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अजब तमाशा (फ्रीक शो) – प्रदर्शनी के लिए सजे मानव शरीरों की पड़ताल

19वीं सदी की शुरुआत में, इंग्लैंड और फ्रांस में हॉटेन्टोट वीनस के रूप में जानी जाने वाली एक महिला को जिज्ञासा की वस्तु के रूप में प्रदर्शित किया गया था। दक्षिण अफ्रीका की खोइखोई जनजाति की महिला, जिनके कामुक स्तन, नितंब और भगोष्ठ कई फ्रीक (अजूबे) शो में, भारी भीड़ को आकर्षित करते थे, जहाँ वह एक प्रदर्शन की वस्तु थीं। वे अब सारा बार्टमैन के नाम से जानी जाती हैं, जब वे करीब 20 साल की थीं तो उन्हें गुलाम के रूप में बेच दिया गया था, और खराब स्वास्थ्य के कारण 40 साल की होने से पहले उनकी मृत्यु हो गई। उनका खराब स्वास्थ्य  उनके ज़रूरत से ज़्यादा काम और अधम गरीबी की वजह से था। अभी कुछ समय पहले तक, उनके चीरफाड़ किए गए और सावधानीपूर्वक संरक्षित शरीर को असामान्य शारीरिक रचना के प्रदर्शन के लिए पेरिस में म्युज़े द लॉम (Musée de l’Homme) में प्रदर्शित किया गया था। 1990 के दशक के मध्य में,  उनके शरीर को उनके लोगों को वापस करने से पहले वर्ण आधारित महिला यौनिकता के पश्चिमी निरूपण पर बहस के कारण फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका के बीच आठ साल तक राजनीतिक झगड़ा रहा।

सारा बार्टमैन शायद फ्रीक शो के सबसे प्रसिद्ध मानव प्रदर्शनों में से एक हैं। यह फ्रीक शो साम्राज्यवादी यूरोप, इंग्लैंड और अमेरिका में 17वीं और 20वीं शताब्दी के बीच बढ़ते महानगरों के मनोरंजन के लोकप्रिय साधन के रूप में विकसित हुआ। फ़्रीक्स (अजीब लोग या अजूबे) अतिशयोक्तिपूर्ण यौन लक्षण, असामान्य शरीर, ‘विकृतियों’ और विकलांगता के साथ रह रहे लोग थे जिन्हें इन प्रदर्शनों (शो) में जनता के लिए ‘अजीब एवं प्रदर्शनीय इंसानी वस्तुओं’ के रूप में दिखाया जाता था। लोकप्रिय शो दाढ़ी वाली महिलाओं, बड़े स्तन वाली महिलाओं, दानव आकार, बौने, जुड़वाँ बच्चों के जुड़े हुए शरीर, दक्षिण अमरीका, एशिया और अफ्रीका के उपनिवेशों से लोग और कई ‘विकृतियों’  वाले लोगों का प्रदर्शन करने की शेख़ी बघारते थे।

कोई भी दो मानव शरीर एक जैसे नहीं हैं, और हमारे भिन्न शरीर जिज्ञासा जगाते हैं। लेकिन उत्कृष्ठ मानव शरीर के सौंदर्य के लिए हमारे आकर्षण ने ऐतिहासिक रूप से ‘असामान्य’ और ‘अपूर्ण’ की पड़ताल के लिए कला, विज्ञान और धर्म के भीतर एक स्थान बनाया है। परिणामस्वरूप, कुछ शरीर सामान्यीकृत हो जाते हैं जबकि अन्य अजीब हो जाते हैं। फ्रीक शो, और काफी हद तक, सर्कस और यहाँ तक कि चिकित्सा या मानवशास्त्रीय संग्रहालयों में प्रदर्शन, विशेष रूप से इन अलग-अलग शरीरों को अमानवीय वस्तुओं के रूप में दिखाने और अक्सर इन शरीरों को हिंसा और भेदभाव का पात्र बनाने में अव्वल रहे हैं। कुछ ऐतिहासिक वर्णनों में ऐसे लोगों का भी उल्लेख है जिन्होंने अपने शरीर को अपनी मर्ज़ी से प्रदर्शित किया, और बिना किसी शर्म के उन विशेषताओं/लक्षणों को प्रदर्शित किया जिनके लिए उन्हें शर्मिंदा होना सिखाया गया था, और इस प्रदर्शन करने में उन्होंने सशक्तिकरण और गौरव पाया। लेकिन फ्रीक शो ‘असामान्यता’ के साथ ‘अमंगल’ या ‘बुराई’ के साथ जुड़ाव और मानव शरीरों के बीच सांस्कृतिक, यौनिक और नस्लीय अंतर के प्रति घोर असंवेदनशीलता के कारण शोषण के आधार भी रहे हैं।

कुछ विचित्रताएँ चिकित्सकीय अवस्थाएँ थीं जिन्हें उस समय तक पहचाना नहीं गया था, और कई ‘अजूबे’ वैज्ञानिक जिज्ञासा की वस्तु बन गए। प्रसिद्ध रूप से, जोसेफ़ मरिक थे, जिन्हें मरणोपरांत दो बीमारियों से पीड़ित पाया गया था – न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस और प्रोटियस सिंड्रोम, दोनों से गंभीर विकृति पैदा होती थी, जिसके कारण ही उनके शो का नाम ‘एलीफेंट मैन’ था। हालांकि मरिक एक श्वेत वर्ण के व्यक्ति और इंग्लैंड के नागरिक थे, लेकिन उनका भी सारा बार्टमैन की तरह शोषण किया गया; उनके जीवनकाल के दौरान और उनकी मृत्यु के बाद उनका शरीर सामान्य आबादी और चिकित्सा समुदाय के लिए दिलचस्पी की वस्तु बन गया।

औपनिवेशिक काल के बाद के समय में, खुद फ्रीक शो विद्वानों, लेखकों और फिल्म निर्माताओं के लिए ‘जिज्ञासा की वस्तुओं’ में बदल गए, जिन्होंने मनोरंजन के इस रूप का अध्ययन करने वाली नज़र को आनंद लेने वाले लोगों का अध्ययन करने की ओर घुमा दिया। हॉटेन्टोट वीनस पर एक निबंध में, सादिया कुरैशी बताती हैं कि उपनिवेशों से इंसानों को इकट्ठा करने और प्रदर्शित करने की प्रथा साम्राज्यवादियों के लिए मूल वनस्पतियों और जीवों को प्रदर्शित करने से कोई अलग नहीं थी। हालांकि इंग्लैंड और फ्रांस में मनोरंजन के रूप सिनेमाघरों, ओपरा, चिड़ियाघर और सार्वजनिक उद्यानों से लेकर सर्कस, फ्रीक शो और मेलों तक अलग-अलग थे, वे बताती हैं कि ये सभी दरअसल संग्रहणीय थे जो प्रदर्शन के लिए सजे थे।

पुस्तकों और फिल्मों ने भी इस नज़र के कारण ‘मानव वस्तुओं’ पर होने वाले प्रभाव की जाँच की। गैसतॉ लरो ने अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना, द फैंटम ऑफ द ऑपेरा में इस विषय की पड़ताल की, जहाँ एरिक, अपने माता-पिता द्वारा त्यागा गया विरूपित और फ्रांसीसी फ्रीक शो में क्रूरतापूर्वक अत्याचार सहता लड़का है जो पेरिस ऑपेरा हाउस के अँधेरों में खुद को छुपा लेता है। वह केवल एक खूबसूरत गायिका को देखने के लिए बाहर निकलता है जिसकी आवाज़ उन्हीं लोगों को लुभाती है जिन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया था। जब वह उसके प्यार को ठुकरा देती हैं, तो वह अपने गुस्से को एक तहखाना बनाने में लगा देता है, जहाँ वह उस गायिका को अपने निजी बेशकीमती पुरस्कार के रूप में कैद करके रखने की उम्मीद करता है।

भारतीय सिनेमा सर्कस पर फिल्मों के माध्यम से ‘अजीब’ होने की स्वीकार्यता और अस्वीकृति की पड़ताल करता है, वे फिल्में जो सर्कस के जोकर – जिसकी दुर्भाग्यपूर्ण दुर्दशा केवल उसके अजीब दिखने के कारण हास्यप्रद राहत बन जाती है – के रूप में एक अनूठा मनोरंजन पेश करती हैं। अक्सर जोकर एक बौना होता है। 1972 की फिल्म मेरा नाम जोकर में राज कपूर एक ऐसे व्यक्ति – जो दूसरे लोगों को हँसाना चाहता है – के संघर्ष और हार को दिखते हुए ‘मनोरंजन’ की धारणा को चुनौती देते हैं। 1989 की तमिल फिल्म, अपूर्व सगोदरर्गल (अनोखे भाई) में कमल हसन ने जुड़वां भाइयों की भूमिका निभाई, जिनमें से एक, (बड़ा भाई) बौना होता है और सर्कस में काम करता है और अपने दोस्तों में स्वीकृति और शक्ति पाता है लेकिन बाद में अपनी प्रेमिका द्वारा अपने असामान्य रूप से छोटे कद के कारण अस्वीकार किया जाता है।

कार्निवाल, एक एचबीओ नाटक (2003 – 2005) जो 1930 के दशक में दक्षिणी अमरीकी राज्यों से गुजरते हुए एक फ्रीक शो की कहानी बताता है, इन फ्रीक शो के नज़रिए को पलटने के अनूठे तरीके प्रस्तुत करता है। शो के दौरान, कार्निवाल, अपने ऐतिहासिक समकक्षों की क्रूर परंपरा का पालन करता है और जानबूझकर ‘अजूबे मानव शरीरों’ को वस्तुओं की तरह पेश करता है। इस शो में दाढ़ी वाली महिला लीला हैं; एलेक्जेंड्रा और कैलेडोनिया हैं जो जुड़वाँ हैं और जिनकी ढीली बंधी हुई स्कर्ट उनके संयुक्त कूल्हे दिखाती है; बड़े स्तनों वाली नग्न नर्तकी रीता सू हैं; मन पढ़ लेने वाले लॉड्ज़ हैं जो देख नहीं सकते; विकृत त्वचा रोग वाले और छिपकली मानव कहलाने वाले गेको हैं; रूथ हैं जो एक सपेरे हैं; सैमसन जो बौने हैं; अपोलोनिया जो बुत से बने रहने वाले व्यक्ति हैं जो भाग्य बताते हैं और कई अन्य हैं। लेकिन फिर कैमरे की नज़र पलटती है और गाँव के लोगों की ओर उतनी ही उत्सुकता से देखती है – जो इन भिन्न शरीरों को इतनी हैरानी और घृणा के साथ देखते हैं – और तुरंत उन्हें आधुनिक दर्शक के लिए ‘अजूबों’ में बदल देती है।

कार्निवाल एक और मोर्चे पर भी जीत हासिल करता है। ‘विकृतियों’ और दर्दनाक विसंगतियों के बावजूद, यात्रा करते फ्रीक शो के सदस्य अपनी मर्ज़ी से अपने शरीर को प्रदर्शित करते हैं, और अपने सामूहिक गौरव के माध्यम से, एक दूसरे के साथ में ही घर और परिवार की खोज करते हैं। उन्हें पूर्ण स्वीकृति, प्रेम और यौन संतुष्टि भी मिलती है। एक दृश्य में जहाँ दाढ़ी वाली महिला लीला मन पढ़ लेने वाले लॉड्ज़ को किस करती हैं, लॉड्ज़ लीला के ठोड़ी पर बालों से त्रस्त होने के बजाय उसकी प्रशंसा करते हुए लगते हैं। हालांकि, इस नाटक के सारे कलाकारों का श्वेत वर्ण का होना, और यात्रा करते फ्रीक शो के भीतर नस्लीय शोषण को चुनौती देने में इसकी विफलता इसकी कमी रही है।

कार्निवाल के पात्र एक तरह से ‘अजूबों’ पर डायेन अरबस के फ़ोटोग्राफी के काम के विषयों (लोगों) से तुलना करने योग्य हैं। अरबस ने ऐसे लोगों की तस्वीरें प्रदर्शित की हैं जो समाज से पराए थे, क्योंकि वे 70 के दशक में ‘सुंदर’ या ‘सामान्य’ की परिभाषा के अनुरूप नहीं थे, या उन विशेषताओं के लिए अलग-थलग कर दिए गए थे, जिनसे घृणा और हैरानी होती थी। अरबस फ्रीक शो से बहुत अलग रास्ता अपनाती हैं – वो उन लोगों के ‘अजूबेपन’ को दिखाना या उनके अलगाव को कैद करने की कोशिश नहीं करती हैं; वो केवल उनके अस्तित्व को स्वीकार करने की कोशिश करती हैं। जैसा कि सुज़न सोंटाग ने अपने निबंध अमेरिका, सीन थ्रू फ़ोटोग्राफ़्स, डार्कली, में लिखती हैं, अरबस का काम यह दर्शाता है कि ‘मानवता एक नहीं है’, और यह कि मानव शरीर सभी आकार और प्रकारों में आते हैं। अपनी निष्पक्ष और हर चीज़ को वस्तु-तुल्य न देखने की नज़र के माध्यम से, वे अजूबेपन के बजाय अंतर को स्वीकार करती हैं, और अपने विषयों (जिन लोगों के फोटो खींचे हैं) को सशक्त और अपने शरीर के नियंत्रण में महसूस करने देती हैं।

फ्रीक शो अभी भी होते हैं। अमरीकी मनोरंजनकर्ता, द एनिग्मा, द स्कॉर्पियन और मार्कस ‘द क्रीचर’ जैसे लोग हैं जो इस तरह के शो का हिस्सा बनने के लिए अपनी मर्ज़ी से अपनी जन्मजात विकृतियों को प्रदर्शित करते हैं, या टैटू बनवाकर, शरीर में छेद करवाकर या यहाँ तक कि शल्यक्रिया या सर्जरी के माध्यम से अपने शरीर में बदलाव करते हैं। दर्शक भी गायब नहीं हुए हैं। ‘द ह्यूमन बार्बी (इंसानी गुड़िया)’ जैसे लोगों के वीडियो अभी भी दुनिया भर में व्यापक रूप से फैले हैं। और यदि आप गूगल पर दुनिया के 10 सबसे अजीब लोगों को ढूँढेंगे, तो आपको बड़ी मेहनत से संग्रहीत यू-ट्यूब वीडियो और ‘अजीब’ शरीरों की तस्वीरें मिल जाएंगी। कई आधुनिक फ्रीक शो मानव शरीर के वस्तुकरण द्वारा पुरानी परंपरा को बनाए रखते हैं, और लोगों को इस तरह से देखने के लिए आमंत्रित करते हैं जो ‘सामान्य’ और ‘असामान्य’ के बीच दरार को गहरा करता है।

समय के साथ, फ्रीक शो भी रूपांतरित हो गए हैं। दुनिया भर के सिनेमा ‘कॉमेडियन’ को लाकर थिएटर और सर्कस की परंपरा से नकल करते हैं,  जो जोकर या मसख़रे से अलग नहीं है, वह ‘हीरो’ का ‘अजूबा’ प्रतिरूप ही तो हैं। उनका ‘अजूबापन’ नायक को अधिक ‘सामान्य’ बनाता है और जब तक यह भूमिका ध्यान से न निभाई जाए, ‘अजूबापन’ नस्लीय, यौनिक और सांस्कृतिक रूढ़ियों को बढ़ावा देता है।

और एक बार फिर यहाँ कार्निवाल को सफलता मिलती है। सबसे पहले ही एपिसोड में, ‘सामान्य’ नायक बेन, जो टेंट लगा कर अपनी मज़दूरी कमाते हैं, पहली बार छिपकली मानव गेको से टकराते हैं। गेको को त्वचा रोग है जिसके कारण पूरे शरीर में उनकी त्वचा पर मोटी, हीरे के आकार की, फीकी पपड़ी सी बन जाती है। इसके अलावा, उनकी कड़े बालों की पूँछ है। जब बेन कुछ हैरान और कुछ घृणा करते हुए लगते हैं, तो गेको उनसे पूछते हैं, ‘तुम क्या हो? किसी तरह के अजूबे?’ अपने चारों ओर देखने पर बेन अलग-अलग आकार के शरीरों को देखते हैं जो उनके अपने शरीर को एक अजीबोगरीब स्थान पर दिखाते हैं – यहाँ पर वे ‘सामान्य’ नहीं है; दूसरे किसी और के जितना ही वे भी अलग हैं। और ठीक तभी, वह और उनके साथ-साथ दर्शक भी अलग तरह से देखना सीखते हैं।

सुनीता भदौरिया द्वारा अनुवादित

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