और लिंगभेद औरतों की बेइज़्ज़ती, उन पर हिंसा, और उन्हें वस्तु की तरह देखने के रूप में प्रकट होता है।  
  • रूढ़िबद्ध धारणा (Stereotype) किसी समुदाय के लोगों के बारे रखी गई सामान्यीकृत भावना जो अक्सर नकारात्मक और नुकसानदायक होती है। ये सोचना किइस समुदाय के सभी लोग एक जैसे हैंऔर लोगों की निजी अभिव्यक्तियों को अनसुना कर देना। जब हम ऐसी धारणाओं में विश्वास रखते हैं, हम उन सभी चीज़ों को अनदेखा कर देते हैं जो इन धारणाओं को ग़लत साबित करते हैं, या इनका इस्तेमाल अपनी सोच को पुष्ट करने में करते हैं। जिन व्यक्तियों पर ये धारणाएं लागू नहीं होतीं उन्हें हमबाक़ियों से अलगसमझते हैं। 
  • सक्षमतावाद (Ableism) – मानसिक, भावनात्मक, और शारीरिक विकलांगताओं के साथ जीने वालों के ख़िलाफ़ भेदभाव को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था। किसी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, उनकी शक्लसूरत, और काम करने की उनकी क़ाबिलियत से जुड़ी धारणाएं एक ऐसा माहौल तैयार कर सकतीं हैं जहां उन लोगों के लिए जीना मुश्किल हो सकता है जिनकी शारीरिक, भावनात्मक, संज्ञानात्मक, और संवेदनात्मक क़ाबिलियतों कोनॉर्मलनहीं माना जाता।  
  • जातिवाद (Casteism) वे सामाजिक रीतिरिवाज़ जो जाति व्यवस्था में किसी के स्थान के आधार पर उनकी सामाजिक स्थिति तय करते हैं, जिससे ये निर्धारित होता है कि उन्हें कितनी सत्ता, कितना ज्ञान, और संसाधनों पर कितना नियंत्रण प्राप्त हो सकता है। जातिवाद वर्गवाद से अलग है लेकिन ढांचागत ग़ैरबराबरी को बढ़ावा देने में दोनों की भूमिका एक जैसी है। जातिवाद के सामान्य उदाहरणों में अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ होना, कार्यस्थल में किसी के साथ उनकी जाति के कारण भेदभाव करना, कुछ जातियों के लोगों के लिए कुछ पूजा स्थलों में प्रवेश की अनुमति नहीं देना आदि शामिल हैं।
  • वर्गवाद (Classism) – वे संस्थागत और सांस्कृतिक रीतिरिवाज़ जो सामाजिकआर्थिक स्थिति के आधार पर लोगों में भेदभाव करते हैं। एक आर्थिक व्यवस्था जो समाज में ग़ैरबराबरी पैदा करती है और लोगों की न्यूनतम ज़रूरतों को अनदेखा करती है। 
  • टोकनिज़्म (Tokenism) – विविधता के मूल्यों की ओर निष्ठा दिखाने की सतही कोशिश। उदाहरण के तौर से, किसी वंचित तबक़े से सिर्फ़ एक व्यक्ति को अपने संगठन में नियुक्त करना और फिर उस बात का प्रचार करना ये धारणा बनाने के लिए कि संगठन में बहुत विविधता है। 
  • बर्नआउट (Burnout) यह अनेक लक्षणों का समावेश  सिंड्रोम है जिसकी अवधारणा लंबे समय तक कार्यसम्बन्धी ऐसे तनाव के परिणामस्वरूप होती है जिसे सफलतापूर्वक प्रबंधित नहीं किया गया है। यह तीन आयामों की विशेषता हैऊर्जा की कमी या थकावट की भावना; किसी के काम से मानसिक दूरी में वृद्धि, या किसी के काम से संबंधित नकारात्मकता या निंदा की भावनाएं; और यह उन क्षेत्रों में हमारी रुचि या उत्साहित होने की क्षमता को कम कर सकता है जिनसे हमारा गहराई से लगाव होता है या जो हमें प्रेरित करने वाले होते हैं। बर्नआउट के बारे में अक्सर औपचारिक काम के संदर्भ में बात की जाती है, लेकिन यह किसी भी तरह के काम पर लागू हो सकता है, भुगतान या अवैतनिक, औपचारिक या अन्यथा। उदाहरण के लिए, कोई परिवार के किसी बीमार सदस्य की देखभाल करते हैं या किसी आपदा के बाद राहत कार्य के लिए स्वेच्छा से काम करते हैं, उन्हें भी बर्नआउट हो सकता है।
  • विकलांगता (Disability) – विकलांगता की कानूनी परिभाषा प्रत्येक देश के अनुसार अलगअलग होती है, लेकिन विकलांगता आम तौर पर शारीरिक या मानसिक हानियों/क्षतियों, अक्षमताओं, या प्रतिबंधों के लिए इस्तेमाल किये जाने वाला शब्द है। हानि/ क्षति का अर्थ है शरीर या दिमाग़ के किसी हिस्से में समस्या। अक्षमता का अर्थ है कोई काम कर पाने में मुश्किल होना और प्रतिबंध का अर्थ है सुगम्यता के अभाव या ऐसे किसी पारिस्थितिक कारण की वजह से किसी चीज़ में हिस्सा ले पाना। विकलांगता का निर्माण सामाजिक रूप से भी किया जाता है, जिसमें सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण लोगों को उनकी दुर्बलता से अधिक अक्षम बनाता है। उदाहरण के लिए, श्रवणबाधित लोगविकलांगहैं क्योंकिमुख्यधाराके समाज के अन्य लोग सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) नहीं जानते हैं और उनके साथ संवाद नहीं कर सकते हैं। यह रवैया उन्हें अपने अधिकारों का दावा करने से रोकता है। भारत में, विकलांगता को विकलांग व्यक्तियों के अधिकारराइट्स ऑफ़ पर्सन्स विथ डिसेबिलिटीज़ (RPD) – अधिनियम 2016 के तहत कवर किया गया है, जो 21 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता देता है, और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियममेन्टल हेल्थ केयर एक्ट (2017) के तहत, मनोसामाजिक और बौद्धिक अक्षमताओं का वर्णन करता है। 
  • हाशियाकरण (Marginalisation)शासक वर्ग द्वारा किसी सामाजिक तबक़े को दोयम दर्जा देते हुए समाज के हाशिये पर रखना। व्यवस्थागत तौर पर सामाजिक हाशियाकरण को अक्सर बढ़ावा दिया जाता है। 
  • जेंडरआधारित भेदभाव (Gender-based Discrimination) – जेंडर के आधार पर किसी के साथ ग़ैरबराबरी करना।
  • जेंडरआधारित हिंसा (Gender-based Violence) – समाज द्वारा तय किये गए जेंडरआधारित अंतरों के आधार पर किसी से हिंसात्मक व्यवहार करना। अलगअलग संस्कृतियों में ये अलगअलग रूप लेता है। घरेलू हिंसा, बाल विवाह, ‘ख़ानदान की इज़्ज़तबचाने के लिए हत्या, उन लोगों के खिलाफ हिंसा जो यौनिक मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं और लड़कियों के ख़तने जैसी परंपराएं जेंडरआधारित हिंसा के उदाहरण हैं। 
  • रेप कल्चर (Rape Culture) – क़ानूनी तौर पर हर देश में बलात्कार यानि रपे के अलगअलग मायने हैं। रेप कल्चर एक ऐसी सामाजिकसांस्कृतिक व्यवस्था है जिसमें यौन उत्पीड़न और शोषण को आम माना जाता है। ये इस मान्यता से जुड़ी हुई है कि रेप करने और महिलाओं को वस्तु की तरह देखने को मर्दानगी से अलग नहीं किया जा सकता।  
  • सहमति (Consent) – यौन  संबंधों के संदर्भ में सहमति तब होती है जब सभी पक्ष एकदूसरे के साथ शारीरिक और यौन रूप से शामिल होने के लिए सहमत होते हैं। इसमें शामिल सभी लोगों को चुनाव करने की स्वतंत्रता और क्षमता होती है। सहमति एक बार का समझौता नहीं है और इसे किसी भी समय निरस्त किया जा सकता है। अतः सच्ची सहमति के लिए ज़रूरी है कि सहमति स्पष्ट, सुसंगत, इच्छुक और निरंतर हो। सहमति के बिना, यौन गतिविधि यौन हमला या यौन हिंसा है।
  • बाल यौन शोषण (Child Sexual Abuse) – अगर कोई उम्र में बड़ा या ज़्यादा ताकतवर इंसान (चाहे वे किसी भी जेंडर के हो) नाबालिग़ लोगों के यौनांगों, स्तनों या शरीर के किसी और हिस्से को उनकी मर्ज़ी के बिना छुए या उनको अपने यौनांग दिखाए, उनके शरीर के साथ अपना शरीर रगड़े (कपड़े पहने हुए या बिना पहने हुए), फ़ोन पर या आमनेसामने उनसे सेक्ससंबंधी बातें करें, उनको कपड़े बदलते हुए या नहाते हुए देखे, उनसे अपने यौनांग छुआए या उनके यौनांग छुए, या उनके साथ सेक्स करें तो यह बाल यौन शोषण हैचाहे छूने वाले अपने परिवार के हों या बाहर के। भारत में बाल यौन शोषण यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (2012) – प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ़्रॉम सेकशुअल ओफ़्फ़ेंसेस एक्ट POCSO (2012) – के तहत दंडनीय है, जिसमें उन गतिविधियों का वर्णन भी है जो दुर्व्यवहार करने वाले और बच्चे के बीच ‘त्वचा से त्वचा’ के संपर्क से परे हैं। क़ानून के मुताबिक़ 18 साल से कम उम्र वाले लोगों को बच्चा/नाबालिग़ माना जाता है।
  • पीडोफ़ीलिया (Paedophilia) – ऐसा यौन व्यवहार जिसमें कामोत्तेजना प्राप्त करने का पसंदीदा/एकमात्र तरीका बच्चों के साथ सेक्स या अन्य यौनिक क्रियाएँ करना, या इसकी कल्पना करना है। सभी बाल यौन अपराधी पीडोफाइल नहीं होते हैं। बच्चों पर ऐसी क्रियाओं के दीर्घकालीन प्रभाव उनके मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं।
  • कैटकॉलिंग (Cat-calling) – किसी सार्वजनिक स्थान में किसी पर सीटी बजाना, चिल्लाना या कामुक टिप्पणियां करना या धमकियां देना। 
  • ऑनलाइन उत्पीड़न (Online harassment) – इसेसाइबर उत्पीड़न’, ‘साइबर शोषण’, औरऑनलाइन शोषणभी कहा जाता है। इसमें साइबर बुलीइंग, किसी की अनुमति के बग़ैर किसी की तस्वीरें सार्वजनिक करना, ट्रोलिंग, और स्टॉकिंग शामिल हैं।
  • साइबरस्टॉकिंग (Cyber-stalking) – एक तरह का ऑनलाइन उत्पीड़न जिसका मतलब है किसी को परेशान करने के लिए उनकी इंटरनेट गतिविधियों पर निगरानी रखना।  
  • रिवेंज पॉर्न (Revenge Porn) – इस शब्द का इस्तेमाल तो बहुत किया जाता है लेकिन ये पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि इस तरह का पॉर्न हमेशा बदले की भावना से नहीं बनाया जाता। इसेनॉनकन्सेन्शुअल पॉर्न’ (किसी की जानकारी या सहमति के बग़ैर उसकी कामुक तस्वीरें सार्वजनिक करना) कहना बेहतर वर्णन है।
  • समता (Equity) – यह मापने योग्य, समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व, स्थिति, अधिकार और अवसरों को संदर्भित करता है। जेंडर समता का अर्थ समानता नहीं है, लेकिन समाज में सभी जेंडरों के लोगों की समान अहमियत और उन्हें समान अधिकार और उपचार दिया जाना है।
  • विविधता (Diversity) – लोगों और जनसंख्या समूहों का वर्णन करते समय, विविधता में आयु, जेंडर, यौनिकता, विकलांगता की स्थिति, जाति, नस्ल, जातीयता, राष्ट्रीयता और धर्म के साथसाथ शिक्षा, आजीविका और वैवाहिक स्थिति जैसे कारक शामिल हो सकते हैं।
  • सुगम्यता (Accessibility) – 1. किसी भी बिल्डिंग या ढांचे तक पहुंचना शारीरिक विकलांगता के साथ जीने वालों के लिए कितना आसान है इसका मापदंड। 2. किसी की पहचान उन्हें कुछ ख़ास जगहों तक पहुंचने और संसाधन हासिल करने में रहीं ढांचागत बाधाएं लांघने में किस हद तक मदद करती है इसका मापदंड। 
  • साथी/मैत्री करना (Ally) – जो भेदभाव के ख़िलाफ़ लड़ाई में अपने से अलग किसी सामाजिक तबक़े का साथ दे। साथी भेदभाव के ख़िलाफ़ आंदोलनों का समर्थन करते हैं और उनके पक्ष में बोलते है जिनके साथ वे मैत्री कर रहे है। किसी आंदोलन का साथ देने के लिए मैत्री कर रहे लोगों के लिए ज़रूरी है ये स्वीकार करना कि हमारे पास उस तबक़े से ज़्यादा सामाजिक विशेषाधिकार और सत्ता है, और ज़िम्मेदारी और जवाबदेही की भावनाओं को अपनाना।  
  • गेस्ट्रेट गठबंधन (Gay-Straight Alliance) – गठबंधन जो सिर्फ़ गे लोगों के लिए ही नहीं बल्कि उनके विषमलैंगिक (स्ट्रेट) साथियों के लिए भी एक सुरक्षित और समावेशी माहौल बनाने के मक़सद से बनाये गए हों।
  • एलजीबीटीक्यूआईए+/क्वीयर प्राइड (LGBTQIA+/Queer Pride) –  इसका मतलब है लोगों का अपनी पहचान पर गर्व महसूस करना और खुलकर जीना। LGBTQIA+ समुदाय के होने का जश्न मनाने वाली रैलियां, मार्च इत्यादि कार्यक्रमप्राइड ईवेंटकहलाते हैं। 
  • यौनिकताअनुकूल स्थान (Sexuality-affirming Space) – किसी स्थान कोयौनिकताअनुकूलतब माना जाता है जब वहां लोगों के अपनी यौनिकता से जुड़े सभी फ़ैसलों की इज़्ज़त की जाती हो। ऐसे स्थान में यौनिक पहचान और अभिव्यक्ति में विविधता को मान्यता दी जाती है ताकि लोगों को अपनी यौनिकता का अनुभव करते दौरान शोषण या बीमारी के डर की जगह ख़ुश रहें और सुरक्षित महसूस करें। ऐसे स्थान में यौनिकता और यौनिक एवं प्रजनन स्वास्थ्य व अधिकारों पर सही, ग़ैर-आलोचनात्मक जानकारी दी जाती है और निजी सीमाओं की इज़्ज़त की जाती है। 
  • सुरक्षित स्थान (Safe Space) – यौनिकता के दृष्टिकोण से, एक सुरक्षित स्थान किसी समूह के लिए उनकी यौनिकता और यौन जेंडर अभिव्यक्ति के संदर्भ में पक्षपात, निगरानी नियंत्रण, पूर्वाग्रह, उत्पीड़न और हिंसा से मुक्त है। यह सम्मान, खुलेपन, ईमानदारी और विविधता को प्राथमिकता देता है, और उस तरह के भेदभाव को क़ायम नहीं रखता है जिसका लोगों को बड़े पैमाने पर समाज से और समाज में सामना करना पड़ सकता है।
  • समावेशन (Inclusion) – जेंडर, जाति, नस्ल, वर्ग, यौनिकता, विकलांगता, और अन्य पैमानों के आधार पर किसी से भेदभाव करना, बल्कि सब को शामिल करना। 
  • समावेशी स्थान (Inclusive Space) – किसी जगह को समावेशी तब माना जा सकता है जब अलगअलग जेंडर और यौनिक पहचानों के लोग, मानसिक और शारीरिक विकलांगताओं के साथ जीने वाले, और अलगअलग सामाजिक तबक़ों से आने वाले (जैसे विविध धर्मों, वर्गों और जातियों के; और कोई अन्य पहचान/जनसांख्यिकीय के लोगों) वहां सुरक्षित महसूस कर सकते हैं। ऐसे स्थान में किसी की पहचान के आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं होता। यौन और प्रजनन अधिकारों के संदर्भ में, एक समावेशी स्थान यौनिकता और संबंधित मुद्दों पर विविध दृष्टिकोणों को भी समायोजित करता है, जैसे कि विवाह, यौन साझेदारों की संख्या, बालमुक्त रहने के निर्णय आदि, और इन दृष्टिकोणों के लिए लोगों को नकारात्मक रूप से नहीं देखता है।
  • अंतर्विभागीयता (Intersectionality) – 1980 के दशक में प्रोफ़ेसर किम्बरली क्रेनशॉ ने इसका निर्माण किया था ये समझाने के लिए कि जो एक से ज़्यादा वंचित सामाजिक तबक़ों से ताल्लुक रखते हैं वे कई अलग-अलग प्रकार के शोषण के साथ जूझते हैं। अंतर्विभागीयता इन अलग-अलग वंचित तबक़ों के बीच के रिश्तों को परखते हुए हमें सामाजिक समस्याओं का बेहतर विश्लेषण करने का मौक़ा देती है ताकि हम बेहतर तरीक़े से इन्हें सुलझाने में मदद कर सकें और समुदायों में समावेशी रूप से इनके बारे में जागरूकता ला सकें।  
  • ख़ुशहाली (Well-being) – इसकी कोई एक परिभाषा नहीं है। इसमें सकारात्मक भावनाओं का अस्तित्व, नकारात्मक भावनाओं का होना, ज़िंदगी में संतुष्टि, और सकारात्मक क्रियाशीलता शामिल हैं। 
  • व्यापक यौनिकता शिक्षा (Comprehensive Sexuality Education/CSE) – यौनिकता के संज्ञानात्मक, भावनात्मक, शारीरिक और सामाजिक पहलुओं के बारे में सीखने और सिखाने की एक पाठ्यक्रमआधारित प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य बच्चों और युवाओं को ज्ञान, कौशल, व्यवहार और मूल्यों से लैस करना है जो उन्हें सशक्त बनाएगाउनके स्वास्थ्य, खुशहाली और गरिमा के एहसास के लिए; सम्मानजनक सामाजिक और यौनिक संबंधों के विकास के लिए; उनके चुनाव उनकी अपनी खुशहाली और अन्य लोगों को कैसे प्रभावित करते हैं, इस विचारशीलता के लिए; और अपने जीवन भर में अपने अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए। – रिवाइज़्ड एडिशन ऑफ़ इंटरनेशनल टेक्निकल गाइडेंस ऑन सेक्शुअलिटी एजुकेशन, यूनेस्को, 2018