A digital magazine on sexuality, based in the Global South: We are working towards cultivating safe, inclusive, and self-affirming spaces in which all individuals can express themselves without fear, judgement or shame
पल्लवी की सामाजिक (कदाचित) विषमलैंगिक और छिपी हुई लेस्बियन पहचान का यह मिलन, ध्रुवीता से बचने की भरतीय विशेषता की ओर इशारा करता है, जहां एक नई सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत दोनों पहचानों को जगह दी जाती है।
शायद ये मेरा ख़ुद को यह समझाने और भरोसा दिलाने का प्रयास था कि हो न हो, मैं क़्वीयर लोगों के इस समाज का अभिन्न अंग हूँ और अगर मैंने परेड में लगने वाले सभी नारे याद कर लिए, उनकी बोलचाल के शब्द रट लिए, तो अगले साल की परेड मेरे लिए बहुत अलग होगी और मैं इसमें बढ़-चढ़ कर भाग ले पाऊँगी।
सामाजिक तौर पर अनेक उपेक्षित समूहों के लोगों को अपनी यौनिकता सिद्ध करने में अलग-अलग कठिनाईओं, क्षोभ, और दुख का सामना करना पड़ता है, लेकिन मेरे लिए तो यौनिकता के बारे में चर्चा कर पाना एक बौद्धिक कार्यकलाप के तौर पर सामने आया, एक ऐसा विषय जिस पर आसानी से रचनात्म्क चर्चा करना संभव था। सामाजिक विशेषाधिकार कुछ ऐसे ही काम करते हैं।
“इन युवा महिलाओं नें तो हमारे विचारों को और आगे तक पहुंचाया है, और महिलाओं द्वारा सार्वजनिक स्थानों तक पहुँच पाने के नए आंदोलन खड़े किए हैं। इसमें उनका देर रात तक बाहर रहना, महिला हॉस्टल में लगाई जा रही समय की पाबंदियों को ठुकराना, और महिला शौचालयों और सार्वजनिक यातायात तक अधिक सुलभता पाने की मांग करना शामिल है।”
ऐसी जगहों की बहुत कमी है जहां विकलांगता के साथ जी रहे लोग अपने यौनिक अनुभवों या यौनिक जिज्ञासा के बारे में खुलकर बात कर सकें। खास तौर पर विकलांगता के साथ जी रहे युवाओं पर हर वक़्त निगरानी रहती है जिसका मतलब है कि वे यौन अनुभवों से वंचित रह जाते हैं और अपनी यौनिकता को समझ नहीं पाते।
एक औरत के परिवारवाले अक्सर उसके दोस्तों को उसकी ज़िंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा नहीं समझते। लड़कियों को ऐसी मतशिक्षा दी जाती है कि उनके जीवन में दोस्त सिर्फ़ तब तक हैं जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती। इसलिए यह अनकही उम्मीद भी रहती है कि शादी के बाद एक औरत अपने दोस्तों को छोड़कर अपने पति के घरवालों और दोस्तों को अपना लेगी।
इंटरनेट पर बने क्वीयर औरतों के इस समुदाय की बुनियाद एक साझा हक़ीक़त है जो ये सभी औरतें जीतीं हैं। बंद दरवाज़ों के पीछे से एक-दूसरे के सामने अपना दिल खोलकर उन्होंने ये आपसी रिश्ते बनाए हैं।
कभी कभी लगता है कि डेटिंग ऐप्स की यह दुनिया तनाव, परेशानी और द्वेष भाव से ओतप्रोत है, पर शायद यह पूरी तरह सच नहीं है। ज़िंदगी में दूसरी चीज़ों की तरह यह भी आपके धीरज की एक परीक्षा है।
मैं भली भांति जानती हूँ कि यात्राएं करने से आपका जीवन ‘बदल’ जाने और ‘सबको करनी चाहिए’ के विचारों के बारे में अनेक कथाएँ और कहानियाँ प्रचलन में हैं। मैं यह भी जानती हूँ कि यात्रा कर पाना एक विशेष तरह की सुविधा, एक विशेषाधिकार है और हर कोई जीवन में यात्राएं नहीं कर पाता।
डांस मूवमेंट थेरेपी वर्कशाप के उन तीन दिनों में मुझे पता चला कि मेरे मन, मस्तिष्क और शरीर के बीच जैसे कोई सामंजस्य था ही नहीं, और कैसे आमतौर पर पारंपरिक मौखिक कार्यशालाओं में शरीर और मन के बीच के इस संबंध को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
स्कूल के नियम और अनुशासन मुझ से पूरी तरह से आज्ञाकारी और निर्देशों को मानने वाली छात्रा होने की उम्मीद रखते थे और शायद मेरी यौनिकता और जीवन विकल्पों के मेरे चुनाव पर नियंत्रण रखने को भी अपना अधिकार क्षेत्र समझते थे।
समय के साथ-साथ अब मैं जान चुकी हूँ कि उनके इस उलाहने में ‘घर’ का मतलब सिर्फ वो जगह नहीं है जहां मेरे माता-पिता रहते हैं, बल्कि इसका मतलब उन सभी व्यवहारों और मान्यताओं से है जिनकी अक्सर माता-पिता अपने बच्चों से उम्मीद करते हैं।
महिला और पुरुष की भूमिकाएँ अलग-अलग जगह, परिस्थितियों, लोगों और उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर बदलती रहती हैं। समय के साथ हो रहे इन बदलावों को देखते हैं लेकिन इन बदलावों से निपटना उन लोगो के लिए आसान नहीं जो इनसे गुज़रते हैं।
डिजिटल माध्यमों तक पहुँच आसान हो जाने से उपेक्षित वर्ग भी अब यौनिकता से जुड़ी सामग्री को देखने, पढ़ने और तैयार कर पाने में सक्षम हुए हैं और इस तरह की जानकारी तक पहुँच पाने में उनके सामने पहले आने वाली कठिनाईयाँ अब दूर होती नज़र आ रही है।