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एक बेमेल जोड़े की कहानी

शिवानी गुप्ता

जुलाई महीने की तेज़ गर्मी की एक दोपहर में हम दोनों गर्मी से बचने के लिए दिल्ली के एक आलिशान शौपिंग मॉल में चले गए थे। मॉल में एयर-कंडीशनर के कारण कुछ राहत थी। हम मॉल में बनी चमचमाती दुकानों को देखते हुए साथ-साथ चल रहे थे जब मेरी अंगुलियाँ उनके हाथों से छू गयीं। वह मुझे देखकर मुस्कुराए और कुछ ही देर में हम दोनों के हाथ एक-दुसरे के हाथ में थे। हम दुकानों में रखे बेहतरीन सामान को निहारते हुए चल रहे थे तभी मुझे लगा कि एक बेचैन से दिखने वाले व्यक्ति मेरे साथ-साथ चल रहे थे। मैंने उनकी ओर देखा तो वो मुझे देखकर मुस्कुरा दिए। जवाब में मैं भी मुस्कुरा दी लेकिन साथ ही अपने चलने की गति भी तेज़ कर दी। कुछ ही देर में वो फिर मेरे साथ चलने लगे। इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, उन्होंने मुझसे कहा, ‘माफ़ कीजिए’? अब मैं इस अनजान व्यक्ति की ओर मुड़ी और उन्हें घूर कर देखा। उन्होंने अपनी बात जारी रखी, ‘माफ़ करना, पर क्या आप दोनों एक दूसरे को डेट कर रहे हैं’? मैंने उस व्यक्ति को ऊपर से नीचे तक देखा और फिर अपने साथी की ओर मुड़ गयी – मेरे साथी की पेशानी पर कोई बल नहीं था। मैंने कहा, ‘आपको इस से कोई मतलब नहीं होना चाहिए’।

अब इस अनजान व्यक्ति ने कुछ बेचैनी से कहा, ‘मुझे माफ़ करना, मैं कोई मूर्खतापूर्ण बात नहीं करना चाहता लेकिन आप को साथ देख कर इसलिए हैरान हूँ क्योंकि आप जैसे जोड़े प्राय: देखने को नहीं मिलते’। ज़ाहिर है इस वाक्य के बाद एक घबराई हुई हंसी थी।

निश्चित ही मेरे चेहरे पर अजीब से भाव रहे होंगे जब मैंने उनसे कहा, ‘हाँ हम एक दूसरे को डेट कर रहे हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ‘हमारे जैसे जोड़े’ से आपका क्या मतलब है, लेकिन हाँ, हम दोनों एक युगल हैं’। यह कहते हुए मैंने अपने साथी का हाथ थामा और हम वहाँ से चल पड़े। कुछ पलों के पश्चात, मेरे साथी मेरी ओर घूमे और मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया और कहा, ‘क्या इससे कोई फर्क पड़ता है? लोग तो हमेशा ऐसे ही पूछेंगे, कहने दो उन्हें जो कहते हैं’।

मेरे साथी की बात बिलकुल सही थी कि लोग तो हमेशा ही बात करेंगे, पर क्यों? आखिर हमारी जोड़ी में ऐसा अलग क्या था? क्या इसलिए कि मेरी लम्बाई अपने साथी से अधिक थी? या फिर इसलिए कि जब हम गले मिल रहे थे तो ऐसा लग रहा होगा मानो मैं उसकी बाहों में न होकर वो मेरी बाहों में थे? या इसलिए कि उन्हें चूमने के लिए मुझे थोड़ा नीचे झुकना भी पड़ा था? अजीब लगता है यह जानना कि युगलों के बारे में किस-किस तरह की धारणाएँ बना ली जाती हैं – भले ही वे दम्पति किसी भी पहचान से सम्बन्ध क्यों न रखते हों।

शौपिंग मॉल में घटी इस घटना ने मुझे ‘मानक युगल’ और ‘बेमेल युगल’ के बीच के अंतर के बारे में सोचने को विवश कर दिया। मॉल में मिले उस व्यक्ति को निश्चित तौर पर यह महसूस हो गया था कि हमारे बीच कोई सम्बन्ध तो ज़रूर था लेकिन हम दोनों के कद में अंतर के कारण उन्हें यह बात स्वीकार करने में कठिनाई हो रही थी। हमारे इर्द-गिर्द अधिकतर लोगों के साथ ऐसा ही होता है। वे जब हमें देखते हैं तो उन्हें हममे, कद के अंतर के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता। मुझे यह इसलिए पता है क्योंकि जब लोग हमारी तस्वीर देखते हैं तो वे यह नहीं कहते कि, ओह, कितनी बढ़िया/ प्यारी/ आकर्षक/ कमाल की जोड़ी है”, बल्कि मुझे हमेशा उनकी एक उलझन भरी मुस्कराहट के साथ एक बेस्वाद सा ‘अच्छी है’ ही उत्तर में मिलता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम दोनों एक ‘मानक युगल’ की परिभाषा पर खरे नहीं उतरते क्योंकि पुरुष की पारंपरिक कद-काठी के विपरीत मेरे साथी लंबे, सांवले और खूबसूरत नहीं है और मैं भी नारी सुलभ गुणों की मानिंद छोटी कद-काठी की और छुई-मुई सी नहीं हूँ।

अधिकतर लोग हमें केवल एक ‘बेमेल युगल’ ही नहीं समझते बल्कि एक ऐसा जोड़ा मानते हैं जिसमें पुरुष ‘पुरुषों’ की तरह का नहीं है और महिला, ‘पर्याप्त रूप से महिला’ की तरह नहीं है। कहीं न कहीं, पुरुषत्व, सत्ता और कद के बीच सीधा सम्बन्ध समझा जाता रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि ऊँचे कद का व्यक्ति अपने से छोटे व्यक्ति की अपेक्षा अधिक सत्ता की स्थिति में होता है – चूंकि इस मामले में महिला कद में लम्बी हैं – इसलिए पुरुष का पुरुषत्व अमान्य दिखाई पड़ता है। इसका कारण यह भी है कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था में पुरुष हमेशा ही स्त्री से अधिक लम्बे होते हैं। वहीँ दूसरी ओर यह माना गया है कि महिलाएँ हमेशा ही भीरु और शरीर शौष्ठव में पुरुष से कम होनी चाहियें ताकि पुरुष उनकी रक्षा कर सकें। इसलिए हम परियों की कहानी के अनुरूप एक मानक युगल नहीं हैं – और यही कारण है जो हमारे आस-पास के लोगों को उत्तेजित कर देता है।

हम दोनों ऐसे दम्पति हैं, जिनके बारे में लोगों को लगता है कि हमारा रिश्ता कभी भी लम्बे समय तक चलने वाले नहीं हैं क्योंकि हममें कुछ न कुछ ‘गलत’ ज़रूर है। और कभी-कभी तो यह कमी आम दम्पतियों के सामने आने वाली समस्या (यदि इसे समस्या कहा जाए) से बहुत अधिक पेचीदा हो जाती है। मेरे साथी और मेरे बीच कई वर्षों से बहुत ही स्वस्थ और मधुर सम्बन्ध रहे हैं। मेरे साथी को मेरे जीवन मूल्यों और मेरी विचारधारा की अच्छी समझ है और मैंने भी उसके जीवन संघर्ष और खुशियों को पूरे आदर और सम्मान के साथ समझा और स्वीकार किया है। हम दोनों ने जीवन के अपने-अपने अनुभवों को आपस में बाँटा है और कभी भी ऐसा महसूस नहीं किया मानो हमारे सम्बन्ध में किसी तरह की कोई कमी हो। मुझे कभी भी अपने और अपने साथी के कद के अंतर के कारण कोई परेशानी नहीं हुई है, लेकिन जब कभी भी हम दुसरे लोगों के बीच या किसी सार्वजनिक स्थान पर जाते हैं तो हमें हमेशा ही उनके ताने और छींटाकशी का सामना करना पड़ता है। मुझे सबसे ज्यादा बुरा तब लगता है जब लोग मुझसे पूछते हैं कि, ‘आप दोनों एक आम दम्पति की तरह जीवन कैसे जी पाएंगे’?

एक ‘सामान्य’ और ‘मानक जोड़ा’ क्या होता है? क्या एक ऐसा युगल जो बाहर से दिखने में तो बिलकुल सामान्य दिखता हो भले ही उनके संबंधों में मानवाधिकार जैसी कोई चीज़ न हो। मैं ऐसे बहुत से लोगों और परिवारों को जानती हूँ जहाँ महिला के अधिकारों का लगभग हर रोज़ ही हनन होता है और जेंडर आधारित भूमिकाएँ इतनी स्पष्ट हैं मानो पत्थर पर उकेर दी गई हों। उन घरों में पुरुष एक गिलास पानी लेने के लिए भी रसोईघर के अन्दर नहीं जाते। मैं ऐसी अनेक महिलाओं को भी जानती हूँ जिन्हें नियमित रूप से घरेलु हिंसा और लोगों के बीच अपने साथी द्वारा अपमानित होना पड़ता है लेकिन लोगों के सामने और तस्वीरों में यह एक बिलकुल सही और एक दुसरे के लिए बने दिखाई पड़ते हैं। कहीं न कहीं व्यक्ति का रूप-रंग और दिखावे को दम्पतियों में आपसी उपयुक्तता, आपसी समझ और परस्पर आदर से अधिक स्वीकार किया जाता है। मुझे याद है कि मेरी एक मित्र ने एक बार कहा था, ‘इस समय सब कुछ ठीक लगेगा लेकिन तुम्हे बाद में पता चलेगा जब तुम्हारा एक बच्चा हो जायगा, और तब यही कद का अंतर तुम्हें सबसे बड़ी समस्या दिखाई देगा। तुम्हारा बच्चे को स्कूल में दुसरे बच्चे इसलिए छेड़ेंगे क्योंकि कद के अंतर के कारण तुम ‘अलग दिखाई’ पड़ते हो। तब उस समय, जब तुम्हारा बच्चा तुमसे नफ़रत करने लगेगा, तब तुम इस सच्चाई का सामना कैसे करोगी?

एक ‘बेमेल युगल’ होते हुए भी हमसे यही उम्मीद की जाती है कि हम ‘सामान्य मानक युगल’ होने के सभी मानकों पर खरे उतरें, वहाँ हमारे लिए कोई रियायत नहीं है। जब लोगों को लगता है कि वे मेरे साथी के पुरुषत्व और मेरे नारित्व पर अंगुली नहीं उठा सकते, तब वे मेरे मातृत्व और मेरे साथी के पितृत्व पर अंगुली उठाने की कोशिश करते हैं। मुझे उनकी यह बात समझ नहीं आती। उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि हम दोनों माता-पिता बनना चाहते हैं? और अगर मैं बाद में बच्चा चाहूं भी, तो क्या उसके लालन-पालन में हमारी भूमिका मायने नहीं रखेगी? क्या मेरे बच्चे के जीवन की दिशा केवल स्कूल में दुसरे बच्चों द्वारा छेड़खानी करने से ही निर्धारित होगी?

मेरी एक रिश्ते की बहन एक बार मुझसे, मेरे साथी और मेरे कद के अंतर को लेकर ऐसे बहस कर रही थीं और उन्होंने भी मेरी उस मित्र की तरह मुझे समझाने की कोशिश की। मैंने बहुत शांन्ति से उन्हें जवाब दिया, ‘मैं माँ बनना ही नहीं चाहती; क्योंकि केवल मातृत्व को ही मैं अपने अस्तित्व का मूल नहीं समझती’। मेरी यह बात सुनकर उनकी आँखें फैल गयीं और उन्होंने वापस उत्तर दिया, ‘शायद ही तुम माँ बन पाओ। मुझे नहीं पता कि तुम जैसे दम्पति के बीच सामान्य तरह से सेक्स कैसे हो सकेगा’? यहाँ भी उनका ज़ोर ‘तुम जैसे दम्पति’ पर ही था। इस बात के उत्तर में मैं केवल हंस कर रह गयी। मुझे पता है कि कई लोग सोचते हैं कि क्या हमारे बीच सामान्य सेक्स सम्बन्ध बन भी पाएंगे? लेकिन यहाँ मैं लोगों को साफ़ कर देना चाहती हूँ कि कद और सेक्स के बीच को सम्बन्ध नहीं होता। बहुत से लम्बे पुरुष अपने से कहीं छोटी महिला से साथ सेक्स करते हैं तो लम्बी महिला और छोटे पुरुष के बीच सेक्स संबंधों में कुछ भी अटपटा क्यों? लेकिन लोगों को लगता है कि हम दोनों में से किसी एक में हॉर्मोन की कमी है और अगर हम लोगों द्वारा खुद को एक दम्पति के रूप में स्वीकार न किए जाने को किसी न किसी तरह नकार भी देते हैं तो निश्चित ही जीवविज्ञान हमारे इन संबंधों को विफल कर देगा और तब हमारे सम्बन्ध ‘प्राकृतिक रूप से’ ही गलत साबित हो जायेंगे।

मेरे और मेरे साथी के बीच सम्बन्ध की इस यात्रा में हमें अनेक बार लोगों के सवालों, मज़ाक, अल्पहास और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है – विशेषकर दिल्ली जैसे शहर में जहाँ मुझे हमेशा लगा है कि लोग पुरुषत्व और आक्रामकता को अधिक महत्व देते हैं। हमें कई बार और कई तरह से अपने संबंधों के औचित्य के बारे में लोगों को समझाना पड़ा है। मैं एक नारीवादी महिला हूँ और मैंने कभी भी इन यौनिक पहचानों को, भले ही वे कितनी भी सरल और सतही क्यों न दिखती हों, किसी भी सम्बन्ध के बीच का रोड़ा नहीं माना है। मैंने कभी नहीं सोचा है कि मुझसे कद में कम मेरे साथी मुझे कभी भी एक महिला के रूप में हीनता का बोध करवाएंगे या इसके कारण मैं खुद को कभी अधूरा समझूँगी।

मैं जानती हूँ कि हमारे अधिकतर रिश्तेदार हमें एकसाथ देखकर अचंभित रह गए थे। मुझे पता है कि उनके दिमाग में यही चल रहा था कि हम दोनों में से कोई न कोई ज़रूर सही फैसला लेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। जब भी मेरे साथी मेरे रिश्तेदारों से मिलते हैं , वे मुस्कुराकर उनसे यही कहते हैं कि, ‘तुम बिलकुल एक लड़के जैसे’ दिखते हो। मुझे यह समझ नहीं आता कि उन्हें यह अधिकार किसने दिया है कि वे किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर टिपण्णी कर सकें। लेकिन जब उन्हें पता चलता है कि वह एक अच्छी जगह पर ऊंची पगार वाली नौकरी कर रहे हैं तो वे अचानक चुप हो जाते हैं। रिश्तेदारों को लगता है कि कद में कमी, अधिक पगार वाली नौकरी से पूरी जो जाती है। हो सकता है उन्हें यही तर्क समझ आता हो। इसका मतलब व्यक्ति के पास पैसा उसके व्यक्तित्व से अधिक महत्व रखता है। मुझे यह भी पता है कि मेरे कुछ रिश्तेदार यह भी समझते हैं कि मेरे अपनी कम उम्र के व्यक्ति से सम्बन्ध हैं जबकि वास्तविकता यही है कि मेरे साथी उम्र में मुझसे एक साल बड़े हैं। कभी-कभी मुझे यह सब सुन कर बहुत तकलीफ़ होती है पर मेरे साथी का तब यही कहना होता है, ‘जाने दो, कहने दो….’

यदि मैं हम दोनों की ओर से कहूं, तो पितृसत्तात्मक व्यवस्था हर युगल पर ‘सामान्य’ या एक दुसरे के लिए उचित दिखने के लिए अत्यधिक दबाब डालती है पर मुझे लगता है कि मेरे साथी को तो लगातार विवश किया जाता है कि वह बार-बार अपनी उपलब्धियों और अपने पुरुषत्व को सिद्ध करते रहे। उन्हें दुसरे पुरुषों की अपेक्षा अधिक बियर पीने वाला, फूटबाल खेल का दीवाना और लड़कियों वाले गुलाबी रंग से अधिक नफ़रत करने वाला होना होता है। यह बहुत ही अजीब बात है कि कैसे किसी व्यक्ति का कद उन पर इतना दबाब बना सकती है।

सबसे अधिक ग्लानी तो तब होती है जब आपकी अपनी कुछ नारीवादी और तथाकथित उदारवादी महिला मित्र इस विषय पर ऐसे बात करती हैं मानो वे किसी बीमारी के बारे में बात कर रही हों। पूरी बातचीत में वे कहीं न कहीं ऐसा ज़रूर कह देती हैं, ‘संभव है तुम्हें अपने से कम कद वाले व्यक्ति के साथ डेटिंग करना ठीक लग रहा हो, लेकिन अगर मैं तुम्हारी जगह होती तो ऐसा नहीं कर सकती थी’। उनकी यह बात सुनकर पता चलता है कि पितृसत्तात्मक सोच हमारे ज़हन में कितनी गहरी जड़ें बना चुकी है।

हम दोनों ने, हाल ही में, विवाह करने का फैसला किया है और यह निर्णय लिया है कि हमारा विवाह हर मायने में क्रांतिकारी विवाह होगा। इस तरह के क्रांतिकारी विवाह संबंधों में दोनों साथियों का दर्ज़ा बिलकुल बराबर का होता है और इस पर कोई समझौता नहीं किया जाता, जिससे कि दोनों ही साथियों का भला होता है और उन्हें अच्छा लगता है। हमने कभी भी पारंपरिक जेंडर आधारित भूमिकायों को नहीं माना है और न ही उनकी परवाह की है। हमने, घर पर और घर के बाहर, हर काम में मिलकर बारबार का योगदान किया है। मुझे पता है कि हमारे विवाह के दिन भी लोग हमारे विवाह कर लेने के फैसले को भी अपनी सोच के आधार पर ही समझने की कोशिश करेंगे। लेकिन मेरे लिए, इसका एक ही कारण है कि, हम दोनों ही, समानता, अधिकारों और न्याय के कट्टर समर्थक हैं।

मुझे कभी भी अपने साथी के हाथों हिंसा या अनादर का सामना नहीं करना पड़ा है। हमारे बीच के विवादों को हम सुलझा लेते हैं और उन पर बातचीत कर कोई रास्ता निकाल लेते हैं लेकिन हमें कभी भी शक्ति और ताकत के आधार पर इन विवादों को हल करने की कोशिश नहीं की है। हम मिलकर एक साथ चलते हैं और कभी भी इसकी परवाह नहीं की कि कोई हमारे बारे में क्या सोचता है क्योंकि हमारे बीच का यही अंतर हमें अधिक गहरे, कम कड़े और कम विषमलैंगिक समाज के प्रति आशावान बनाता है जहाँ प्रेम वाकई बिना शर्तों और सामाजिक मान्यतायों के परवान हो सके। मुझे उम्मीद है कि हमारे विवाह में इस तरह के अंतर और विचार करते रहने की ज़रुरत हमेशा बनी रहे क्योंकि हर तरह से सही होने पर भी बहुत से दबाबों का सामना करना पड़ता है।

नोट: मेरे साथी और मेरी मुलाकात के समय मेरी उम्र 19 वर्ष की थी। मैंने इन सभी मुद्दों के बारे में अनेक वर्षों तक विचार किया है और मेरे लिए यह लेख लिख पाना बहुत आसान काम नहीं था क्योंकि कहीं न कहीं आपको पता है कि दुनिया में इतनी सारी अन्य समस्याओं के होते हुए केवल कद (या ऐसा ही कोई अन्य कारण) किसी व्यक्ति के रिश्ते में असहजता का कारण हो तो ये चौंका देने वाली बात लगती है। मुझे ऊपर दिया गया यह चित्र याद आता है जिसमें एक छोटी सी अफ़्रीकी-अमरीकी मूल की लड़की कह रही है, ‘आज दुनिया में इतनी सारी समस्याएँ हैं और आप केवल इसलिए परेशान हुए जा रहे हैं, ‘क्योंकि मेरे माता-पिता की जोड़ी एक बेमेल जोड़ी है’? काश हम सभी इस छोटी सी बच्ची की तरह ही समझदार बन पाते।

चित्र आभार : हफ्फिंगटन पोस्ट

सोमेन्द्र कुमार द्वारा अनुवादित

To read this article in English, please click here.

This post was originally published under this month, it is being republished for the anniversary issue.

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